लोगों को देख कर सतमार्ग से विचलित न हों
इस सृष्टि में जितने दृश्य जीव हैं उससे कई हजार गुना अदृश्य जीव विद्यमान हैं जिनको हम अपनी इस आंखों से देख नहीं पाते। इस दृश्य सृष्टि में भी लाखों प्रकार के जीव हैं जो मनुष्य की तरह ही इस सृष्टि में 
हैं। परन्तु मनुष्य ही एक ऐसा आततायी जीव है जिसने सबके लिए बनी इस सृष्टि में अधिकांश भू-जल व थल पर ही नहीं अंतरिक्ष पर भी अपना शिकंजा कस कर या तो अधिकांश जीवों की निर्मम हत्या कर रहा है या अधिकांश को या तो गुलाम बना दिया या ये मनुष्य के रहमोकरम पर जी रहे हैं। ऐसे में भी इस विस्तृत ब्रह्माण्ड का करोड़वां अंश पृथ्वी पर रहने वाला मनुष्य को भले ही अभी इस समग्र ब्रह्माण्ड की कोई थाह तक नहीं है परन्तु वह अपने आप को सारे ब्रह्माण्ड का का एकमात्र सरताज समझ कर अन्य जीव जन्तुओं का जीना दुश्वार कर रखा है। भगवान श्री कृष्ण ने भी इस दिशाहीन मानव के ज्ञान चक्षु खोलने के लिए यह बताया था कि मैं ही इस ब्रह्माण्ड के हर जड चेतन और कण कण में विद्यमान हॅू। यानी सभी को इस संसार में जीने का उतना ही हक हैं जितना मनुष्य को। परन्तु मनुष्य ने जल, थल व नभ में विचरने वाले करोड़ों जीव प्रजातियों को अपना आहार समझ कर उनकी निर्मम हत्या करने के लिए यांत्रिक कत्लखाने तक लगा रखे हैं। समुद्री ही नहीं व हिमालयी क्षेत्र के जीवों पर भी इनकी वक्रदृष्टि लगी हुई है। ऐसे घोर निशाचरी वातावरण में लाखों में से चंद लोग ही इस ब्रह्माण्ड में सभी के जीने के अधिकार की प्रकृति प्रदत अधिकार को स्वीकार करते है। ऐसे लाखों स्वीकार करने वालों में से चंद लोग ही ऐसे होते हैं जो अपने जीवन में इसको आत्मसात करते है। जीवो व जीने दो नामक प्रकृति के इस रहस्यमय सीख को अधिकांश जीव समझ नहीं पाते है। 99.9 प्रतिशत जीव अज्ञानवृति में ही लगे रहते है। ऐसे में चंद लोग भी अगर सही दिशा में लगे रहते हैं तो यह हमारा सौभाग्य है। वे हमारे ब्रह्माण्ड के दिव्य रत्न है। इसलिए यह देख कर परेशान नहीं होना चाहिए कि बहुत कम लोग सही दिशा में लगे हैं। हकीकत यह है कि सही दिशा में बेहद कम लोग ही एक कदम चल सकते है। नहीं तो अधिकांश लोग दिशाहीन व सारहीन संस्कार की व्यर्थ की बातों में ही अपना पूरा जीवन बीता देते हैं। मनुष्य को अपनी तरफ से सही काम करना चाहिए व जितना हो सके अन्य जीवों को भी सही दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। परन्तु लोगों की वृति देख कर अपना सत मार्ग से न तो विचलित होना चाहिए व नहीं उसको छोडना चाहिए। प्रत्येक जीव को अपने नियत समय पर ही इस देह में अपना जीवन समय पूरा करना होता है। इसलिए अन्य जीवों के कार्यो को देख कर अपनी सतराह से मुंह नहीं मोडना चाहिए।
 

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