आजादी के 65 साल बाद भी फिरंगी भाषा की गुलामी का कलंक क्यों ढो रहे हैं भारतीय 

सर्वोच्च न्यायालय में कब मिलेगा भारतीय भाषाओं में न्याय




सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए सोनिया के दर पर पुलिसिया दमन के बाबजूद 4 दिसम्बर से  श्यामरूद्र पाठक व साथियों का सत्याग्रह जारी

आजादी के 65 साल बाद भी देश में अंग्रेजी गुलामी ढोना किसी देशद्रोह से कम नहीं


भले ही देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिले 65 साल हो गये हैं परन्तु आज भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं में नहीं अपितु अंग्रेजों की भाषा में दिया जाता है। इसी कलंक को दूर करने की मांग को लेकर यानी देश के सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग को लेकर सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी के आवास 10 जनपत नई दिल्ली पर देश के अग्रणी वैज्ञानिक व भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा श्यामरूद्र पाठक के नेतृत्व  भारतीय भाषाओं के लिए समर्पित आंदोलनकारियों का सत्याग्रह 4 दिसम्बर के बाद पुलिसिया दमन के बाबजूद निरंतर जारी है। परन्तु न तो कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी एक सप्ताह से अपने दर पर आंदोलन कर रहे आईआईटी दिल्ली के विख्यात शौध छात्र रहे वैज्ञानिक श्यामरूद्र पाठक, गीता मिश्रा व विनोद पाण्डे जैसे समर्पित गांधीवादी आंदोलनकारियों की सुध ले पायी व नहीं देश का तथाकथित जागरूक मीडिया को भी  सप्रंग सरकार की अध्यक्षा के आवास पर कई दिनों से चल रहे इस आंदोलन की सुध तक नहीं ली। 65 सालों में देश में देश से अविलम्ब अंग्रेजी को शासन प्रशासन से दूर करने का संकल्प लेने वाले महात्मा गांधी के नाम पर शासन करने वाली कांग्रेस का लम्बा शासन रहा। इस देश में जनवाद व समाजवाद की दुहाई देने वाले तीसरे मोर्चे की सरकारें रही। इस देश में भारतीय संस्कृति व राष्ट्रवाद के स्वयंभू झण्डेबरदार रहे अटल आडवाणी की ‘हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान’का जाप करने वाली सरकार भी रही। परन्तु किसी ने इसे देश के माथे से गुलामी के इस कलंक को दूर करने का अपना प्रथम दायित्व तक नहीं निभाया।
लोकतंत्र में पूरा तंत्र स्वतंत्र से संचालित होना चाहिए। परन्तु भारत का दुर्भाग्य यह है कि यहां देश की राष्ट्रभाषा या राजभाषा हिन्दी सहित किसी भी भारतीय भाषाओं में देश की सबसे बडी अदालत में न्याय ही नहीं मिलता है। वहां पर भाारतीय भाषाओं पर उसी फिरंगी भाषा अंग्रेजी की गुलामी की बेडियां लगी हुई हैं जिससे मुक्ति के लिए देश के लाखों शहीदों ने अपनी शहादतें दी। उनकी शहादत से आजादी हासिल करने के बाबजूद देश के साथ इतना बडा विश्वासघात देश के हुक्मरानों ने किया कि देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी सहित किसी भी भारतीय भाषाओं में न तो देश में न्याय ही मिलता है व नहीं सम्मान। पूरा तंत्र एक प्रकार से अंग्रेजी भाषा की गुलामी आजादी के 65 साल गुजर जाने के बाद भी बेशर्मी से ढो रहा है। वह भी वह देश जो स्वयं को विश्व की सबसे बडा लोकतंत्र होने का दंभ भरता है । वह देश जो विश्व की आर्थिक व सामरिक महाशक्ति बनने के लिए स्वभू हंुकार भर रहा है।
देश की आजादी को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिए संसद से सडक तक सरकार को धिक्कारने के लिए मैने  भाारतीय मुक्ति सेना के प्रमुख के रूप में 1989 से आज तक निरंतर देश की आजादी को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए समर्पित हॅू। 21 अप्रेल 1989 को संसद की दर्शक दीर्घा में मैने इसी आशय की नारेबाजी भी की थी। उसके बाद संघ लोकसेवा आयोग पर चले  राजकरण सिंह व पुष्पेन्द्र चोहान के नेतृत्व वाले आंदोलन में भी भाग लिया था । तत्कालीन आई आईटी दिल्ली के शोध छात्र रहे श्याम रूद्र पाठक के अनशन आंदोलन में भी सहभागिता निभायी थी।  परन्तु इतने साल बीत जाने के बाद भी अभी इस दिशा में कए कदम भी गुलामी के कलंक को मिटाने के लिए देश के हुक्मरान कुछ करने के लिए तैयार नहीं। इसमें सरकार गांधी व भारतीय संस्कृति की दुहाई लेने वाली कांग्रेस व भाजपा की भी रही। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी इस मुद्दे पर देश को निराश किया।
आज सोनिया मनमोहन की सरकार देख कर अफसोस हो रहा है कि देश के वरिष्ट वैज्ञानिक व भाषा आंदोलनकारियों के इस आंदोलन की जो शर्मनाक उपेक्षा हो रही है उसके लिए जहां सप्रंग सरकार की अध्यक्षा सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जिम्मेदार हैं वहीं देश के तमाम राजनैतिक दल व बुद्धिजीवी भी कम दोषी नहीं है।  डा श्यामरूद्र पाठक को आशा थी कि  देश की मीडिया, भारतीयता के पक्षधर राष्ट्रभक्त उनके आंदोलन का समर्थन करने के लिए आगे आते। परन्तु सब जमीन पर उतने में असफल रहे।  प्यारा उत्तराखण्ड से अपने आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय भाषाओं के समर्पित पुरोधा व वैज्ञानिक श्यामरूद्र पाठक ने बताया कि वे व उनके साथी विगत कई महिनों से लेकर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह व ओम प्रकाश कोहली, राजद के लालू प्रसाद यादव व डा रघुवंश प्रसाद सिंह, सपा प्रमुख मुलायम सिंह, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह व आस्कर फर्नाडिस, वामदलों व दु्रमुक नेताओं सहित अनैक वरिष्ट नेताओं से इस सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं का प्रयोग किये जाने की मांग को लेकर भेंट कर चूके हैं। इसी मांग को लेकर वे 45 दिनों से सप्रंग प्रमुख सोनिया गांधी से मिलने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु सोनिया गांधी के दरवारियों ने उनसे मिलने का समय तक नहीं दिया। वहीं इन 45 दिनों में आस्कर फर्नाडिस से 5 बार मिल चूके हैं परन्तु सोनिया गांधी से मिलना तो रहा दूर उनके यहां से इस आशय का सामान्य शिष्टाचार निर्वाह किया जाने वाला जवाब तक नहीं आया। सप्रग सरकार व प्रमुख द्वारा इस मुद्दे पर शर्मनाक चुप्पी रखी देख कर भारतीय भाषाओं के पुरोधा श्यामरूद्र पाठक व उनके दो भाषा आंदोलनकारियों गीता मिश्रा व विनोद पाण्डे ने 4 दिसम्बर से सोनिया गांधी के 10 जनपत स्थित आवास पर सत्याग्रह प्रारम्भ किया। गांधी का नाम जपने वाली कांग्रेस की प्रमुखा ने गांधीवादी सत्याग्रहियों से मिलने के बजाय पुलिस से उनको प्रताडित करके तुगलक रोड थाने में गैरकानूनी ढ़ग से बिठाये रखते है। आंदोलनकारी गीता मिश्रा के अनुसार वे डा श्यामरूद्र पाठक के नेतृत्व में पुलिस द्वारा छोडे जाने के बाद फिर से 10 जनपत सोनिया गांधी के आवास पर सत्याग्रह के लिए बैठ जाते है। 4 दिसम्बर के बाद निरंतर पुलिस व सत्याग्रहियों में यही प्रक्रिया चल रही है। पुलिस उनको 10 जनपत से थाना ले जाते समय उनको जेल भेजने के नाम पर उठाती है और फिर घण्टों थाने में बंद करने के बाद फिर छोड़ देती है। शायद न तो सोनिया गांधी व नहीं उनके किसी नेता तथा वर्तमान पत्रकारों को इस बात का भान है कि डा श्याम रूद्र पाठक ने दिल्ली आईआईटी के प्रतिभाशाली शौध छात्र के साथ साथ देश के अग्रणी अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी रहे। उन्होंने आईआईटी दिल्ली में अपना शौध पत्र हिन्दी भाषा में ही स्वीकार करने के लिए ऐतिहासिक अनशन किया था जिस पर संसद ने उनसे अपना अनशन समापन करने की संयुक्त अपील की थी। उनके आंदोलन की बदोलत हिन्दी भाषा में लिखा उनका शौध पत्र को दिल्ली आईआईटी ने स्वीकार किया। राजीव गांधी के शासनकाल में तत्कालीन विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने श्यामरूद्र पाठक का लम्बा अनशन का समापन कराया था।  भाषा आंदोलनकारी श्यामरूद्र पाठक ने ऐलान किया कि सरकार जब तक उनको देश की सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती तब तक उनका आंदोलन अब जारी रहेगा। उन्होंने सोनिया गांधी सहित तमाम राजनेताओं से पुरजोर अपील की कि अविलम्ब देश की सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए कदम उठा कर लोकशाही को जीवंत बनाने के अपने दायित्व का निर्वहन करें। मैं भारतीय भाषाओं के सम्मान के लिए समर्पित रहे अपने आंदोलनकारी साथी ओम प्रकाश हाथपसारिया से भी इस मुद्दे पर काफी विचार विमर्श करके इस नतीजे पर पंहुचा की, इस देश में नेताओं, नौकरशाहों व बुद्धिजीवियों तथा तथाकथित समाजसेवियों के दिलो व दिमाग पर फिरंगी भाषा अंग्रेजी के गुलामी का शिकंजा पूरी तरह कस गया है। वे अंग्रेजी मोह में इतने अंधे हो गये हैं कि उनको देश के स्वाभिमान व लोकशाही का इतना अपमान कहीं दिखाई तक नहीं देता। आज जरूरत है देश में एक नये आंदोलन की जो इस देश से गुलामी की जंजीरों को उखाड़ फेंक सके। तभी न्यायालय से लेकर कार्यपालिका व विधायिका से अंग्रेजी भाषा की गुलामी दूर होगी और भारतीय भाषाओं को देश अंगीकार करेगा। नहीं तो आज देश में पूरी तरह फिरंगी गुलामी का शिकंजा कस गया है। देश में सबसे बडा भ्रष्टाचार देश की लोकशाही को फिरंगी जुबान से संचालित करना है। देश कब मुक्त होगा इस गुलामी से। इसी आश में इसी दिशा में एक मजबूत आंदोलन के लिए खुद को तैयार कर रहा हूॅ। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

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