उप्र ही नहीं देश के लिए खतरनाक है का अंध तुष्टिकरण
सपा की सत्तारूढ़ होते ही उप्र में दंगों की बाढ
4 जनवरी की सांय को उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर जिले के धम्मौर क्षेत्र में चेहल्लुम के जुलूस निकलने के दौरान हिंसा से यहां की स्थिति तनावपूर्ण है। शासन प्रशासन ने दोषियों को गिरफतार तक नहीं किया है। यह प्रदेश में सपा सरकार के सत्तासीन होने के बाद पहली घटना नहीं अपितु ऐसी अनैक घटनायें सपा के सत्तासीन होने के बाद उप्र में हो रही है। इससे न केवल प्रदेश में शांति भंग हो रही है अपितु विभिन्न धर्मों के बीच बैमनुष्यता निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रदेश में जितने भी दंगे अभी अखिलेश यादव के शासनकाल में हो चूके हैं उतने दंगे मायावती के पूरे पांच साल के शासनकाल में नहीं हुए। यही नहीं जिस प्रकार से सपा ने प्रदेश में सत्तारूढ़ होने के बाद मात्र तुष्टिकरण के लिए आतंकवाद जैसे कृत्यों में लिप्त रहे लोगों पर लगे मामले को वापस लेने का कार्य किया उस पर उच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी करी थी। परन्तु इसके बाबजूद सपा अपने अंध तुष्टिकरण में इतना लिप्त है कि उसे न तो प्रदेश के हित ही दिखायी दे रहे हैं व नहीं देश के। आखिर शासक प्रशासक का पहला दायित्व होता है कि अपराधियों को दण्डित करना और बिना भेदभाव के सभी को उन्नति के अवसर प्रदान करते हुए शांति व्यवस्था बनाये रखना। यह उप्र का ही नहीं अपितु देश का दुर्भाग्य है कि यहां पर ऐसे लोग सत्तासीन है जिनको देश व समाज के हित व विकास के बजाय अपने वोटबैंक की चिंता सत्ता रही है। इसके लिए अंध तुष्टिकरण का आत्मघाती राह अपना कर देश को तबाह के गर्त में धकेल रहे है। गुनाहगार कोई भी हो, उसकी न तो जाति होती है व नहीं धर्म। उसको अपने निहित स्वार्थ के लिए जाति व धर्म का प्रतीक बना कर गुनाहगारों को संरक्षण देना देश की एकता अखण्डता के साथ घातक खिलवाड़ ही नहीं अपितु यह न्याय का भी गला घोंटने वाला निंदनीय कदम माना जायेगा। देश के लिए इससे ज्यादा घातक और दूसरा क्या होगा कि इस देश में अपनी कुर्सी के खातिर देशद्रोहियों को संरक्षण देने व आतंकवादियों को धर्म विशेष का प्रतीक बता कर उनको दण्डित करने के बजाय उनको रिहा करने जैसे कृत्य शासक करे। आज इसी प्रकार से देश में धार्मिक तबाही फेलाने व देश की गैरत को ललकारने वाले आंध्र प्रदेश पुलिस ने मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी आज भी खुल्ला छूट रखा है। संसद पर आतंकी हमले का गुनाहगार अफजल गुरू कई सालों से फांसी के फंदे पर लटकाने का साहस सरकार नहीं जुटा पा रही है। उप्र में दंगाईयों व आतंकियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण दिया जा रहा है। इस देश में कानून सबके लिए समान होने के बजाय उसको तुष्टिकरण की बैशाखियां पहनायी जा रही है। शासन प्रशासन जब अंध पक्षपात करेगा तो देश का नुकसान होने के साथ समाज में बैमनुष्यता व हिंसा को तो बढ़ावा ही मिलेगा। इसके लिए कोई ओर नहीं ऐसी सरकारें ही जिम्मेदार है, जो अपनी कुर्सी के लिए समाज में अंध तुष्टिकरण का जहर घोलती है।
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