देश को लूटने व लुटाने में चंगैंज व फिरंगियों को मात दे गये देश के हुक्मरान


धर्म, जाति, क्षेत्र, नस्ल, रंग, लिंग व भाषा के नाम पर अंध तुष्टिकरण देश व समाज के प्रगति में जहां घातक होता है वहीं न्याय का भी गला घोंटता है। जहां तक केवल मुस्लिम समाज के लोगों के लिए उनकी धार्मिक यात्रा के लिए (हज के लिए) सरकारी सहायता देना न केवल अन्य समाज के लोगों में असंतोष पैदा करता है अपितु यह मुस्लिम हज यात्रा के मूल सिद्धांतों के खिलाफ भी है। जिसमें हज यात्रा केवल अपनी मेहनत के धन से की जानी चाहिए। देश में सरकारी सहायता हज यात्रा के लिए देने का शुभारंभ जिसने भी किया वह केवल तुष्टिकरण के लिए किया गया। आपके अनुसार 1973 से सरकार 40 साल से हज यात्रा पर सरकारी सहायता देती है। यहां से हज यात्रा के लिए मक्का जाने के लिए हवाई जहाज इत्यादि के खर्चे के लिए 70 हजार रूपये से अधिक का खर्चा प्रतिव्यक्ति को दे रही है। न्यायालय ने भी इस व्यवस्था पर प्रश्न खडे किये कि केवल धर्म विशेष के लिए इस प्रकार की सहायता देना व अन्य धर्मोवलम्बियों को इस प्रकार की धार्मिक यात्राओं के लिए नहीं देना किसी भी सूरत में सामाजिक न्याय नहीं है। इसके लिए जहां कांग्रेस देश में इन 40 सालों में अधिकांश समय शासन में रहने के कारण मुख्य दोषी हैं परन्तु अन्य दल भी कम दोषी नहीं है। जनता पार्टी के शासनकाल में हो या राजग के शासन काल में या वीपीसिंह, देवगोड़ा, गुजराल इत्यादि के शासन काल में देश की अधिकांश दल देश की सत्ता में आसीन रहे। चलो अन्य दलों पर कांग्रेस की तरह तुष्टिकरण का आरोप लग सकता है परन्तु भाजपा के नेतृत्व में जब वाजपेयी प्रधानमंत्री दो बार राजग शासन में रहे तो उन्होंने क्यों नहीं इस तुष्टिकरण पर अंकुश लगाया। सच्चाई यह है कि इस देश में सत्ता से बाहर रह कर कोई भी दल चाहे देशहित में कितने ही सब्जबाग जनता को दिखाये या आदर्शो व जनहित की बात करे परन्तु सत्ता में आसीन होते ही इन सभी दलों का चरित्र व कार्यप्रणाली का पूरी तरह से कांग्रेसीकरण हो जाता है। सत्ता में आसीन होने के बाद ये दल सभी तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार व देश को कमजोर करने वाले उन तमाम हथकण्डों को अपनाते हैं जिसका ये सत्ता में रहने से पहले सडकों या संसद में विरोध करते है। इस देश का दुर्भाग्य यह है कि यहां सत्तासीन होते ही इन नेताओं को देश की नहीं अपनी कुर्सी की ही चिंता हर पल सत्ताती है। तुष्टिकरण ही नहीं भ्रष्टाचार, बंगलादेशी घुसपेटियों, आतंकवाद, खुदरा व्यापार में विदेश निवेश सहित तमाम मुद्दों पर विपक्ष में रह कर गरियाने वाले सत्तासीन होते ही वही कृत्य करने में जुट जाते हैं जिसका वे कुछ समय पहले तक विरोध करते नजर आते थे। इसलिए इस देश के अधिकांश राजनेता ही नहीं आम आदमी का भी इतना पतन हो जाता है कि वह देश, समाज व मूल्यों की चिंता छोड कर केवल अपने निहित स्वार्थ के लिए ही समर्पित रहता है। देश को आज अधिकांश चंगेज व फिरंगियों की तरह सत्तासीन होते ही लूटने में कोई कसर नहीं कर रहे है, सच्चाई तो यह है कि आजादी के बाद इन हुकमरानों (नेताओं, नौकरशाहों, समाजसेवियों, उद्यमियों व अन्य) ने देश को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहां देश के हित में बहुत कम अपने निहित स्वार्थ के लिए ही अधिकांश देश को लूटने व लुटाने  में यह असरदार तबका, चंगैंज व फिरंगियों को भी मात दे रहे है। देश का दुर्भाग्य यह हे कि यहां पर पूरी व्यवस्था एक प्रकार  से आम आदमी की पंहुच कोसों दूर हो गयी है। जो वर्तमान सत्तासीन या व्यवस्था के विकल्प भी बनने की हुंकार भर रहे हैं वो दो कदम चल कर खुद लडखडाने लग जाते है।

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