खुदगर्ज हुक्मरानों के कारण जंगल राज में तब्दील हो गया उप्र व उत्तराखण्ड

28 मई को गंगा यमुना व भारतीय संस्कृति की आत्मा समझे जाने वाले उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश दोनों की विधानसभा में जो हो हल्ला हुआ उससे विधानसभा एक दिन के लिए स्थगित कर दी गयी। दोनों प्रदेश जो कुछ समय पहले तक एक ही थे। जिनकी संस्कृति गंगा यमुना की संस्कृति के रूप में एक ही है। दोनों को अलग होने के बाबजूद एक सा ही वर्तमान है। वह है दोनों प्रदेश आज देश के सबसे भ्रष्टत्तम राज्य बने हुए है। यह नम्बर कभी लालू शासनकाल के दौरान बिहार का होता था वह आज उप्र व उत्तराखण्ड का है। जहां उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड की यह हालत के लिए अगर दोषी हैं तो कांग्रेस, भाजपा, सपा व बसपा। जिन्होंने अपने जनविरोधी व लोकशाही को लुटशाही बनाने के ऐजेन्डे में काम कर भारतीय संस्कृति के इस हृदय प्रदेशों को भ्रष्टाचार व पतन का गटर बना दिया। उत्तर प्रदेश में पतन का दुर्भाग्यशाली इतिहास भी उसी एनडी तिवारी के कुशासन से प्रारम्भ हुआ जिनके कुशासन से नवोदित राज्य उत्तराखण्ड की जड़ों में भ्रष्टाचार रूपि मट्ठा उडेल दिया गया। इसके बाद भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं उप्र में अपने संकीर्ण ऐजेन्डे से बसपा व सपा के आपसी झूटे अहं की जंग ने इसे इस मुकाम पर ला खडा कर दिया कि उप्र आज जंगल राज में बदल कर रह गया है।
वहीं उत्तराखण्ण्ड की स्थिति इतनी शर्मनाक है कि मात्र 12 साल के अपने शैशव काल में यह देश का सबसे भ्रष्टतम राज्य बन गया। यहां पर भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली के आला कमानों ने अपने निहित स्वार्थों व संकीर्ण जातिवादी ऐजेन्डे के कारण प्रदेश की लोकशाही की निर्मम हत्या ही कर दी। यहा पर अभी 12 साल के समय में भाजपा व कांग्रेस दोनों ने यहां की जनभावनाओं को ही नहीं रोंदा अपितु अपने दल के विधायकों की राय को ही रौदते हुए यहां के जन नेताओं को प्रदेश की सत्ता सौंपने के बजाय अपने तिवारी, ,खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा जैसे प्यादों को थोपा। आज विश्व का सबसे बडा ईमानदार व शांत प्रदेश उत्तराखण्ड भ्रष्टतम राज्य बन गया है। वर्तमान समय की स्थिति यह है कि यहां पर विधानसभा का बजट सत्र का शुभारंभ के दिन ही स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री पर अपनी विधायकी सीट के लिए प्रदेश भाजपा के एक विधायक की अनैतिक खरीद परोख्त का आरोप लगते हुए हो हल्ला का भैंट चढ़ गया। भाजपा सहित उत्तराखण्ड के तमाम बुद्धिजीवी इस कृत्य को प्रदेश की लोकशाही को झारखण्ड व गोवा की तरह खरीद परोख्त की मंडी में तब्दील करने का आरोप लगा कर निंदा कर रहे है। विधानसभा के बजट सत्र के शुरू दिन ही सितारगंज के पूर्व विधायक किरन मंडल के इस्तीफे से जुड़े प्रकरण पर विपक्षी दल भाजपा ने भारी हंगामा किया। विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि सरकार में बैठे प्रभावशाली लोगों ने पल्रोभन देकर विधायक से इस्तीफा दिलाया है। सदन में चर्चा करवा कर इस प्रकरण की जांच कराई जाए। विपक्ष का हंगामा बढ़ता देख विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने इस प्रकरण से जुड़ा विपक्ष का कार्य स्थगन प्रस्ताव खारिज कर मंगलवार सुबह 11 बजे तक के लिए विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी। प्रदेश की स्थिति दयनीय है। इसके लिए लोग वर्तमान कांग्रेस को ही नहीं भाजपा को भी दोषी मान रहे है।
उत्तर प्रदेश की वर्तमान हालात क्या है यह तो प्रदेश के राज्यपाल के विधानमण्डल के संयुक्त बैठक को 28मई को किये गये संबोधन व उसके बाद हुए सदन की हालत से ही उजागर हो जाती है। उप्र के राज्यपाल बी एल जोशी ने बिना लाग लपेटते हुए कहा कि राज्य पिछले पाच वर्षो में देश के इतिहास में सबसे बडे भ्रष्टाचार, निर्दोष लोगों के उत्पीड़न और जंगलराज का गवाह बना। राज्यपाल ने अपने 41 पृष्ठों वाले अभिभाषण में पिछले पाच साल के शासनकाल को कोसते हुए कहा कि इस दौरान जनता को पत्थर, मूर्तियों और स्मारकों के अलावा कुछ नहीं मिला। उन्होंने कहा कि इस दौरान राजनैतिक अधोपतन के चलते पूरे प्रदेश को शर्मसार कर देने वाली कई घटनाएं घटित हुई। हालांकि यह राज्यपाल का भाषण प्रदेश की वर्तमान सत्तासीन सरकार का राजनैतिक बयान भी समझा जा सकता है। परन्तु इसके बाद सदन में बसपा व सपा के विधायकों ने इसे उधम मचा कर सदन की गरीमा को शर्मसार किया उससे राज्यपाल का यह बयान पूरी तरह सच्चा साबित कर दिया। ऐसा ही हाल उत्तराखण्ड में देखने को मिला।
उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सदियों से उपेक्षित व शोषित दलित समाज के विकास व सम्मान दिलाने के नाम पर उप्र की सत्ता में आसीन हुई थी तो दलित व वंचित समाज को आश जगी थी कि उनके दुख दर्द को दूर करने वाली उनकी अपनी नेता के पास प्रदेश की बागडोर आने के बाद अब उनके दिन सुधरेंगे। परन्तु मायावती के शासनकाल में प्रदेश के लोगों का यह भ्रम भी टूटा। अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बाबजूद न तो प्रदेश में शोषित समाज का शोषण ही रूका व नहीं उनके विकास को वह पंख ही लगे जिसकी उनको आशा थी। अगर प्रदेश में एक अजूबा हुआ वह जो आज तक अधिकांश राजनेता नहीं कर पाये वह था मायावती द्वारा जनविकास के संसाधनों से अपनी मूर्तियों से पूरे प्रदेश को एक प्रकार ढक दिया।
हालांकि राज्यपाल ने अपने संबोधन पत्र में प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करके प्रदेश में अमन चैन एवं आपसी सौहार्द कायम करने को प्रदेश सरकार की सवचर््ेच्च प्राथमिकता बताते पूर्ववर्ती बसपा सरकार की विगत पाच वर्षो के लूट खसोट के एजेंडे के स्थान पर प्रदेश सरकार ने विकास का एजेंडा तैयार किया है, जो प्रदेश को प्रगति के पथ पर ले जाने का ऐलान किया।
उन्होंने सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी सरकार के विकास एजेंडे और भावी कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए किसानो, नौजवानों, छात्र छात्राओं, अल्पसंख्यकों, दलितों एवं पिछड़ो के लिए चलाई जा रही और प्रस्तावित योजनाओं की भी जानकारी दी।
यह कहते हुए कि प्रदेश की जनता मूर्ति, पत्थर व स्मारक की जगह सडक, पानी व बिजली जैसी अवस्थापना सुविधाओं की आकाक्षी है,। इसके साथ राज्यपाल के अभिभाषण के द्वारा प्रदेश की सपा सरकार ने बुंदेलखड और पूर्वाचल जैसे पिछडे इलाकों में चल रही अथवा प्रस्थावित अवस्थापना विकास की प्राथमिकता का भी उल्लेख किया। इसके साथ ही लखनऊ में यातायात को सुगम बनाने के लिए दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन से 37.5 किलोमीटर की दूरी में मेट्रो रेल चलाने के लिए 12,500 करोड़ रुपये की विस्तृत परियोजना बनाने का भी संकल्प व्यक्त किया। किसान को दुर्घटना बीमा की राशि एक लाख से बढाकर पाच लाख रुपये कर दिए जाने के निर्णय का भी ऐलान किया गया।
आज उप्र व उत्तराखण्ड में यहां के खुदगर्ज नेताओ ंके कारण दोनों प्रदेश के स्थिति बहुत ही शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश में जहां नया नेतृत्व मिला है, लोगों को काफी आशा है परन्तु सपा के पूर्व में गुण्डा राज की दहशत आज भी लोगों के जहेन से नहीं गयी। परन्तु अखिलेश जिस प्रकार से अपना शासन चला रहे हें उससे लगता है कि वे सपा के गुण्डा प्रवृति के नेताओ ंपर शायद अंकुश लगा पायें। वहीं उत्तराखण्ड में तो लोकशाही की आश कहीं दूर दूर तक नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार से अलोकशाही प्रवृति से यहां पर कुशासन चलाया जा रहा है उससे प्रदेश में प्रदेश की जनता की वह आश पूरी होनी दूर की कोड़ी साबित हो रही है जिसके लिए इस राज्य का गठन लोगों ने अपने लम्बे संघर्ष व बलिदान करके किया। प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने की कोई कसर भाजपा व कांग्रेस ने इस राज्य के गठन के बाद अभी तक नहीं छोड़ी। खासकर जिस प्रकार से अपनी कुर्सी के लिए यहां के भूगोल, राजनैतिक ताकत व जनांकाक्षाओं को जनसंख्या पर आधारित परिसीमन, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों व उनके संरक्षकों को अभ्यदान देने , गैरसेंण राजधानी न बना कर, जातिवाद-क्षेत्रवाद की आड में भ्रष्टाचार का तांडव मचाने व किरण मंडल प्रकरण आदि से रौंदा जा रहा है उससे नहीं लगता की यहां पर दिल्ली आलाकमान के प्यादों को कहीं भी प्रदेश से लेश मात्र भी लगाव होगा। प्रदेश की जनता को भाजपा व कांग्रेस के अंध मोहपाश से उबर कर स्थानीय विकल्प खुद तेयार करना होगा तभी प्रदेश में लोकशाही का सूर्यादय हो सकेगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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