चिदम्बरम को दूसरा मनमोहन बना कर भारत का प्रधानमंत्री बनाना चाहता है क्या अमेरिका ?

भारत को पाक की तरह अपना प्यादा बनाने के अमेरिकी शडयंत्र का विफल करें कांग्रेस व भाजपा सहित राश्ट्रवादी ताकतें

राहुल गांधी नहीं पी चिंदम्बरम होंगे कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री के प्रत्याषी। जेसे ही भारतीय समाचार चैनलों ने लंदन की दि इकोनोमिस्ट की इस रहस्यमय खबर को हाथों हाथ लगा तो मेरे मन में एक ही विचार आया कि क्या वर्तमान वित्तमंत्री को अमेरिका व उसकी पष्चिमी मित्र राश्ट्र भारत का दूसरा मनमोहन बना कर प्रधानमंत्री के पद पर आसीन करना चाहते हैं?
आगामी लोकसभा चुनाव 2014 में होंगे या कुछ समय पहले। परन्तु जिस प्रकार से गुजरात चुनाव से पहले इस प्रकार की खबरों को प्रकाषित करा कर अपने प्यादे की राह आसान बनाने के लिए यह नाम उछालने व उसको चर्चा में लाकर स्थापित करने का एक मात्र हथकण्डा हैं इस चर्चा को जो हवा दे रहे हैं वे जाने व अनमाने अमेरिकी व उनके मित्र राश्ट्रों के हथकण्डे ही बन रहे हैं।
अमेरिका व यूरोपीय देषों का चम्पू विष्व बैंक ने अपने पूर्व अधिकारी व चेहते मनमोहन सिंह को भारत का वित्तमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के पद पर आसीन करके भारत का जम कर दोहन किया। अब मनमोहनसिंह सरकार के कुषासन से भारत की जनता का मोह उनसे भंग हो गया है। जनता में विष्व बैंक के चेहते मनमोहन व मोंटेंक दोनों को एक पल के लिए देष के सिहासन में आसीन होते नहीं देखना चाहती है। भारत की जनता का इसी मंषा को भांपते हुए इन पष्चिमी ताकतों ने भारत में अपने एक अन्य चेहते पी चिदम्बरम को देष में प्रधानमंत्री बनाने का शडयंत्र रच रही है। इसके लिए वह देष में मीडिया सहित तमाम संचार माध्यमों में अपने प्यादों का प्रचार प्रसार करने व अमेरिका सहित पष्चिमी देषों के हितों की पूर्ति में काम करने के बजाय भारत को मजबूती प्रदान करने वाली सरकार चलाने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन न होने देने की रणनीति पर काम करना षुरू कर दिया है। जिस प्रकार से गुजरात चुनाव से पहले चिदम्बरम का नाम प्रधानमंत्री के लिए उछाला गया वह इसी रणनीति का एक सोची समझी साजिष का एक अंग है। अमेरिकी व उसके पष्चिमी मित्र राश्ट्र भारत में न तो भाजपा से नरेन्द्र मोदी व नहीं कांग्रेस से राहुल सहित नेहरू परिवार के किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होता देखना चाहता है। अमेरिका व उनके मित्र मण्डली को इस बात का यकीन है कि मोदी, नेहरू परिवार का कोई सदस्य आयेगा तो वह भारत को मजबूत करेगा। इसी कारण  इनको रोकने के लिए उन्होंने अपना पूरा तंत्र, संचार माध्यम व प्यादे झोंक दिये है। मनमोहन सिंह की तरह ही पी चिंदम्बरम का कोई जमीनी राजनैतिक पकड़ नहीं है। नहीं उनके अब तक के किसी कार्य में आम आदमी के हितों के प्रति समर्पणता दिखती है। देष के हितों के बजाय वे भी मनमोहन सिंह की तरह बहुराश्ट्रीय कम्पनियों व पष्चिमी देषों के हितों के अनकुल ही कार्य करते हुए प्रतीत हुए। इसी को देखते हुए पष्चिमी ताकतों ने अपनी सोची समझी रणनीति के तहत चिदम्बरम को अब भारत में दूसरा मनमोहन बना कर प्रधानमंत्री के रूप में ताजपोषी करने का मन बना लिया। कम से कम इकोनोमिस्ट में प्रकाषित इस खबर और  उसके बाद भारतीय संचार माध्यमों में जिस भाण्डकी तरह इस प्रकरण को हवा दे रहे हैं वह भी कहीं न कहीं अमेरिकी रणनीति का एक हिस्सा ही लग रहा है।
मैने पहले भी अपने लेखों से अमेरिकी लाॅबी की इस शडयंत्र का खुलाषा करते आ रहा हॅू कि अमेरिका के नेतृत्व में पष्चिमी ताकतें किसी भी प्रकार से देष को मजबूत बनाने वाले किसी भी व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री बनते हुए नहीं देखना चाहते जो उनके इषारे पर भारत के हितों को पष्चिमी देषों के लिए कुर्वान न करने में रूकावट खड़ी करे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू व इंदिरा गांधी ही नहीं राजीव गांधी को अमेेरिका फूटी आंख नहीं देखना नहीं चाहता था। क्योंकि राजीव गांधी तक अधिकांष प्रधानमंत्रियो ंने भारत को पाकिस्तान की तरह अमेरिका या पष्चिमी ेदेषों के हाथों का खिलौना नहीं बनने दिया। देष में जिस प्रकार से देष में लोकषाही के संवाहक रहे कांग्रेस व भाजपा सहित तमाम दलों को रणनीति के तहत बौना बना कर इनके अंदर इतना सत्तासंघर्श कराकर जनता का मोह भंग वर्तमान दलों से करा दिया गया है। देष में ऐसा वातावरण बनाने का काम अमेरिकी इसी योजना के तहत किया जाय कि इस देष में मजबूत राश्ट्रवादी नेतृत्व न उभर सके। इसी दिषा में चिदम्बरम को दूसरा मनमोहन के रूप में देष के सिहासन पर थोपने का धृर्णित शडयंत्र किया जा रहा है। इसका मुहतोड़ जवाब देने के लिए भाजपा व कांग्रेस को मिल कर विफल करना होगा नहीं तो पाक की तरह भारत भी अमेरिका का प्यादा बन कर तबाह हो जायेगा।

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