अपने अहम् को नहीं गैरसैंण की तरफ उठ रही आवाज को मजबूत बनायें
दो दशक से अपना सब कुछ दाव पर लगा कर मैं जनहितों के लिए पत्रकारिता, आंदोलनकारी व साहित्य कर्मी बना हॅू। देश, समाज व प्राणीमात्र का कल्याण मेरा पहला मिशन है। मैं लिखता ही नहीं अपितु इसको आत्मसात करते हुए जनजागरण में भी लगा रहता हॅॅू। उपदेश देना या किसी पर प्रश्न उठाना बहुत आसान है। खासकर गैरसैंण वाले मुद्दे पर, पत्रकारों पर। पत्रकार किसी दूसरे ग्रह के जीव नहीं वे भी हमारे समाज के ही अंग है। जहां तक गैरसेंण का मामला है। जब यह मुद्दा 12 साल से निरंतर जिंदा रखे हुए है तो वे पत्रकार व यहां के राज्य गठन के कुछ समर्पित लोग ही है। जिन्होंने निरंतर प्रदेश के हक हकूकों व उसके भविष्य के बारे में जनता को जागृत करने या हुक्मरानों व समाज को दिशा देने के लिए मुजफरनगरकाण्ड, परिसीमन, गैरसैंण, भ्रष्टाचार, जातिवाद, मूल निवास, जल, जंगल जमीन के गंभीर समस्याओं के प्रति सकारात्मक व प्रखर ढ़ग से जीवंत बनाये हुए है। अपनी अज्ञानता या अदूरदर्शिता के कारण पत्रकारों पर क्यों थोप रहे हो ? क्या आपको नहीं मालुम की 12 साल से उत्तराखण्ड के हक हकूकों को जमीदोज करने वाली सरकारों को गैरसैंण की तरफ सुध लेने की फुर्सत तक नहीं रही। षडयंत्र से तिवारी से लेकर खण्डूडी व निशंक जैसे मुख्यमंत्रियों ने गैरसेंण के मुद्दे को जमीदोज कर दिया? है हमारे प्रदेश में कोई ऐसा सांसद या, विधायक जो प्रदेश की राजधानी के मामले में अपना इस्तीफा दे या अपने स्वार्थ से उपर उठ कर जनहित के लिए प्रखर ढ़ग से आगे आये। अधिकांश सब अपने स्वार्थो के लिए नपुंसक बने हुए है। केवल कुछ समय पहले तक आधे अधूरे मन से चंद ही नेता ऐसा रहे जो गैरसैंण का नाम अपनी राजनीति के तहत बोलने का भी साहस कर पा रहे हो। हमारे अधिकांश समाजसेवी संगठनों को प्रदेश के हक हकूकों से अधिक नाचने गाने से फुर्सत नहीं। राजनैतिक दृष्टि से ही नहीं सामाजिक दृष्टि से हम अपने वर्तमान व भविष्य के प्रति दूर दूर तक एक कदम भी सकारात्मक दिशा में ठोस कदम नहीं उठा पाये। अब जब किसी लोग या किसी कारण से वर्तमान बहुगुणा सरकार ने गैरसेंण की सुध लेने का एक कदम उठाया तो उनको गैरसैंण में स्थाई राजधानी बनाने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए प्रेरित करने बजाय विरोध करना कहा प्रदेश के हित में है ? बहुगुणा सरकार भी इस विरोध देख कर गैरसेंण मिशन बंद कर दे तो क्या प्रदेश का भला होगा? विरोध तो उन लोगों का होना चाहिए जो अब तक की सरकारो ं के खिलाफ तो मुह नहीं खोल पाये अब कोई सरकार इस दिशा में आधे अधूरे मन से कदम भी बढ़ा रही है तो उसका विरोध कर रहे है। अब बहुगुणा के विधानसभा भवन बनाने के निर्णय के बाद गैरसैंण में स्थाई राजधानी बनाने की मांग को बडी मजबूती मिली। इससे पहले कोई भाजपाई व कांग्रेसी मजबूती से गैरसेंण राजधानी बनाने की मांग नही कर पा रहे थे तो अब कई विधायक व विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष भी गैरसेंण में ही राजधानी बनाने के सुर में सुर मिला रहे है। इन स्वार्थ में डूबे नेताओ ंमें कोई अगर सही दिशा में आवाज उठाने का साहस करता तो उसका हौसला बढा कर अपना लक्ष्य गैरसैंण की तरफ मजबूती हासिल करना ही बुद्धिमता ही है। आज गैरसेंण में विधानसभा भवन बनाने के निर्णय के बाद पूरे प्रदेश ही नहीं देश विदेश का ध्यान गैरसैंण मुद्दे की तरफ गया। देहरादून में ही राजधानी थोपेने को उतारू प्रदेश के सुविधाभोगी नेताओं, नौकरशाहो व माफियाओं के माथे पर गैरसेंण के नाम से पसीना आ रहा है। गैरसैंण पर सकारात्मक विचारों को प्रमुखता से हवा देना गैरसेंण राजधानी बनाने के लिए जरूरी है। हमारा काम केवल अपने अहं की तुष्टि के लिए किसी का विरोध करके अपने को श्रेष्ठ दर्शना नहीं अपितु किसी भी तरह गैरसेंण को राजधानी बनाने की राह को आसान करना और इसके पीछे व्यापक जन जागरण करना है। यह जग जाहिर है कि विजय बहुगुणा के पूर्व कार्यो व प्रवृति के कारण जिस प्रकार से उनकी ताजपोशी मुख्यमंत्री के रूप में की गयी तथा उसके बाद के कई कार्यो का मै उनका प्रखर विरोधी रहा हॅू। परन्तु उन्होंने जो कदम गैरसैण में विधानसभा बनाने के दिशा में किया उसका मैने खुले दिल से समर्थन, गैरसेंण राजधानी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानते हुए किया। मेरा तिवाारी हो या खण्डूडी या निशंक किसी का अंध विरोध करने की प्रवृति नहीं रही। परन्तु जब लगातार वे अपने कृत्यों से जनांकांक्षाओं को रौंदते रहे तो उनका विरोध करना मैने अपना धर्म समझा। ऐसे में जो काम इन 12 साल की सरकारों में विजय बहुगुणा की सरकार ने गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने की घोषणा करके किया वह ऐसे निराशा भरे वातावरण में एक नयी सांस की तरह स्वागत योग्य है। हमारा लक्ष्य गैरसैंण को राजधानी बनाने के मार्ग प्रसस्त करने वाली हर कदम का स्वागत तथा इसकी राह रोकने वाले का विरोध करना है। आज की स्थिति में जब गैरसेंण का मुद्दा यहां की सरकारों ने ठण्डे बस्ते में डाल दिया था उस समय इसको फिर से मजबूती प्रदान करने वालों को मजबूती दे कर प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाना है। इस पर प्रश्न खडा करने वाले खुद बतायें कि आखिर क्यों गैरसैण की तरफ आवाज उठाने वालों का विरोध करे। इमानदारी की आशा करना इन स्वार्थ में डूबे सत्तालोलुपु बौने राजनेताओं से खुद से बेईमानी करना सा होगा। ये गैरसेंण की तरफ कदम बढायें यह भी साराहनीय है। जब खासकर जनता, बुद्धिजीवि, नौकरशाह, राजनेतिक दलों ने इसे भूला दिया हो। हमें याद रखना चाहिए कि हमें कोई भी कार्य अपने अहं की पूर्ति के लिए नहीं अपितु जनहितों के लिए मनसा, वाचा व कर्म से समर्पित
रहना चाहिए।
jaise bhi ho Bahuguna sarkar ka yah kadam swagtiy aur uttrakhandiyon ke liye asha ki kiran hai .. Bhaiji aapka Nishpaksh aur niswarth karya jarur jiwantta hoga jab Rajdhani Gairsain mein hogi...
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