अविलम्ब अध्यादेश लाने के बजाय न्याय की मांग  करने वालों पर फर्जी मुकदमे बनाने से बाज आये सरकार


अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए पूर्व थल सेना प्रमुख व बाबा रामदेव पर प्रतिशोध में मुकदमें दर्ज 

जनाक्रोश प्रकरण मे दमनकारी पुलिस अधिकारियों पर नहीं यातायात व पीसीआर सहायक उपायुक्तों पर क्यों गिरा रही है गाज

नई दिल्ली।(प्याउ)। आक्रोशित जनता की मांग के अनुसार सरकार बलात्कारियों को कठोर सजा देने के लिए अध्यादेश लाने के या संसद का विशेष सत्र बुला कर कठोर कानून बनाने के बजाय न्याय की मांग करने वाले बाबा रामदेव व पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह पर मामला दर्ज करने और शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों पर दमनकारी कहर ढाने का आत्मघाती काम कर रही है।  दमनकारी पुलिस अधिकारियों को दण्डित करने के बजाय वह यातायात व पीसीआर के सहायक उपायुक्तों पर गाज गिरा कर जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रही है।
सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगेन्द्र सिंह , पूर्व न्याय मंत्री शांति भूषण सहित तमाम कानून के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को जनाक्रोश का दमन करने के बजाय तुरंत बलात्कार की धारा 376 में महज दो लाइन जोडते हुए इसकी न्यूनतम सजा उम्रकैद और अधिकतम सजा फांसी करना चाहिए था ।इसके ड्राफ्टिंग केवल 15 मिनट के भीतर हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीबी सांवत के अनुसार भी सरकार अध्यादेश लाकर बलात्कार के अपराध की सजा फांसी बना कर इसे  छह माह के भीतर संसद की मंजूर भी कराना होगा। वहीं पूर्व कानून मंत्री शांतिभूषण का भी कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों में लोगों का गुस्सा ठंडा करने के लिए अध्यादेश ही सही रास्ता है। यदि सरकार को समय गंवाये बिना तुरंत सर्वदलीय बैठक बुला कर इस आशय का अध्यादेश निकाल देती तो देश को ऐसा जनाक्रोश नहीं झेलना पडता।
 एक छात्रा से 16 दिसम्बर को हुए दुराचार के मामले में जनभावनाओं के अनरूप न्याय की ठोस पहल न करके जनाक्रोश को दूर करने में नकाम रही सरकार ने जनता की आंखों में धूल झोकने के लिए दिल्ली पुलिस के दो सहायक उपायुक्तों को निलम्बित कर दिया है । दिल्ली के उप राज्यपाल तेजिन्दर खन्ना ने अपनी अमेरिका की अपनी यात्रा बीच में ही छोड़कर राजधानी वापस लौटने के बाद अपने संबाददाता सम्मेलन में दमनकारी पुलिस अधिकारियों के बजाय ट्रेफिक व पीसीआर के सहायक उपायुक्तों को निलंबित करने का ऐलान किया। उप राज्यपाल ने पुलिस आयुक्तों मोहन सिंह डबास (ट्रैफिक) और यागराम (पीसीआर) को निलंबित कर दिया है। सरकार की इस मामले में स्थिति इतनी दयनीय  है  कि वह अध्यादेश निकालना तो रहा दूर वह एक सप्ताह के भीतर इस मामले में आरोप पत्र दाखिल भी दाखिल नहीं कर पायी।
सरकार अपनी असफलता छुपाने के लिए व प्रतिशोध में 23 दिसम्बर को जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन के सिलसिले में दर्ज एफआईआर में पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह और योग गुरु बाबा रामदेव पर मामुली से लाठी चार्ज को  आधार बना कर मामला दर्ज करा चूकी है। जबकि यहां पर बाबा रामदेव व उनके समर्थकों ने  बहुत सुझबुझ से काम ले कर शांतिपूर्ण आंदोलन कर सांयकाल वापस चले गये थे। देश की जनता इसे  राजनैतिक प्रतिशोध मान रही है। जनता यह देख कर हैरान है कि सरकार बलत्कारियों को दण्डित करने के लिए ठोस कानून बनाने के बजाय इसकी शांतिपूर्ण मांग कर रहे लोगों पर फर्जी मुकदमे व दमन क्यों कर रही है। अगर सरकार समय  पर अध्यादेश ले आती और दमनकारी पुलिस अधिकारियों को दण्डित करती तो देश में यह जनाक्रोश इतना नहीं बढ़ता। इसके बजाय सरकार आम जनता को परेशान करने के लिए यातायात को अवरूद्ध कर रही है। सरकार के इस नक्कारेपन से जहां लाखों लोगों को देशभर में सडकों पर उतरना पडा वहीं सैकडो लोग घायल हो गये और पुलिस के जवानों को अपनी शहादत देनी पड़ी। सोनिया गांधी के अलावा देश का कोई बडा नेता आंदोलनकारियों  से मिलने का साहस तक नहीं कर पाया। सरकार  को चाहिए कि अभी समय गंवाये बिना इस आशय का तुरंत अध्यादेश ला कर और फर्जी प्रतिशोध के मुकदमे वापस लेते हुए दमनकारी पुलिस अधिकारियों को दण्डित करे।

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