शीला सरकार की डीटीसी सेवा दुरस्त न रहने से हुआ दामिनी के साथ सामुहिक बलात्कार


जनता की आंखों में धूल झोकने के बजाय दिल्ली  में परिवहन सेवा  को सुधारे शीला 

डीटीसी दुरस्त रहती तो बच सकती थी दामिनी 


अगर दिल्ली परिवहन निगम की बस सेवा दुरस्त रहती तो 16 दिसम्बर को दिल्ली में दामिनी के साथ न सामुहिक बलात्कार की पूरे विश्व में भारत को शर्मसार करने वाली घटना घटित होती व नहीं दामिनी की जान ही जाती। दिल्ली सरकार की परिवहन व्यवस्था पटरी से उतरने के कारण यह हादशा हुआ। जिसने पूरे विश्व में भारत की छवि कलंकित कर दी।  शीला सरकार की इसी उदासीनता के कारण आज भी दिल्ली की सड़कों पर कितने लोग परेशान है और कितनी और महिलायें दामिनी की तरह कभी भी ऐसे हादसे  का शिकार बन सकती है।  दिल्ली में शीला सरकार की जनहितों के प्रति घोर उदासीनता के कारण कभी एशिया की सर्वश्रेष्ठ परिवहन व्यवस्था व दिल्ली के लोगों की सेवा में समर्पित डीटीसी यानी दिल्ली परिवहन सेवा पूरी तरह चरमरायी है। शीला सरकार की उदासीनता के कारण डीटीसी पूरी तरह पटरी से उतर गयी है। बसें सड़कों पर यात्रियों को सही सेवा दे रही है या नहीं, बसें हर रूट पर सही समय पर नियमित रूप से चल रही है या नहीं तथा इन बसों की स्थिति क्या है? इसको जांचने के लिए न तो शीला सरकार के पास समय है व नहीं डीटीसी के अधिकारियों को इसकी चिंता है। नई दिल्ली क्षेत्र में ही बसों के लिए लोगों को लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ता है। दिल्ली में दोपहर में ही घण्टों इन बसों की इंतजारी में लोग परेशान रहते है। पहले तो बसें आती नहीं, आती है तो दो दो तीन तीन एक साथ आ कर, यात्रियों को ले जाने के बजाय एक दूसरे से सडक पर दौड़ लगाने में लग जाती है।  दिल्ली के दूरस्थ क्षेत्रों में दिन में ही स्थिति पूरी तरह चरमरायी हुई है। जब दिन में दिल्ली में परिवहन सेवा का बुरा हाल है तो रात्रि आठ बजे के बाद की दिल्ली दूरस्थ क्षेत्रों में परिवहन की बस सेवाओं के बारे में तो कहना ही बेकार है। अगर बस सेवा सुचारू रहती तो दामिनी को इन डगरमार चार्टड बसों के नाम पर चलने वाली बसों का शिकार नहीं होना पड़ता। परन्तु सरकार को तो डीटीसी परिवहन सेवा को सुधारने की सुध तो रही नहीं उल्टा वह अपने निहित स्वार्थ के लिए किन लोगों की सेवायें में किन लोगों की  400 कलस्टर बसें है।
परिवहन व्यवस्था  अगर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित दामिनी के साथ हुए इस घटना के बाद देश में भड़के जनाक्रोश के बाद भी अपनी सरकार की लापरवाही से पूरे भारत के सर का शर्मसार करने वाली गलती को तत्काल ठीक करने के बजाय जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए कभी शीला तथा उसकी सरकार के कुशासन जंतर मंतर पर दामिनी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए वहां पर सरकार के कुशासन व नपुंसकता के विरोध में धरने में हजारों प्रदर्शनकारियों को उत्तेज्जित करने जंतर मंतर पर कानून व्यवस्था का नजरांदाज करके जंतर मंतर पर मोमबत्ती जलाने  पंहुचती। उन्हें इसकी भी चिंता नहीं रही कि उनके इस कार्य से वहां पर स्थिति बिगड सकती थी, कई निदोर्ष लोगों की जाने जा सकती थी। परन्तु उनको इसकी चिंता कंहा। इसके बाद वह जिस प्रकार से 2 जनवरी को राजघाट पर शांति यात्रा निकाल रही हैं। उनको इसका भान ही नहीं कि इस घटना का मूल कारण उसकी सरकार द्वारा उपेक्षित परिवहन व्यवस्था है। इसके कारण हर दिन लाखों लोग दिन रात परेशान रहते है। अगर शीला दीक्षित में जरा सा भी विवेक होता तो वह डीटीसी के कुल 791 रूटों में केवल 254 पर ही सुचारू नहीं पाया जाता। अब डीटीसी 488 बस रूटों को ठीक ढ़ग से संचालित करने की बात कह रही है। दिल्ली के परिवहन मंत्री रामाकान्त गोस्वामी के अनुसार इस समय डीटीसी के पास पर्याप्त 5800 बसें है। इनमें से लो फलोर की 3500 व वातानुकुलित 1800 बसें तथा 400 कलस्टर सेवा वाली बसें भी है। लो फलोर व वातानुकुलित मंहगी बसें सेवा में ली गयी हैं। जो दिल्ली के यात्रियों के हिसाब से दिल्ली सरकार के मंत्री को पर्याप्त लगती है।  परन्तु इनके बजाय पुरानी तरह की बसें लेते तो डीटीसी के पास ज्यादा बसें भी रहती और यात्रियों को भी ज्यादा ढोती। वातानुकुलित बसों में इतना खर्च क्यों?  हकीकत यह है कि डीटीसी की 85 रात्रि बस सेवाओं में से केवल 45 सेवायें ही संचालित  हो  रही है। मई 1948 में स्थापित दिल्ली परिवहन निगम सेवा की आज शीला सरकार के कुशासन के कारण इतनी दुर्दशा हो जायेगी इसकी दिल्ली के आम नागरिकों ने कल्पना भी नहीं की होगी। सरकार बसों की सेवायें चुस्त दुरस्त बनाने के बजाय हवाई घोषणायें करने में जुटी हुई है। कभी होमगार्ड तो कभी शांति मार्च तो कहीं जंतर मंतर पर मोमबत्ती जलाने में। इससे लगता है कि इन राजनेताओं को न तो दिल्ली के आम आदमी की व्यथा का ही मालुम है तो समाधान कहां से करेंगे।

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