मुख्यमंत्री शीला के कारण आज जलियावाला बाग बन जाता जंतर मंतर
पुलिसिया दहशत को धत्ता बताते हुए दामनी को श्रद्धांजलि देने उमडे जंतर मंतर पर हजारों लोग
29 दिसम्बर की तड़के दिल्ली में 16 दिसम्बर को सामुहिक बलात्कार की शिकार हुई 23 वर्षीया पेरामेडिकल की छात्रा दामिनी की मौत के बाद पूरे देश में फेले आक्रोश को पुलिसिया ताकत के बल पर भले ही कुंद करने की कोशिश करते हुए जंतर मंतर पर हजारों की संख्या में उमड़ कर दिवंगत दामिनी को श्रद्धांजलि अर्पित की और इसके दोषियों को अविलम्ब सजा-ए-मौत की सजा देने की मांग करते हुए धरना प्रदर्शन किया। वहीं दिन भर आंदोलनकारियों की सुझबुझ से राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर आज उस समय एक बड़ा हादसा टल गया जब दोपहर दो बजे सत्तामद में चूर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने दामिनी की मौत व सरकार की लापरवाही के कारण आक्रोशित जनता ने जंतर मंतर पर पीडि़ता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के नाम पर वहां पर पंहुच कर मोमवत्ती प्रज्वलित करने का काम किया। वह दिल्ली पुलिस की तत्परता व आंदोलनकारियों की सुझबुझ से आज बडा हादसा होने से बच गया। इस जनांदोलन में आम लोग दिल्ली व केन्द्र में कांग्रेस की सरकार ही सत्तारूढ़ होने के कारण आम जनता शासन प्रशासन द्वारा समय पर इस काण्ड के दोषियों को सजा-ए-मौत न देने के लिए कानून न बनाये जाने से काफी आक्रोशि थी। ऐसे में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा दामिनी के मोत के दिन आक्रोशित हजारों आंदोलनकारियों के बीच पंहुचना अपने आप में जनाक्रोश की बारूद डालने के बराबर था। अगर कुछ अनहोनी वहां पर घटित हो जाती या जिस प्रकार से मुख्यमंत्री आक्रोशित आंदोलनकारियों के बीच में घिर गयी थी उसमें कोई दुर्घटना हो जाती तो यहां पर फिर निर्दोष जनता 22 व 23 दिसम्बर से अधिक क्रूर ढ़ग से पुलिसिया जुल्म का शिकार हो जाती। शीला दीक्षित को कम से कम ऐसे मौके पर जनता के बीच किसी भी सूरत में नहीं आना चाहिए। जंतर मंतर एक प्रकार से आज जलियावाला बाग में तब्दील होते होते बचा। क्योंकि जंतर मंतर के दोनों प्रवेश की सडकों पर पुलिस ने दोनों तरफ से बेरेकेट लगा कर एक प्रकार से घेरा हुआ था। बाकी दोनों तरफ ऊंची दिवारें। इसी कारण 23 दिसम्बर को प्रदर्शन को दौरान बाबा रामदेव व जनरल वी के सिंह के नेतृत्व वाले आंदोलनकारियों को पुलिस की लाठी चार्ज का बुरी तरह शिकार होना पडा। पुलिस सुत्रों के कारण जंतर मंतर ही प्रदर्शनकारियों को नियंत्रण करने की दृष्टि से इंडिया गेट व विजय चैक से अधिक सुविधाजनक है। इसके बाद रामलीला मैदान। वहां भी चारों दरवाजों पर पुलिस की घेराबंदी के कारण प्रदर्शनकारियों को पुलिस सहजता से अंकुश में रख लेती है। शायद इसी कारण पुलिस ने जंतर मंतर व रामलीला मैदान दोनों जगह पर प्रदर्शन की इजाजत दी है। दामिनी के मौत के बाद जनाक्रोश के बीच दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा जंतर मंतर पर आक्रोशित प्रदर्शनकारियों के बीच में ऐसे समय पर पंहुचने का दुशाहस करना अतिविशिष्ठ सुरक्षा से जुडे विशेषज्ञों के गले नहीं उतरी। उनका तर्क था कि जब वहां पर लोग अरविन्द केजरीवाल आदि जनांदोलनकारियों को लोग राजनेता बता कर उनसे दूरी बना रहे थे तो ऐसे समय में किसी राजनेता को ऐसे आंदोलनों से दूर ही रहना श्रेयकर है। यही नहीं कई आंदोलनकारियों ने शीला दीक्षित के आने से एकाद घण्टे पहले सीपीआई के झण्डे, बैनर व पोस्टर लिये दो दर्जन लोगों को उस समय वहां से दूर करने का प्रयास किया जब वे आंदोलन के बीच में बेठ चूके थे। यही नहीं आज प्रातःकाल से ही यहां पर आंदोलनकारियों का चारो तरफ से पुलिस प्रशासन की तमाम अवरोधों को नजरांदाज करते हुए यहां पंहुचे। यहां जो आ रहा था सरकार के कृत्यों से आक्रोशित था। युवाओं में काफी आक्रोश था। सुबह से कुछ समर्पित युवाओं ने जंतर मंतर के अशोक रोड़ वाली तरफ बेरिकेट पर दामिनी को श्रद्धाजलि देने व दामिनी को न्याय दो/दामिनी के बलात्कारियों को फांसी दो के गगनभेदी नारों से गूंजायमान कर दिया। परन्तु आक्रोशित आंदोलनकारियों को दिनभर शांतिपूर्ण आंदोलन से जोडे रखने में अरविन्द गौड़ व उनके काफी कामयाब रहे। इसके बाबजूद कई प्रकार के आक्रोशित आंदोलनकारियों को पुलिस की तरफ कूच करने से 22 व 23 दिसम्बर के पुलिसिया दमन से सबक सिखे आंदोलनकारियों ने बड़ी मुश्किल से काबू रखा। यहां पर आज जहां अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसौदिया, गोपाल राय, कुमार विश्वास, प्रसांत भूषण, योगेन्द्र यादव ने भी जंतर मंतर में घण्टों तक सडक पर अन्य आंदोलनकारियों के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इसके अलावा मैं, जगदीश भट्ट व मोहन सिंह रावत के साथ इस आंदोलन के सहभागी रहे। जंतर मंतर पर दिन भर ही नहीं देर रात तक दामिनी को श्रद्धाजलि अर्पित करने वालों का तांता ही लगा रहा। जंतर मंतर पर पंहुच कर श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में पूर्व सेना प्रमुख वी के सिंह, अन्तरराष्ट्रीय प्रेरक शिव खेड़ा, उदित राज सहित अनैक प्रतिष्ठित व्यक्ति यहां पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने पंहुचे। इनमें से अधिकांश बिना किसी भाषण दिये या मीडिया के सामने आये हुए चुपचाप मौन श्रद्धांजलि अर्पित करके चल दिये।
जंतर मंतर पर दिन से रात तक दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी डटे रहे। इंडिया गेट से लेकर पूरी नई दिल्ली एक प्रकार की छावनी बना डाली थी। मेट्रो संसद से इंडिया गेट तक पंहुचने वाले मेट्रो के दस स्टेशनों में आवागम ही बन नहीं किया गया अपितु इंडिया गेट से जुड़ने वाले हर मार्ग पर चलने वाली बसों का आवागन ही बंद कर दिया गया हो परन्तु इसके बाबजूद हजारों की संख्या में छात्र-छात्राओं सहित आम जनता ने संसद की चैखट जंतर मंतर पर हजारों की संख्या में पंहुच कर दामिनी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया। नई दिल्ली के चारों तरफ हजारों की संख्या पुलिस व अर्ध सैनिक बलों को तैनात किया गया था। सरकार ने जमुना पार से नई दिल्ली में घुसने की अगर कोई जलशैलाब कोशिश करता तो उसको आईटीओ दिल्ली सचिवाल के समीप ही सैकडों पुलिस कर्मी व बेरेकेट लगाने का भी तमाम प्रबंधन किये हुए था।
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