दामिनी को न्याय दिलाने के लिए पुलिस के बर्बर दमन के बाबजूद जंतर मंतर पर डटे हैं जांबाज आंदोलनकारी
22 व 23 दिसम्बर को विजय चैक से लेकर इंडिया गेट व जंतर मंतर पर पुलिस ने जिस दामनी को न्याय दो, बलात्कारियों को मौत की सजा दो रूपि जनांदोलन की कमर तोड़ने के लिए लाठियों, आंसू गैस व पानी के तेज धार के प्रहार तथा कानून का खुला दुरप्रयोग भी किया था, उस आंदोलन को पुलिसिया दमन को धत्ता बता कर जंतर मंतर पर दिन भर शांतिपूर्ण ढ़ग से धरना प्रदर्शन करके जींदा रखे हुए है। चारों तरफ से सैकडों पुलिस की घेरेबंदी व पानी की तेज धार से प्रहार करने के लिए तैयार पुलिसिया गाड़ी की तैनातगी के बाबजूद आंदोलनकारी राष्ट्रीय धरनास्थल पर दिन भर ‘बलात्कारियों को सजा दो/ दामिनी तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं/ सोनिया जिसकी ममी है वो सरकार निकम्मी है,/ पूरा देश आसू बहा रहा है मनमोहन व राहुल शर्म करो, आदि गगनभेदी नारों, दिन भर छात्र-छात्राओं व समाजसेवियों के जोशिले न्याय की मांग करने वाले भाषणों से जंतर मंतर गूंज उठता है। वहीं यहां पर कई कलाकार अपनी पेंटिंग बना कर यहां पर दामिनी को न्याय देने की मांग कर रहे है। वहीं सांय 7बजे के आसपास यहां पर मोमबत्तियां जला कर छात्रायें व युवती प्रदर्शन करके दामिनी के दोषियों को सजा की मांग करते हैं। आंदोलनकारियों में ही नहीं अपितु देश के अधिकांश लोगों में बेहद गंभीर हालत में दामिनी को इलाज के लिए सिंगापुर भेजने के सवाल पर भी प्रश्न उठ रहे है।
परन्तु इन जांबाजों को देख कर यहां पर हर कोई एक ही सवाल करता है कि कहाॅं गये जंतर मंतर पर जनांदोलन चलाने वाले देश के तथाकथित बडे आंदोलनकारी? आखिर अण्णा या अरविन्द या रामदेव या भाजपा, वामदल सहित अन्य रानैतिक दल क्यों पुलिस की अमानवीय दमन व लोकशाही का गला घोंटने वाले प्रकरण के बाद यहां पर आ कर सत्तांध हुक्मरानों को खुली चुनौती दे रहे आंदोलनकारियों का समर्थन करने या लोकशाही की रक्षा करने के लिए क्यों राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर आने का साहस क्यों नही कर पाये। क्योंकि जिस लोकशाही व मानवाधिकारों को कुचलने के लिए सरकार ने 22 व 23 दिसम्बर को कहर ढाया क्या उसका विरोध करना उचित नहीं समझते है ये लोकशाही के समर्थक। आज जरूरत है सबसे अधिक सरकार के अमानवीय जुल्म के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की। केवल यहा पर अरविन्द गौड, व योगेन्द्र यादव जैसे बडे नाम ही आंदोलनकारियों के बीच पंहुचे। वहीं टीम अण्णा की प्रमुख सदस्या जो जंतर मंतर पर इन दिनों सांयकाल केंडल मार्च करने के लिए प्रमुखता से आती है। परन्तु प्रमुख नाम जिनके नाम से आंदोलनों में लोग सडकों पर उतरे थे उनके इन दिनों दर्शन तक नहीं हो रहे हैं।
गौरतलब है कि 16 दिसम्बर को दिल्ली की पेरामेडिकल की 23 वर्षीया छात्रा के साथ हुए सामुहिक बलात्कार के दोषियों को कड़ी सजा देने के लिए कानून बनाने व देश की आक्रोशित आहत जनता को विश्वास दिलाने में एक सप्ताह बाद भी केन्द्र की मनमोहन सरकार पूरी तरह असफल रही तो आक्रोशित हजारों की संख्या में उमडे छात्र-युवाओं व प्रबुद्ध जनों के जनशैलाब ने 22 व 23 दिसम्बर को राष्ट्रपति भवन की चैखट विजय चैक से लेकर इंडिया गेट व राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर स्वयं स्फूर्त हो कर न्याय की गुहार लगायी तो मनमोहन सरकार की कंपकपी निकल गयी। इन आंदोलन की कमर तोड़ने के लिए देश के हुक्मरानों ने पुलिसिया जुल्मों से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हजारों की संख्या में छात्राओं, महिलाओं व युवाओं पर जिस बर्बरता से लाठियों, पानी की बौछारों की प्रहारों व आंसू गैस के गोलों के दर्जनों बार प्रहार किया। रेस कोर्स से राजीव चैक तथा राजीव चैक से प्रगति मैदान वाले सभी सातों मेट्रो स्टेशन पर आवागमन रोक दिया गया। इस प्रकार सरकार ने सत्तांध हो कर न तो जनभावनाओं के अनुसार बलात्कार को मोत की सजा या उम्रकेद देने के लिए कानून में संशोधन करने के लिए न तो अध्यादेश ही जारी किया व नहीं अभी तक संसद का विशेष सत्र या सर्वदलीय बैठक बुला कर इस मामले का समाधान करने की ईमानदारी से पहल की। इससे लगता है कि सरकार को जनभावनाओं का कहीं सम्मान करती है व नहीं उसे मानवाधिकार व लोकशाही पर कहर ढाने का तनिक सा भी मलाल है। अगर सरकार को जरा सा भी जनभावनाओं या लोकशाही के प्रति सम्मान रहता तो वह तुरंत जनता पर 22 व 23 दिसम्बर को कहर ढाने वाले पुलिस के अधिकारियों के साथ साथ दिल्ली पुलिस के आयुक्त को भी तत्काल पदमुक्त करके जनाक्रोश को शांत करती।
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