जंतर मंतर पर दामिनी प्रकरण में प्रमुखता से  उठाया 5 जनवरी के उपवास में ‘मुजफरनगर काण्ड-94 का प्रकरण 


पुलिस प्रशासन द्वारा तीन दर्जन से अधिक महिलाओं के साथ किये गये सामुहिक बलात्कार के दोषियों को 18 साल बाद भी सजा न दे पायी देश की व्यवस्था 


 दामिनी प्रकरण पर जनांदोलन का केन्द्र बने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर ‘छात्र-युवा संघर्ष समिति’ के बैनर तले 5 जनवरी को आयोजित सामुहिक उपवास  में जब उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के एक सिपाई के रूप में मैने मुजफरनगर काण्ड 94 के एक भी दोषियों को 18 साल बाद भी सजा न दिये जाने का मामला उठाते हुए देश की मृतप्राय व्यवस्था को बेनकाब किया तो उपस्थित आंदोलनकारी हस्तप्रद रह गये। मैने दो टूक शब्दों में कहा कि आज पूरा देश दिल्ली में सामुहिक बलात्कार की शिकार हुई एक दामिनी के हत्यारों कों फांसी की सजा की मांग करते हुए विश्वव्यापी आंदोलन कर रहा है। भारत सरकार ही नहीं तमाम राजनेता जनाक्रोश को देख कर अपने बिलों में नपुसक की तरह दुबक कर सहमे हुए है। यह मामला संयुकत राष्ट्र संघ तक भी यह मामला गूंज रहा है।  परन्तु उत्तराखण्ड राज्य गठन में दर्जनों आंदोलनकारी महिलाओं के साथ मुजफरनगर में रामपुर तिराहा काण्ड-94 में पुलिस प्रशासन के भैडियों ने किये, जिन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराते हुए इस काण्ड को  नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखा,  जिनको सीबीआई, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग  सहित तमाम निष्पक्ष ऐजेन्सियों ने भी इस पर तत्कालीन उप्र के मुलायम सरकार व केन्द्र के नरसिंह राव की सरकार को दोषी माना था। उस काण्ड के एक  भी दोषी को आज 18 साल बाद  भी सजा देने में भारत की व्यवस्था नपुंसक रही।  सपा, बसपा ही नहीं भाजपा व कांग्रेस सहित तमाम दल इस विभत्स काण्ड को नजरांदाज किये हुए है। महिला संगठन, मानवाधिकार संगठन सहित देश के कानूनविद इस काण्ड को भूल चूके है। उस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने के अपने प्रथम दायित्व को पूरा करने के बजाय उत्तराखण्ड राज्य गठन के इन 12 सालों की तमाम सरकारें, इस काण्ड के दोषियों को संरक्षण  देने का काम करने में बेशर्मो की तरह लगी रही। कुछ लोगों को छोड कर आज इस काण्ड के दोषियों को सजा देने की मांग व इस काण्ड के खलनायकों का बहिष्कार करने की कहीं से आवाज न तो सरकार उठाती है व नहीं कोई राजनेता।  आवाज उठाना तो रहा दूर इस काण्ड के खलनायको ं को गले लगाने में वर्तमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा  को शर्म तक नहीं आती। नारायणदत्त तिवारी तो बेशर्मी से मुलायम सिंह के हितैषी  रहे। खण्डूडी व निशंक को मान सम्मान का भान ही नहीं है। मुलायम के कहारों को राजनेतिक पार्टियां महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करने की होड़ कर रही है। प्रदेश का एक  भी नेता ऐसा नहीं जो प्रदेश के स्वाभिमान व मान सम्मान को  रौंदने के गुनाहगारों से दूरी बनाने या उनको सजा दिलाने के लिए ईमानदारी से आवाज उठाता हो।
16 दिसम्बर को दिल्ली में 23 वर्षीया पेरामेडिकल छात्रा के साथ घटित हुए सामुहिक बलात्कार प्रकरण पर अविलम्ब कड़ी सजा देने की मांग करते हुए संसद की चैखट जंतर मंतर पर 22 व 23 दिसम्बर को विजय चैक से इंडिया गेट व जंतर मंतर पर उमडे व्यापक जनाक्रोश को  पुलिसिया दमन से जमीदोज करने की सरकार की मंशा को धत्ता बताते हुए सकेडों आंदोलनकारियों ने निरंतर धरना-प्रदर्शन करके अलख जगायी है। मैं अपने संघर्षो के कुरूक्षेत्र यानी जंतर मंतर के आंदोलन में निरंतर एक मूक आंदोलनकारी की तरह समर्पित रहा। परन्तु 5 जनवरी के उपवास में मुझे लगा कि मुजफरनगरकाण्ड-94 के दोषियों को आज18 साल बाद भी सजा न दिये जाने का मामला प्रमुखता से उठना चाहिए तो मैने अपना मौन तोड़ते हुए अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्ववाली आम आदमी पार्टी  के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल राय व वरिष्ट नेता मनीष सिसोदिया की सरपरस्ती में 5 जनवरी को आयोजित हो रही सामुहिक उपवास में उपस्थित क्रांतिकारियों का ध्यान आकृष्ठ करने के लिए अपना विचार प्रमुखता से रखा। यहां पर देश विदेश की मीडिया व सरकार  के तमाम खुफिया ऐजेन्सियों तथा देशभर के आंदोलनकारियों की उपस्थित में यह मुद्दा मेने बेबाक ढ़ग से रखा। कि क्यों उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन की तीन दर्जन से अधिक महिला आंदोलनकारियों से पुलिस प्रशासन द्वारा किये गये सामुहिक बलात्कार के एक भी दोषियों ( मुजफरनगर काण्ड -94 ) को 18 साल बाद भी सजा न दिये जाने का मामला प्रमुखता से उठाया तो उपस्थित जनसमुदाय भौचंक्का रह गया।
मैने बताया कि किस प्रकार को लूला लंगडा लोकायुक्त जिसकी अरविन्द केजरीवाल व अन्ना की टीम ने सराहना की थी उसका प्रमुख कौन है? क्यों सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई, हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराये गये व्यभिचार व देश के  संविधान को रौंदने वालों को नजरांदाज किया। क्यों देश आज भी इन अपराधियों को सजा देने के बजाय पद्दोन्नति दे रही है।
अपने संबोधन में मैने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को आमूल सुधार करने  के बजाय जंतर मंतर पर आ  कर मौमबत्ती जलाया या राजघाट पर महिलाओं का मार्च करने की कड़ी भत्र्सना की। मेने दो टूक शब्दों में कहा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री व उनकी सरकार ने अगर दिल्ली परिवहन निगम की खस्ता हालत पर ध्यान दिया होता तो आज दामिनी के साथ यह हादसा नहीं होता। शीला दीक्षित ने हजारों आक्रोशित जनता के बीच जंतर मंतर में मौमवत्ती जलाने की हटधर्मिता करके यहां जलियांवाला बाग बनाने  की कोइ्र कसर नहीं छोड़ी थी। उस समय यहां पर जरा सी भी दुर्घटना इसे जलियावाला बाग बना ही देता।
अपने संबोधन में मैने दो टूक शब्दों में कहा कि लोकशाही में जनभावनायें सर्वोच्च होती है। सत्ता में आसीन लोगों का दायित्व ही जनभावनााओं के अनरूप सरकार चलाना होता है। सरकार को जनभावनाओं का सम्मान करते हुए इस प्रकार के प्रकरण में बलात्कारियों को मौत की सजा का कानून शीघ्र बनाना चाहिए। सरकार को जनभावनाआों  का सम्मान करने के बजाय उनका दमन करने की अपनी अलोकतांत्रिक प्रवृति को त्यागना चााहिए। इस प्रकरण से पूरे विश्व में भारत की जो छवि खराब  हुई उसका सही केवल तुरंत बैखोप बलात्कारियों को मौत की सजा देने  के कानून बनाने से ही दूर होगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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