गणाई तहसील बनाने का ऐलान करके मुख्यमंत्री ने दी जिला बनाओं आंदोलन को हवा
मुख्यमंत्रियों की घोषणाओं को जमीदोज करके लोकषाही को कमजोर कर रही है सरकारें
गंगोलीहाट (प्याउ)। विजय बहुगुणा सरकार ने गणाई को नयी तहसील बनाने का ऐलान करके विधानसभा चुनाव के बाद बंद पड़ी जिला, विकासखण्ड, तहसील आदि बनाने की मांगों को एक बार फिर हवा देने का काम कर दिया है। वर्तमान समय में प्रदेश में लगभग एक दर्जन के करीब नये जिले बनाने की मांग चल रही है। इनमें रानीखेत, धूमाकोट ,धारचूला, यमुनोत्री, रूड़की, पिण्डर, रूड़की, काषीपुर, नरेन्द्र नगर आदि जिलों के अलावा कई तहसीलों व विकासखण्ड बनाने की मांग भी समय समय पर प्रदेष में उठ रही है। विधानसभा चुनाव के बाद ठण्डे बस्ते में पडी मांग को इसी पखवाडे मुख्यमंत्री ने गंगोलीहाट में गणाई तहसील बनाने की घोषणा करके षीतलहर में ठिठुर रहे हिमालयी प्रदेष उत्तराखण्ड की राजनीति को एक प्रकार से गर्माने का काम किया। गौरतलब है कि गत सप्ताह गंगोलीहाट में स्वयं मुख्यमंत्री ने स्थानीय विधायक नारायण राम आर्य द्वारा रखी गयी गणाई गंगोली को तहसील बनाने की मांग को स्वीकार करते हुए ऐलान किया कि यह तहसील अगले वित्तीय वर्श से काम करेगी।
जिस प्रकार से निषंक सरकार द्वारा प्रदेष में यमुनोत्री, कोटद्वार, रानीखेत आदि नये जिलों को बनाने के बाद प्रदेष में लम्बे समय से चली आ रही जिला, तहसील व विकासखण्ड बनाने की मांगों को एक प्रकार से पंख ही लगा दिये थे। परन्तु निषंक को प्रदेष के मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद खण्डूडी को मुख्यमंत्री बनाने पर इन मांगों पर सरकार के ठण्डे रूख व उसके बाद विधानसभा चुनाव ने ये मांगें एक बार फिर ठण्डे बस्ते में दुबने के लिए विवष कर दिया था। विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनाये जाने पर उनके समर्थकों को भी विष्वास था कि वे यमुनोत्री जनपद को बनाने के लिए जरूर काम करेंगे। क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि वे विधानसभा का चुनाव यमुनोत्री से ही लडेंगे परन्तु बाद में सितारगंज से चुनाव लड़ने का निर्णय लेने के बाद जिला बनाये जाने की आष व इससे उठने वाली ये तमाम मांगे प्रदेष में कांग्रेसी मठाधीषों के आपसी सत्ता के संघर्श, सितारगंज में हुई विधानसभाई उपचुनाव व टिहरी लोकसभाई उपचुनाव के षोर के नीचे दब गयी। यह सत्ता संघर्श केवल सत्तारूढ़ कांग्रेस में ही नहीं हो रहा है ऐसा ही संघर्श मुख्य विपक्षी दल भाजपा व प्रांतिय दल उक्रांद में भी चल रहा है। जहां भाजपा में खण्डूडी, कोष्यारी व निषंक के गुटों के प्रदेष की राजनीति में वर्चस्व की जंग भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व की दिषाहीनता के कारण छिडा हुआ है। वहीं उत्तराखण्ड की प्रांतीय पार्टी उत्तराखण्ड क्रांति दल भी दो-ढाई नेताओं के घोर सत्तालोलुपता के कारण मचे आपसी द्वंद में विखर कर दम तोड़ रही है। ऐसा ही दयनीय हाल गत वर्श बनी उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा का भी है। उसके अपने लोगों की अवसरवादिता व दिषाहीनता के कारण नेतृत्व ही हस्तप्रद है। प्रदेष की ऐसी राजनैतिक पतन सी स्थिति में जब राजनैतिक दलों में अपने अंदर ही वर्चस्व का जंग छिडा हो तो ऐसे समय जनहितों की रक्षा करने या जनहित के लिए आंदोलन करने का विवेक या फुर्सत इन सत्तालोलुपु नेताओ ंमें कहा रह जाती है। इस माहौल में मुख्यमंत्री द्वारा की गयी तहसील बनाने की घोशणा कहां तक कबिस्तानी षांति से पडे प्रदेष की राजनीति में कोई हलचल मचा पायेगी या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। वेसे भी विगत माह से आने वाले पखवाडे तक प्रदेष के राजनेता से लेकर आम आदमी तक षादी व्याह की दावतों में ही उलझे रहेंगे। परन्तु सवाल यह हे कि मुख्यमंत्री द्वारा की गयी घोशणायें ही जब सरकारें ठण्डे बस्ते मंें जानबुझ कर जमीदोज करने में लग जाती है तो आम जनता का विष्वास ऐसे षासन प्रषासन पर कैसे कायम होगा। जनविष्वास का षासन प्रषासन से उखडना एक प्रकार से किसी भी व्यवस्था के लिए षुभ नही होता है। खासकर जिस प्रकार से जिला बनाने की प्रदेष के निषंक सरकार की घोशणाओं का उनके ही पार्टी की खण्डूडी सरकार ने जमीदोज करने की कार्य किया और उसके बाद कांग्रेस सरकार इस दिषा में मूक हैं तो ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री व सरकार की ऐसी घोशणाओं से जनता के साथ कितना खिलवाड हुआ उससे प्रदेष की जनता ठगी सी है। सरकारों की इस प्रकार की प्रवृति लोकषाही के लिए बेहद खतरनाक है।
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