भारतीय लोकशाही के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति भवन पर से इंडियागेट तक काबिज रहे हजारों आंदोलनकारी
बलात्कारियों को फांसी देने की मांग करने वालों पर पुलिस ने बरसाये आंसू गैस व लाठियां
जनाक्रोश से सहमी सरकार, दिल्ली की सीमाये सील, सोनिया भी मिली आंदोलनकारियों से
दिल्ली में गत रविवार को चलती हुई बस में हुए सामुहिक बलात्कार के खिलाफ व दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग को लेकर जनता का गुस्सा उफान पर है। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी जनांदोलन के हजारों आंदोलनकारियों ने पूरे दिन राष्ट्रपति भवन, विजय चैक से लेकर इंडिया गेट तक पूरा राजपथ आक्रोशित छात्र व छात्राओं के साथ आम जनता के कब्जे में रहा। इससे सहमी सरकार ने 22 दिसम्बर की सुबह से जमी जनता को 23 दिसम्बर की प्रातः 6.30 बजे पुलिसिया बल के सहारे उठा कर विजय चैक सहित पूरा इलाका जनता से मुक्त करा दिया है। देर रात कपंकंपा देने वाली भारी ठण्ड में भी जमे हुए जांबाज 100 के करीब आंदोलनकारियों को पुलिस ने उठा कर दिल्ली के बवाना या गाजियाबाद के इन्द्रापुरम इलाके में छोड दिया है और बवाना में अस्थाई जैल बना डाली। रेल भवन के पास भी बेरिकेट लगा कर पूरे इलाके में रेपिड एक्शन पुलिस बल भी तैनात कर दिया है। सरकार को आशंका है कि रविवार को भारी संख्या में जनता पर विरोध प्रदर्शन करने को आ सकती है। गौरतलब है कि बाबा रामदेव सहित कई संगठनों ने 23 दिसम्बर को यहां पर प्रदर्शन का ऐलान कर दिया था। आजादी के बाद पहली बार विजय चैक से इंडिया गेट तक दिन भर काबिज रही जनता के जनाक्रोश से सहमी सरकार ने इस पूरे क्षेत्र सहित नई दिल्ली में धारा 144 लगाते हुए मेट्रो के सात स्टेशन केन्द्रीय सचिवालय, रेस कोर्स, मंडी हाउस, उद्योग भवन, बाराखम्बा व पटेल चैक अस्थाई रूप से बंद कर दिया है। देर रात सोनिया गांधी भी आंदोलनकारियों से मिली।
गौरतलब है कि शनिवार 22 दिसम्बर की प्रातःकाल से ही हजारों की संख्या में छात्र व छात्रायें हाथों में बलात्कारियों को फांसी दो जैसे नारे लिखे पट्टों को लिये गगनभेदी नारे लगाते हुए जमे रहे। ये स्कूल कालेज जाने वाली उम्र के हजारों की संख्या में स्वयं इस आंदोलन का अंग बने बच्चों का आक्रोश देखते ही बनता था। साढ़े ग्यारह बजे दोपहर से सांय पौने सात बजे तक मैं राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट अमर जवान ज्योति तक मैं हपले अकेले व बाद में राज्य गठन आंदोलनकारी साथी अनिल पंत के साथ आंदोलन में डटा रहा। इस दौरान देश की इस सबसे प्रतिष्ठित व संवेदनशील उच्च सुरक्षा क्षेत्र से जुड़े स्थान पर काबिज आंदोलनकारियों से मुक्त कराने के लिए पांच से अधिक बार आंसू गैस व लाठी चार्ज का सहारा भले ही ले लिया हो परन्तु यहां पर पुलिस को मुंह की खानी पड़ी। पुलिस द्वारा 6 बार लाठी चार्ज व आंसू गैस के खेल चल जाता। राष्ट्रपति भवन से लेकर राजपथ के समीप रेल भवन के पास भी सांय साढ़े छह बजे तक यहां पर चले आंसू गैस के गोलों ने मुझे उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के 1994 व 1995 के आंदोलनों पर पुलिस के दमन की यादों ने मुझे झकझोर कर रख दिया। राष्ट्रपति भवन, संसद भवन के साथ ही नार्थ व साउथ ब्लाक में देश के सर्वोच्च नीति निर्धारकों का कार्यालय के पास आजादी के बाद के इतिहास में पहली बार दिन भर हजारों आंदोलनकारियों ने दिन भर का प्रचण्ड धरना दिया। वेसे इस क्षेत्रमें धरना प्रदर्शन की बात ही अकल्पनीय है। मैं आरक्षण विरोधी मण्डल कमीशन के आंदोलन के समय वोट क्लब पर आयोजित टिकैत वाली रेली का साक्षी रहा, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख दंगो का काला इतिहास का भी साक्षी रहा, यही नहीं रामजन्म भूमि आंदोलन का भी साक्षी रहा। अभी हाल के एकाद सालों में देश व्यापी जनांदोलनों की श्रेणी में राष्ट्र के आंदोलित करने वाले बाबा रामदेव व अण्णा के आंदोलनों का भी में साक्षी रहा। परन्तु तब भी किसी एक भी आंदोलन में इस अतिविशिष्ठ स्थल पर आंदोलनकारियों ने अपने पांव तक नहीं रखे। उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन को 1994 से 2000 तक के जनांदोलन का तो मैं एक सिपाई ही रहा। परन्तु इस अतिविशिष्ठ स्थान पर पहली बार पूरे दिन भर आंदोलनकारियों ने आंदोलन से गूंजायमान किया यह पहली बार देखा।
इस आंदोलन को मैं स्वयं स्फूर्त आंदोलन ही कहूंगा। क्योंकि इसमें अधिकांश वे छात्र व छात्रायें थी जो प्रायः समृद्ध परिवारों से सम्बंध होने के कारण कभी जीवन में इस प्रकार के आंदोलनों में सम्मलित हुए होंगे। इसी कारण इन छा आंदोलन में पंहुचे किसी राजनैतिक दल या नेता की कोई विशेष महत्व नहीं दिया। हालांकि मैने खुद इस आंदोलन में विजय चैक के पास माकपा नेत्री वृन्दा करात को उनके चंद पार्टी जनों को छोड़ कर किसी ने विशेष महत्व नहीं दिया। ठीक इसी प्रकार का भाजपा के नगर निगम के नेता को भी आंदोलनकारियों ने ज्यादा भाव नहीं दिये। इस आंदोलन में आम आदमी की पार्टी के गोपाल राय, मनीष सिसोदिया व कुमार विश्वास ने राष्ट्रपति भवन के समक्ष चल रहे पुलिस बेरेकेट के समक्ष को मजबूत करने के बजाय वहीं किनारे मुख्य बेरेकेट से 200 मीटर दूर पर कुछ दर्जन आंदोलनकारियों को लेकर अपनी समान्तर सभा का संचालन किया। इसके बाबजूद टीम अन्ना के सहयोगी अरविन्द गौड के अस्मिता ग्रुप के जीवंत नारों व आंदोलनों से राष्ट्रपति भवन को गूंजायमान रहा। बच्चों खासकर महिला उा आंदोलनकारियों का आक्रोश देखते ही बनता था। पता नहीं क्यों सोनिया व मनमोहन को राष्ट्र की जनभावनाओं को समझने में समय लग रहा है। अविलम्ब बलात्कारियों को फांसी की सजा देने का कानून बनाने व उदासीन दिल्ली पुलिस को इस काण्ड की सजा देने में क्यों बिलम्ब कर रही है। दोषियों को सजा मांगने व इस प्रकरण पर न्याय मांगने वाले युवाओं पर दिल्ली पुलिस ने पाच छह बार आंसू गैस व लाठी चार्ज करके तीन दर्जन से अधिक आंदोलनकारियों को घायल कर दिया । वहीं पुलिस ने इस झडपों में अपने दो डीएसपी सहित 37 पुलिस जवानों को घायल बताया है। इस पूरे प्रकरण में लगता नहीं कि देश में कोई सरकार नाम की कोई चीज है। संवेदनहीन मनमोहन सरकार न जाने देश को और कितने दंशों से मर्माहित करेगी।
Comments
Post a Comment