न्याय मिलने की आश लेकर देश भर के लोगों के लिए जंतर मंतर बना कुरूक्षेत्र 


22 जनवरी को राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर मुम्बई के फिल्म निर्माता व एक्टर राॅकसन न्याय की गुहार लगाने आये। उन्होंने यहां पर चल दामिनी को न्याय दो के लिए चल रहे धरना अनशन में सम्मलित हो कर जहां इसका समर्थन किया वहीं अपने साथ देश के गृहमंत्री द्वारा किये गये अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का ऐलान किया। वहीं उनके आने के कुछ ही घण्टे बाद सांयकाल को दिल्ली में किसी पार्षद द्वारा यौन शोषण के पीडि़ता के परिजन बुरी तरह से आरोपी द्वारा पीटे जाने के बाद घायल अवस्था में यहां पर आये। घायल को पुलिस  बाद में अपनी एम्बुलेंस से चिकित्सालय ले गयी। इसी प्रकार यहां पर देश के विभिन्न भागों से न्याय की गुहार लगाने के लिए आने वाले पीडि़तों व संघर्ष की हुंकार भरने वाले योद्धाओं का विगत एक दशक से अधिक समय से निरंतर आने का क्रम जारी है। उस समय यहां पर एक तरफ दामिनी को न्याय दो का जनांदोलन चल रहा था व दूसरी तरफ पंजाब से चण्डीगढ़ पुलिस के डीआईजी द्वारा यौन शोषण की पीडि़ता भी कई दिनों से आमरण अनशन पर डटी हुई थी।
इन दिनों यहां 16 दिसम्बर को दिल्ली में चलती बस में सामुहिक बलात्कार की शिकार हुई 23 वर्षीया दामिनी के विरोध में देश भर में चल रहे धरना प्रदर्शनों के केन्द्र  बिन्दू बने जंतर मंतर पर 22 व 23 दिसम्बर को राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक उमडे जनाक्रोश के बाद 24 दिसम्बर से निरंतर धरना प्रदर्शन चल रहे है।  इसके बाद यहां पर कई यौन शोषण के पीडि़तायें यहां पर न्याय की आश से तब आते हैं जब उन्हें अपने यहां शासन प्रशासन सहित अन्य सभी जगह से न्याय मिलने की कोई आश नहीं रहती है। यहां पर भले ही न्याय की आश में गुजरात से 1995-1996 में आयी पार्वतीबाई व उनके पति बिना न्याय मिले यहीं जंतर मंतर पर दर दर की ठोकरें खाते खाते ही प्राण गंवा बेठे परन्तु न तो केन्द्र सरकार व नहीं गुजरात की मोदी सरकार ही उनको न्याय दे पायी। इसके साथ यहां पर विमुक्तिजाति  टपरीवास घुमंतु जाति को जनजाति का दर्जा की मांग करते हुए वर्षो तक संघर्ष करने वाले पंजाब से आये महासचिव रौनकी राम ने भी यहां पर अपने प्राण त्याग दिये उन्हे व उनके संगठन को आज भी न्याय नहीं मिला। इसके अलावा चीन से तिब्बत को आजाद करने की मांग को लेकर दो तिब्बतियों ने इन डेढ़ दशक में इस धरना स्थल जंतर मंतर पर आत्मदाह करके शहादत दे दी । जंतर मंतर के इतिहास में हर रोज यहां पर कई आंदोलनकारी या हजारों लोग देश के कोने कोने से अपनी मांगों की गुहार लगाने आते है। इनमें से केवल उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के आंदोलनकारी ही ऐसे शौभाग्यशाली रहे जिनको ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा’ को यहां पर धरना देते देते अपनी मांग को पूरी होने  के बाद जश्न मना  कर आंदोलन समापन करने का अवसर मिला हो। मै इस आंदोलन का छह साल तक एक सिपाई से लेकर अध्यक्ष रहने के साथ जंतर मंतर के हर घटना क्रम, जनांदोलनों, पुलिस दमन का साक्षी ही नहीं एक आंदोलनकारी की तरह भुक्तभोगी भी रहा हॅू।
रहे धरने में कभी अन्याय का गला घोंटने के लिए आतुर दुर्योधन जैसे सत्तांध कुरू हुक्मरानों को सबक सिखाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कुरूक्षेत्र में महाभारत का संघर्ष करके न्याय की रक्षा की थी। आज उसी देश भारत में जो विश्व की सबसे बड़ी लोकशाही है, न्याय व जनहितों की रक्षा करने में नाकाम रहे हुक्मरानों को लोकशाही का पाठ पढ़ाने के लिए व्यापक जनांदोलन का शंखनाद संसद की चैखट ‘राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर कर रहे है।
विश्व को ज्ञान विज्ञान व मानवीय मूल्यों की सनातन गंगोत्री रही भारत में जब भी जनहितों को कुचलने व न्याय का गला घोंटने का काम यहां के हुक्मरानों ने करने की धृष्ठता की तो यहां पर जनहितों के लिए खुद को कुर्वान करने वाले सपूतों ने व्यापक जनांदोलन से सरकारों के नापाक इरादों को जनता ने जमीदोज किया है। चाहे चंगेज के समय हो या सिकंदर या मुगल या फिरंगी आक्रांताओं या देश के जनविरोधी हुक्मरानों के अन्याय का मुहतोड़ जवाब देने की पंरपरा यहां अनादि काल से रही है। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने तो त्रेता युग में भगवान राम ने । कलयुग में गुरू तेगबहादूर, गुरू गोविन्दसिंह, झांसी की रानी, चन्द्रशेखर आजाद , भगतसिंह, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गांधी, वीरचन्द्रसिंह गढ़वाली सहित असंख्य महापुरूषों ने अन्याय के खिलाफ सनातन काल से चल रही भारतीय परंपरा का निर्वाह करने का महानतम कार्य किया। आजादी के बाद जय प्रकाश नारायण, व अन्ना हजारे के बाद अब दामिनी को न्याय आंदोलन से भारतीय संस्कृति के अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष करने के अमरघोष को ही शंखनाद करने की परंपरा का निर्वाहन करके सत्तांधों के खिलाफ व्यापक जनांदोलन चलाया जा रहा है। आज भले ही संघर्ष शांतिपूर्ण ढ़ग से सत्याग्रह के रूप में चलाया जा रहो हो परन्तु इस अन्याय के खिलाफ जनहितों के संघर्ष का कुरूक्षेत्र अब जंतर मंतर बन गया है।

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