देश के लिए भष्मासुर बन सकते हैं अकबरुद्दीन व राज 


देश के लिए आत्मघाती साबित हो रही है मनमोहन सरकार 

लातों के भूत बातों से नहीं मानते है बापू जी!

जिस प्रकार से आंध्र प्रदेश के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी जैसे विक्षिप्त धर्मांध व देश की एकता अखण्डता को चुनौती देने वाले व्यक्तियों पर अगर समय पर सरकार अविलम्ब अंकुश नहीं लगाती हे तो सरकार के इस संरक्षण के कारण इस प्रकार के लोग एक न एक दिन भारत के लिए भष्मासुर बन जायेगे। जिस प्रकार से देश की गैरत को सीधे धिक्कारने व ललकारने वाला बयान इस विधायक ने दिया उसके तुरंत बाद भारत सरकार को चाहिए था कि उसे देश में आने की प्रतीक्षा करने के बजाय 24 घण्टे के अंदर विदेश में ही पकड़  कर जेल भेज देना चाहिए था। उसकी विधानसभा सदस्यता अब तक खत्म कर देनी चाहिए थी। परन्तु मनमोहन सरकार से यह सब आश करना  एक प्रकार से नासमझी ही होगी। यह सरकार खुद भारत के लिए एक विकराल समस्या बन गयी है। जो सरकार संसद हमले के दोषी पाक-अमेरिका के गुर्गे अफजल गुरू को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा दिये जाने के कई साल बीत जाने के बाद भी फांसी की सजा देने की हिम्मत तक न जुटा पा रही हो वह देश के सम्मान व हक हकूकों की क्या  रक्षा करेगी। जब तक देश में निहित स्वार्थ के लिए देश के हितों को दाव पर लगाने वाली तुष्टिकरण की प्रवृति राजनैतिक दलों में रहेगी तब तक देश को पतन के गर्त से उपर कोई नहीं उबार सकता है।
इस प्रकार की प्रवृति को जो व्यवस्था व सरकारें तुरंत अंकुश में नहीं रखती हे वह खुद देश व समाज के लिए एक समस्या बन जाती हैं। जिस प्रकार से मनमोहन सरकार एक बलात्कार की समस्या का निदान तक देश व्यापी जनभावनाओं के अनरूप नहीं कर पा रही है। पूरे देश की जनता सड़कों पर है। देश विदेश में सरकार की नपुंसकता के कारण भारत की छवि धूमिल हो रही है। परन्तु क्या मजाल वह देश में दावानल की तरह बढ़ रहे बलात्कार के दोषियों को कड़ी सजा देने के लिए कानून बनाने का काम तक नहीं कर पा रही है।  देश की  जनता में भारी आक्रोश 16 दिसम्बर को दिल्ली में एक 23 वर्षीया छात्रा से हुए विभत्स बलात्कार के बाद देखने को मिला। पूरे देश की जनता सडकों पर उतरी हुई है। इन कातिलों को सजा देने के लिए वर्तमान कानून में संसोधन करके इनको फांसी की सजा देने की मांग न केवल जनता कर रही है अपितु अधिकांश पार्टियों के राजनेता, समाजसेवी सहित कानूनविद भी कर रहे हे। इन अपराधियों को अप्रत्यक्ष रूप से बचाव करते हुए जिस प्रकार से बिना मांगे सलाह आसाराम बाबू जैसे धार्मिक व्यक्ति कर रहे हैं। वे बहुत ही गैरजिम्मेदार रूप से  कहते हें कि पीडि़ता को इन राक्षसों को भाई कहना चाहिए था तो वे इतनी निर्दयता से व्यवहार नहीं करते। आसाराम जेसे संत या अन्य लोग भूल जाते है कि इस प्रकार के बलात्कारी  हो  या समाज को तबाही के गर्त में डाल कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने वाले अकबरूद्रीन ओवैसी, या राज आदि ये लातों के भूत हैं ये बातों से नहीं अपितु लातों से मानते हैं।
इस प्रकरण की गंभीरता को समझे बिना इस प्रकरण पर मीडिया में बिना समझे अपने विचार प्रकट करने वाले नेताओं को चाहिए कि मीडि़या इन दिनों इन सबको इस शर्मनाक सामुहिक बलात्कार के मामले में जोड़ कर दिखा रहा है। इसलिए संघ प्रमुख सहित तमाम लोगों को चाहिए कि वह केवल इस काण्ड के लिए सरकार से कडे कानून बनाने की ही बात करें । यह सर्वविदित है कि देश में अंधा पश्चिमी अनुसरण व अपराधियों के मध्य कानून व्यवस्था का भय समाप्त होने के कारण इस प्रकार के काण्ड आये  दिन समाज में हो रहे है।  देश में संस्कारवान नागरिक बनाने में यह पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था पर आधारित शिक्षा पूरी तरह असफल हो गयी है। हमारा समाज अपनी संस्कृति को भूल कर घनघोर अनैतिक बन गया है। इसमें केवल देश के  नहीं विदेशी भी सम्मलित हैं। जिस प्रकार से दिल्ली के कनाट प्लेस में इसी सप्ताह यमन के लोगों द्वारा एक होटल की महिला के साथ छेडखानी का मामला सामने आया हो या नोएडा में एक युवती की सामुहिक बलात्कार के बाद हत्या का मामला हो। सभी मामलों में एक बात साफ है कि आज देश में कानून व्यवस्था  पूरी तरह लडखडा चूकी हे। संविधानिक पदों पर नक्कारें व खुदगर्ज  लोगों के आसीन होने के बाद इस प्रकार से समाज में आरजकता फैलती  है।
सबसे हेरानी की बात यह हे कि वर्तमान मनमोहन सरकार को मानों सांप ही सुंघ गया है। वह कोई ठोस कानून बनाने के बजाय लोगों के गुस्से को अपने नक्कारेपन से और बढाने का काम ही कर  रही हे। सरकार इस मामले में कितनी गैरजिम्मेदार है कि उसने अभी तक इस कानून में न तो ठोस परिवर्तन के लिए अध्यादेश ही निकाला व नहीं सर्वदलीय बैठक का ही आयोजन किया। सरकार इसे केवल राजनैतिक वर्चस्व के तौर पर ले रही है। जबकि इसे जनहित व राष्ट्रहित में तुरत लेना चाहिए। देश की आहत जनभावनाओं का पुलिसिया दमन करने के बजाय उसका सम्मान करने का दायित्व सरकार का है। इस घटना के बाद  न तो दिल्ली की मुख्ययमंत्री ने दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में सुधार के लिए कोई ठोस काम किये व  नहीं इस दिशा में उनका कोई ध्यान तक है। इसी खराब परिवहन व्यवस्था के कारण आज आये दिन कितनी घटनायें व परेशानियां यहां के लाखों आदमियों को झेलनी पड़ रही है। कब कौन दामिनी की तरह किसी नरपिचाशों का शिकार बन जाये इसे रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अभी पटरी से उतर चूकी अपनी परिवहन व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए पहल तक नहीं की। इस तरफ न तो मीडिया का ध्यान है व नहीं सरकार का। सरकार केवल बयानी जमा खर्च के अलावा धरातल में कोई ठोस काम नहीं कर रही है। इससे देश की हालत दिन प्रति दिन बिगड रही है। भारत को चीन, पाक या अमेरिका जेसे दूश्मनो ंसे अधिक खतरनाक यहां के उदासीन व भ्रष्टव्यवस्था पंहुचा रही है। जब तक इसको सुधारा नहीं जायेगा देश की हालत में कोई सुधार नहीं हो सकता। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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