सोनिया का नहीं यह है उत्तराखण्ड के जनादेश का हुआ अपमान
भाजपा की तरह उत्तराखण्ड के जनादेश का बार-बार अपमान कर रही है कांग्रेस
सोनिया का नहीं यह है उत्तराखण्ड के जनादेश का हुआ अपमान
प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-
कांग्रेसी सुत्रों के अनुसार सोनिया गांधी इन दिनों काफी आहत है। वह उत्तराखण्डी नेताओं द्वारा विधानसभा चुनाव के बाद बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाये जाने का विरोध करने वाले कांग्रेसी नेताओं के विद्रोह से काफी आहत है। पर हकीकत यह है कि हाल में सम्पन्न हुए उत्तराखण्ड की विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद जिस प्रकार से कांग्रेस आला नेतृत्व द्वारा विजय बहुगुणा को प्रदेश के बहुसंख्यक विधायकों की इच्छा के खिलाफ मुख्यमंत्री के पद पर थोपा गया। उससे प्रदेश की जनता अपने को अपमानित महसूस कर रही है। खासकर जिस जनता ने कांग्रेस आला नेतृत्व पर विश्वास करके प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के कुशासन से मुक्ति की आश से कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता में आसीन करने के लिए जनादेश दिया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी इस हिमालयी आत्मघाती भूल पर गंभीर चिंतन करने व उसमें सुधार करके जनादेश का सम्मान करने के बजाय ऐसा प्रचार कर रही है कि मुख्यमंत्री को थोपे जाने का जो भारी विरोध हुआ उससे कांग्रेस आलाकमान आहत है। इसी लिए इस विवाद के बाद तमाम कोशिशों के बाबजूद भी सोनिया गांधी न तो कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत से ही मिली व नहीं विजय बहुगुणा की ताजपोशी के बाद पुरजोर विरोध कर रहे कांग्रेसी नेता डा हरक सिंह जो विजय बहुगुणा की सरकार को भानुमति का कुनबा आदि बोल कर खुला विद्रोह कर रहे थे, उनसे ही मिली। हाॅं केवल तथाकथित समझोतों के बाद सोमवार 16 अप्रैल को कांग्रेस में हई घमासान के बाद पहली बार मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के विरोध करने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता डा हरक सिंह रावत को मिलने का समय दिया गया। वह भी 16 अप्रेल 2012 को सांय 4.30 बजे सोनिया गांधी के आवास दस जनपत में। डा हरक सिंह रावत के अलावा उस दिन सोनिया गांधी से मिलने वालों में प्रदेश में कांग्रेस का रसातल में पंहुचाने वाले केन्द्रीय महासचिव चैधरी बीरेन्द्र सिंह प्रमुख थे। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री के एक प्रबल दावेदार यशपाल आर्य भी सोनिया गांधी से मिले। कांग्रेसी सुत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान इस बात से नाराज थी कि क्यों प्रदेश के विधायक सहित क्षत्रपों ने उनसे प्रदेश का मुख्यमंत्री चयन करने की गुहार लगायी और जब उन्होंने मुख्यमंत्री का चयन किया तो कांग्रेस का एक बडा बर्ग ही उनके द्वारा चुने गये नाम विजय बहुगुणा के नाम का विरोध कर रहा है। इसे कांग्रेसी नेता अनुशासनहिनता व आला नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह की बात कह कर असल गलती को छुपाना चाहता है। आज प्रदेश की जनता कांग्रेस आलानेतृत्व से जानना चाहती है कि उन्होंने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में चयन उनकी कोन सी प्रतिभा देख कर किया। क्या सोनिया गांधी व उनके सलाहकार विजय बहुगुणा के मुम्बई उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति के रूप में किये गये महान सेवाओं से प्रसन्न थी, क्या वर्तमान विधासभा चुनाव में उनके लोकसभा क्षेत्र में हुई कांग्रेस की दुर्गति से प्रसन्न हो कर उनको यह सम्मानित पद सोंपा। या सोनिया गांधी ने प्रदेश की जनता द्वारा भाजपा को परास्त करने के साथ साथ खण्डूडी को कोटद्वार के विधानसभा चुनाव में परास्त करने से दुखी हो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया। आज भी प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर अधिकांश विधायकों व नेताओं की भावनाओं को रौंद कर आखिर किस गुण से प्रभावित हो कर सोनिया गांधी ने विजय बहुगुणा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। जनता सोनिया गांधी द्वारा उनके जनादेश का जो मजाक व अपमान किया उसका जवाब आने वाले 2014 में पूरे देश से कांग्रेस का सफाया करके देगी। इसके साथ दिल्ली में रहने वाले 30 लाख उत्तराखण्डियों ने नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तराखण्डी जनादेश को रोंदने के लिए दण्डित कर दिया।
सबसे हैरानी की बात है कि सन् 2002 से लेकर 2012 तक प्रदेश में हुए हर विधानसभा व लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने जो जनादेश दिया उसमें एक ही संदेश साफ साफ छुपा हुआ था कि प्रदेश की जनता जातिवादी व भ्रष्टाचारी नेतृत्व को किसी भी कीमत पर नहीं स्वीकारती है। इसके बाबजूद कांग्रेस व भाजपा निरंतर जातिवादी राजनीति का कार्ड प्रदेश में खेलते रहे। सबसे हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में चल रही इस आत्मघाती राजनीति का विरोध करना तो रहा दूर यहां की मीडिया व बुद्धिजीवि इस मुद्दे को नजरांदाज करके इस कलंक के लिए भाजपा व कांग्रेस को कटघरे में खडे करने वालों का ही विरोध कर रहे है। प्रदेश में जमीनी नेताओं को नजरांदाज करके भाजपा व कांग्रेस आला नेतृत्व द्वारा थोपे गये नेताओं के कारण प्रदेश में भ्रष्आचार का तांडव मचा हुआ है। कांग्रेसी मानसिकता के लोगों को असली बात तो समझ में नहीं आ रही है जो जनादेश में छुपी हुई थी,। प्रदेश की जनता प्रदेश में बलात चलाये जा रहेे जातिवादी व भ्रष्टाचारी कुशासन के खिलाफ निरंतर 2002 से निरंतर अपना जनादेश दे रहे हैं परन्तु इसके बाबजूद यहां पर भाजपा व कांग्रेस दोनों बहुत ही निर्ममता से लोकशाही का गला घोटने का कृत्य कर रहे है। 2002 में प्रदेश की जनता ने उत्तराखण्ड राज्य बनाने का ऐतिहासिक कार्य करने वाली भाजपा को प्रदेश के नाम बदल कर आपमान करने, संसाधनों की बंदरबांट व नित्यानन्द स्वामी को थोप कर लोकशाही का अपमान करने से आक्रोशित हो कर कांग्रेस को इस आशा से जनादेश दिया कि वह जनभावनाओं का सम्मान करेगी। परन्तु कांग्रेस ने भी 2002 के विधानसभा चुनाव में विजयी होने के बाद अधिसंख्यक विधायकों के मुख्यमंत्री हरीश रावत को बनाये जाने के मांग के बाबजूद जिस शर्मनाक ढ़ग से घोर उत्तराखण्ड विरोधी नारायणदत्त तिवारी को थोपा उससे जनता ने इसे कांग्रेस द्वारा किया गया जनादेश का ही अपमान माना। इसके बाबजूद जनता को आशा थी कि तिवारी जी अपने लम्बे अनुभव व प्रशासन क्षमता से प्रदेश के दूसरे यशवंत सिंह परमार बनेगी। परन्तु जनता की आशाओं पर तब बज्रपात हुआ जब तिवारी ने शासन के नाम पर यहां पर लालबतियों का ही नहीं जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार का तांडव मचाया। उनसे मुक्ति के लिए जनता ने जो जनादेश दिया उसमें भी दूसरी नम्बर की पार्टी रहने के बाबजूद हरीश रावत ने निर्दलीय, उक्रांद व बसपा के सहयोग से सरकार बनाने का सफल प्रयास कर दिया था। वह जब तक मंजिल पर पंहुचता तब तक पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी ने अपने दिल्ली समर्थकों के सहयोग से सोनिया गांधी को गुमराह करके सरकार बनाने के बजाय विपक्ष में बेठने का फरमान जारी करवा दिया।
इसके बाबजूद 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भी चुने हुए अधिसंख्यक विधायकों की भाजपा के वरिष्ठ जमीनी नेता भगतसिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय गैर विधायक भुवनचंद खंडूडी को बलात मुख्यमंत्री के पद पर थोप कर लोकशाही का अपमान किया। खण्डूडी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जो अलोकतांत्रिक व जातिवादी मानसिकता से प्रदेश की जनता ही नहीं अपितु प्रदेश भाजपा के मंत्री व विधायक ही त्राही त्राही करने लगे। उनके मुंह लगे बाहरी अधिकारी के राज से प्रदेश में भ्रष्टाचार को जो हवा मिली नजता त्रस्त हो गयी। जब अपने अधिसंख्यक विधायकों की खण्डूडी को बदलने की गुहार भाजपा आला नेतृत्व ने नहीं सुनी तो जनता ने लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी पांच सीटों से भाजपा का सुपडा ही साफ कर दिया। इसके बाबजूद जब भाजपा आला नेतृत्व नहीं जागा तो विधायकों व कांेश्यारी के सामुहिक विरोध के आगे भाजपा आला नेत्त्व ने मजबूरी में प्रदेश की सत्ता से खण्डूडी को हटा दिया परन्तु अधिकांश विधायकों की कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा को रौंदते हुए फिर खंडूडी की सबसे पहली पसंद निशंक को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। भाजपा का जातिवादी प्रवृति देख कर पूरे प्रदेश की जनता हैरान रह गयी। निशंक के शासन में भी जो भ्रष्टाचार का तांडव मचा उसके बाबजूद जब आला कमान ने सत्ता परिवर्तन न करने की हट लगायी रखी तो मजबूरी में भाजपा नेता तेजपाल सिंह रावत ने भाजपा से इस्तीफा दे कर जनता में व्यापक आंदोलन छेड दिया। इसी आंदोलन को भुनाते हुए खंडूडी ने केन्द्रीय नेतृत्व को झांसे में ले कर फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली। निशंक के कुशासन व खंडूडी की अलोकशाही के बाबजूद भाजपा ने जिस संकीर्णता से फिर खंडूडी जरूरी का नारा विधानसभा चुनाव 2012 में दिया उससे आक्रोशित हो कर प्रदेश की जनता ने न केवल खंडूडी अपितु भाजपा को भी प्रदेश की सत्ता से बाहर कर दिया। जनता के इस जनादेश का एक साफ नजरिया था कि वह प्रदेश में किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार व जातिवादी राजनीति को स्वीकार नहीं करती। इसके बाबजूद कांग्रेस आलाकमान ने जननेताओं को दर किनारे करके आधा दर्जन भी विधायकों के साथ न होने वाले विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया तो जनता अपने आप को ठगी महसूस कर रही है।
जनता इस बात से भी आहत है कि क्यों प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के तथाकथित जमीनी नेता इतने बंधुआ मजदूर व अपने हितों के लिए खुदगर्ज बन गये है। क्यों वे प्रदेश के हितों के लिए आवाज उठाते है। आज प्रदेश के इन बोने नेतृत्व के कारण ही प्रदेश अपनी स्थाई राजधानी गैरसैंण नहीं बना पाया, प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोपा गया, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों व मुलायम के कहारों को शर्मनाक संरक्षण दिया जा रहा है, प्रदेश के संसाधनों व प्रतिभाओं को संरक्षण करने के बजाय प्रदेश के मूल संसाधनों-जल जंगल, जमीन की बंदरबांट करने के हथकण्डे अपनाये जा रहे है। इस प्रकरण से साफ हो गया है कि कांग्रेस ही नहीं भाजपा दोनोें भले ही देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियां हो परन्तु उनका नजरिया ही नहीं उनकी पूरी कार्यप्रणाली अलोकतांत्रिक व जातिवादी तथा भ्रष्टाचार पोषक है। इन दोनों दलों को ही जनादेश का सम्मान करना तक अभी नहीं आया तो अन्य दलों से इसकी आशा करनी भी नादानी होगी।
सोनिया का नहीं यह है उत्तराखण्ड के जनादेश का हुआ अपमान
प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-
कांग्रेसी सुत्रों के अनुसार सोनिया गांधी इन दिनों काफी आहत है। वह उत्तराखण्डी नेताओं द्वारा विधानसभा चुनाव के बाद बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाये जाने का विरोध करने वाले कांग्रेसी नेताओं के विद्रोह से काफी आहत है। पर हकीकत यह है कि हाल में सम्पन्न हुए उत्तराखण्ड की विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद जिस प्रकार से कांग्रेस आला नेतृत्व द्वारा विजय बहुगुणा को प्रदेश के बहुसंख्यक विधायकों की इच्छा के खिलाफ मुख्यमंत्री के पद पर थोपा गया। उससे प्रदेश की जनता अपने को अपमानित महसूस कर रही है। खासकर जिस जनता ने कांग्रेस आला नेतृत्व पर विश्वास करके प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के कुशासन से मुक्ति की आश से कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता में आसीन करने के लिए जनादेश दिया। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी इस हिमालयी आत्मघाती भूल पर गंभीर चिंतन करने व उसमें सुधार करके जनादेश का सम्मान करने के बजाय ऐसा प्रचार कर रही है कि मुख्यमंत्री को थोपे जाने का जो भारी विरोध हुआ उससे कांग्रेस आलाकमान आहत है। इसी लिए इस विवाद के बाद तमाम कोशिशों के बाबजूद भी सोनिया गांधी न तो कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत से ही मिली व नहीं विजय बहुगुणा की ताजपोशी के बाद पुरजोर विरोध कर रहे कांग्रेसी नेता डा हरक सिंह जो विजय बहुगुणा की सरकार को भानुमति का कुनबा आदि बोल कर खुला विद्रोह कर रहे थे, उनसे ही मिली। हाॅं केवल तथाकथित समझोतों के बाद सोमवार 16 अप्रैल को कांग्रेस में हई घमासान के बाद पहली बार मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के विरोध करने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता डा हरक सिंह रावत को मिलने का समय दिया गया। वह भी 16 अप्रेल 2012 को सांय 4.30 बजे सोनिया गांधी के आवास दस जनपत में। डा हरक सिंह रावत के अलावा उस दिन सोनिया गांधी से मिलने वालों में प्रदेश में कांग्रेस का रसातल में पंहुचाने वाले केन्द्रीय महासचिव चैधरी बीरेन्द्र सिंह प्रमुख थे। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री के एक प्रबल दावेदार यशपाल आर्य भी सोनिया गांधी से मिले। कांग्रेसी सुत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान इस बात से नाराज थी कि क्यों प्रदेश के विधायक सहित क्षत्रपों ने उनसे प्रदेश का मुख्यमंत्री चयन करने की गुहार लगायी और जब उन्होंने मुख्यमंत्री का चयन किया तो कांग्रेस का एक बडा बर्ग ही उनके द्वारा चुने गये नाम विजय बहुगुणा के नाम का विरोध कर रहा है। इसे कांग्रेसी नेता अनुशासनहिनता व आला नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह की बात कह कर असल गलती को छुपाना चाहता है। आज प्रदेश की जनता कांग्रेस आलानेतृत्व से जानना चाहती है कि उन्होंने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में चयन उनकी कोन सी प्रतिभा देख कर किया। क्या सोनिया गांधी व उनके सलाहकार विजय बहुगुणा के मुम्बई उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति के रूप में किये गये महान सेवाओं से प्रसन्न थी, क्या वर्तमान विधासभा चुनाव में उनके लोकसभा क्षेत्र में हुई कांग्रेस की दुर्गति से प्रसन्न हो कर उनको यह सम्मानित पद सोंपा। या सोनिया गांधी ने प्रदेश की जनता द्वारा भाजपा को परास्त करने के साथ साथ खण्डूडी को कोटद्वार के विधानसभा चुनाव में परास्त करने से दुखी हो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया। आज भी प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर अधिकांश विधायकों व नेताओं की भावनाओं को रौंद कर आखिर किस गुण से प्रभावित हो कर सोनिया गांधी ने विजय बहुगुणा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। जनता सोनिया गांधी द्वारा उनके जनादेश का जो मजाक व अपमान किया उसका जवाब आने वाले 2014 में पूरे देश से कांग्रेस का सफाया करके देगी। इसके साथ दिल्ली में रहने वाले 30 लाख उत्तराखण्डियों ने नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस को उत्तराखण्डी जनादेश को रोंदने के लिए दण्डित कर दिया।
सबसे हैरानी की बात है कि सन् 2002 से लेकर 2012 तक प्रदेश में हुए हर विधानसभा व लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने जो जनादेश दिया उसमें एक ही संदेश साफ साफ छुपा हुआ था कि प्रदेश की जनता जातिवादी व भ्रष्टाचारी नेतृत्व को किसी भी कीमत पर नहीं स्वीकारती है। इसके बाबजूद कांग्रेस व भाजपा निरंतर जातिवादी राजनीति का कार्ड प्रदेश में खेलते रहे। सबसे हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में चल रही इस आत्मघाती राजनीति का विरोध करना तो रहा दूर यहां की मीडिया व बुद्धिजीवि इस मुद्दे को नजरांदाज करके इस कलंक के लिए भाजपा व कांग्रेस को कटघरे में खडे करने वालों का ही विरोध कर रहे है। प्रदेश में जमीनी नेताओं को नजरांदाज करके भाजपा व कांग्रेस आला नेतृत्व द्वारा थोपे गये नेताओं के कारण प्रदेश में भ्रष्आचार का तांडव मचा हुआ है। कांग्रेसी मानसिकता के लोगों को असली बात तो समझ में नहीं आ रही है जो जनादेश में छुपी हुई थी,। प्रदेश की जनता प्रदेश में बलात चलाये जा रहेे जातिवादी व भ्रष्टाचारी कुशासन के खिलाफ निरंतर 2002 से निरंतर अपना जनादेश दे रहे हैं परन्तु इसके बाबजूद यहां पर भाजपा व कांग्रेस दोनों बहुत ही निर्ममता से लोकशाही का गला घोटने का कृत्य कर रहे है। 2002 में प्रदेश की जनता ने उत्तराखण्ड राज्य बनाने का ऐतिहासिक कार्य करने वाली भाजपा को प्रदेश के नाम बदल कर आपमान करने, संसाधनों की बंदरबांट व नित्यानन्द स्वामी को थोप कर लोकशाही का अपमान करने से आक्रोशित हो कर कांग्रेस को इस आशा से जनादेश दिया कि वह जनभावनाओं का सम्मान करेगी। परन्तु कांग्रेस ने भी 2002 के विधानसभा चुनाव में विजयी होने के बाद अधिसंख्यक विधायकों के मुख्यमंत्री हरीश रावत को बनाये जाने के मांग के बाबजूद जिस शर्मनाक ढ़ग से घोर उत्तराखण्ड विरोधी नारायणदत्त तिवारी को थोपा उससे जनता ने इसे कांग्रेस द्वारा किया गया जनादेश का ही अपमान माना। इसके बाबजूद जनता को आशा थी कि तिवारी जी अपने लम्बे अनुभव व प्रशासन क्षमता से प्रदेश के दूसरे यशवंत सिंह परमार बनेगी। परन्तु जनता की आशाओं पर तब बज्रपात हुआ जब तिवारी ने शासन के नाम पर यहां पर लालबतियों का ही नहीं जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार का तांडव मचाया। उनसे मुक्ति के लिए जनता ने जो जनादेश दिया उसमें भी दूसरी नम्बर की पार्टी रहने के बाबजूद हरीश रावत ने निर्दलीय, उक्रांद व बसपा के सहयोग से सरकार बनाने का सफल प्रयास कर दिया था। वह जब तक मंजिल पर पंहुचता तब तक पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी ने अपने दिल्ली समर्थकों के सहयोग से सोनिया गांधी को गुमराह करके सरकार बनाने के बजाय विपक्ष में बेठने का फरमान जारी करवा दिया।
इसके बाबजूद 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भी चुने हुए अधिसंख्यक विधायकों की भाजपा के वरिष्ठ जमीनी नेता भगतसिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय गैर विधायक भुवनचंद खंडूडी को बलात मुख्यमंत्री के पद पर थोप कर लोकशाही का अपमान किया। खण्डूडी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जो अलोकतांत्रिक व जातिवादी मानसिकता से प्रदेश की जनता ही नहीं अपितु प्रदेश भाजपा के मंत्री व विधायक ही त्राही त्राही करने लगे। उनके मुंह लगे बाहरी अधिकारी के राज से प्रदेश में भ्रष्टाचार को जो हवा मिली नजता त्रस्त हो गयी। जब अपने अधिसंख्यक विधायकों की खण्डूडी को बदलने की गुहार भाजपा आला नेतृत्व ने नहीं सुनी तो जनता ने लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी पांच सीटों से भाजपा का सुपडा ही साफ कर दिया। इसके बाबजूद जब भाजपा आला नेतृत्व नहीं जागा तो विधायकों व कांेश्यारी के सामुहिक विरोध के आगे भाजपा आला नेत्त्व ने मजबूरी में प्रदेश की सत्ता से खण्डूडी को हटा दिया परन्तु अधिकांश विधायकों की कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा को रौंदते हुए फिर खंडूडी की सबसे पहली पसंद निशंक को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। भाजपा का जातिवादी प्रवृति देख कर पूरे प्रदेश की जनता हैरान रह गयी। निशंक के शासन में भी जो भ्रष्टाचार का तांडव मचा उसके बाबजूद जब आला कमान ने सत्ता परिवर्तन न करने की हट लगायी रखी तो मजबूरी में भाजपा नेता तेजपाल सिंह रावत ने भाजपा से इस्तीफा दे कर जनता में व्यापक आंदोलन छेड दिया। इसी आंदोलन को भुनाते हुए खंडूडी ने केन्द्रीय नेतृत्व को झांसे में ले कर फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली। निशंक के कुशासन व खंडूडी की अलोकशाही के बाबजूद भाजपा ने जिस संकीर्णता से फिर खंडूडी जरूरी का नारा विधानसभा चुनाव 2012 में दिया उससे आक्रोशित हो कर प्रदेश की जनता ने न केवल खंडूडी अपितु भाजपा को भी प्रदेश की सत्ता से बाहर कर दिया। जनता के इस जनादेश का एक साफ नजरिया था कि वह प्रदेश में किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार व जातिवादी राजनीति को स्वीकार नहीं करती। इसके बाबजूद कांग्रेस आलाकमान ने जननेताओं को दर किनारे करके आधा दर्जन भी विधायकों के साथ न होने वाले विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया तो जनता अपने आप को ठगी महसूस कर रही है।
जनता इस बात से भी आहत है कि क्यों प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के तथाकथित जमीनी नेता इतने बंधुआ मजदूर व अपने हितों के लिए खुदगर्ज बन गये है। क्यों वे प्रदेश के हितों के लिए आवाज उठाते है। आज प्रदेश के इन बोने नेतृत्व के कारण ही प्रदेश अपनी स्थाई राजधानी गैरसैंण नहीं बना पाया, प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोपा गया, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों व मुलायम के कहारों को शर्मनाक संरक्षण दिया जा रहा है, प्रदेश के संसाधनों व प्रतिभाओं को संरक्षण करने के बजाय प्रदेश के मूल संसाधनों-जल जंगल, जमीन की बंदरबांट करने के हथकण्डे अपनाये जा रहे है। इस प्रकरण से साफ हो गया है कि कांग्रेस ही नहीं भाजपा दोनोें भले ही देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियां हो परन्तु उनका नजरिया ही नहीं उनकी पूरी कार्यप्रणाली अलोकतांत्रिक व जातिवादी तथा भ्रष्टाचार पोषक है। इन दोनों दलों को ही जनादेश का सम्मान करना तक अभी नहीं आया तो अन्य दलों से इसकी आशा करनी भी नादानी होगी।
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