जनांदोलन को और फैलने से पहले बलात्कारियों को मौत की सजा का कानून बना कर दमनकारी पुलिस पर अंकुश लगाये सरकार,
शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन न करे सरकार, आंदोलनकारी पुलिस व सम्पतियों को किसी भी हालत में नुकसान न पंहुचाये
किसी भी सूरत में हिसक न हों पुलिस व आंदोलनकारी
रविवार को भी दिल्ली में गत रविवार की रात को चलती हुई बस में एक पेरामेडिकल की छात्रा के साथ हुए सामुहिक बलात्कार के विरोध सरकार द्वारा ठोस कदम न उठाये जाने से पूरा देश आक्रोशित है। भले ही रविवार 23 दिसम्बर को राष्ट्रपति भवन की तरफ आंदोलनकारियों ने पुलिस की भारे अवरोधों के कारण न किया हो परन्तु इडिया गेट व जंतर मंतर पर आंदोलनकारियों ने अपनी आवाज बुलन्द रखी। परतु न जाने क्यों पुलिस आंदोलनकारियों पर लाठी व आंसू गैस बरसा कर आंदोलनकारियों का दमन करके आंदोलन को भड़का रही है। आंदोलनकारियों को भी न तो किसी प्रकार से सरकारी या निजी सम्पतियों को नुकसान नहीं पंहुचाना चाहिए और नहीं पुलिस से किसी प्रकार की मुठभेड़ करके आंदोलन की धार को कमजोर बनाना चाहिए। बलात्कारियों को यथाशीघ्र कड़ी सजा मिलनी चाहिए। आंदोलनकारी एक ही मांग कर रहे हैं कि इस प्रकार के बलात्कारियों को फास्ट कार्ट में मामला चले तथा इस प्रकार के अपराधियों को कम से कम मृत्यु दण्ड देने का कानून बनाया जाय। परन्तु समझ में नहीं आता कि सरकार इस प्रकार के कदम उठाने की महत्वपूर्ण मांग पर भी मूक क्यों बनी हुई है।?
सरकार को शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों, खासकर महिलाओं पर भी बर्बरता से दमनकारी हथकण्डों पर रोक लगानी चाहिए। पुलिस के दमनकारी रवैये से यह आंदोलन शांत होने के बजाय यह पूरे देश में और तेजी से भड़क सकता है।
वहीं सरकार की तरह आंदोलनकारियों को भी शांति बनाये रखना चाहिए। पुलिस या असमाजिक तत्वों द्वारा भडकावे की कार्यवाही के बाबजूद किसी प्रकार से आगजनी, पथराव व सरकारी या निजी सम्पति की तोड़ फोड़ नहीं करनी चाहिए। किसी भी सूरत पर पुलिस पर हमला या पथराव नहीं करना चाहिए। 23 दिसम्बर की दोहपर बाद जंतर मंतर पर बाबा रामदेव व पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने बहुत सुझबुझ से आज अपने आंदोलन का संचालन किया। सरकार को चाहिए कि बिना नेतृत्व के चल रहा यह आंदोलन को और फेलने से पहले बलात्कारियों को मौत की सजा का कानून बनाने का ऐलान करने के साथ, शांतिपूर्ण चल रहे आंदोलन को लाठी व आंसू गैस के बल पर दमन करने का हथकण्डे को त्यागे। जिस प्रकार से इन दो दिनों के आंदोलन में कई पुलिस वाले व आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल हो गये है और पुलिस के जवान मारे गये हैं वह बहुत ही चिंताजनक बात है। इससे न तो इस आंदोलन को लाभ होगा व नहीं देश को । आंदोलनकारियों व पुलिस दोनों को एक दूसरे को दूश्मन की तरह व्यवहार न करना चाहिए। दोनों को देशहित के बारे में पहले सोचना चाहिए। सरकार सहित तमाम राजनैतिक दलों को जनता का विश्वास व्यवस्था से उठने से पहले अविलम्ब जनभावनाओं का सम्मान करते हुए बलात्कार के दोषियों को फांसी का कानून बनाने के साथ ही ये मामले त्वरित अदालत में चलाने की प्रक्रिया शुरू करें तथा दमनकारी पुलिस पर अंकुश लगाने का ऐलान करे। इससे ही वर्तमान यह जनाक्रोश शांत हो सकता है।
जिस प्रकार से 22 दिसम्बर को मेने दिन भर राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तथा 23 दिसम्बर को सांयकाल तक जंतर मंतर का आंदोलन अपनी आंखों से देखा व समझा तथा इसके बाद जो कुछ इन दोनों दिनों के आंदोलन की झलकियां खबरिया चैनलों में देखा तो मुझे यही कहना है कि सरकार ही नहीं पुलिस व आम आंदोलनकारियों का भी यह दायित्व बनता है कि किसी भी हालत में इस आंदोलन को अराजक व हिंसक न बनने दें। इससे देश का ही नुकसान होगा। सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी को अपने कुशासन से देश को पतन के गर्त में धकेल रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भरोसे यह समस्या न छोड़ कर अविलम्ब सरकार से इस समस्या का समाधान खोजने के लिए अपने प्रभाव का प्रयोग करे। सोनिया गांधी ने आक्रोशित आंदोलनकारियों से मिल कर जहां विवेकपूर्ण कार्य किया वहीं उनको सरकार से तुरंत बलात्कार के दोषियों के लिए हरदिन मामला चलाते हुए इनको मौत की सजा का विधान बनाने के लिए दवाब बनाना चाहिए। इसके साथ दिल्ली पुलिस के दोषी अधिकारियों को अविलम्ब निलंबित करना चाहिए।
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