भारत में न्याय व्यवस्था सहित पूरे तंत्र से  अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्त करने के लिए 
संसद, सरकार, राजनेताओं सहित पूरे देशवासियों से भारतीय भाषा आंदोलनकारियों की खुली गुहार
(संसद की 60 वीं वर्षगांठ पर देश को अंग्रेजी भाषा  की गुलामी से मुक्त करने की गुहार )


महोदय,
          हम भारतीयों के लिए यह एक शर्मनाक असलियत है कि हमें  किसी भी भारतीय  भाषा में यहाँ के सबसे बड़े न्यायालय में न्याय माँगने का हक नहीं है? और वह भी हमारी आजादी के चैंसठ वर्षों के पश्चात भी! क्या आजादी का अर्थ केवल यूनियन जैक के स्थान पर तिरंगा झंडा फहरा लेना है?
                हम आपसे सविनय प्रार्थना करते हैं कि आप देश के एक महत्त्वपूर्ण एवं जिम्मेदार नेता के रूप में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन करवाने का प्रयास करें जिससे कि हम भारतीय अपनी भाषा में भी सर्वोच्च न्यायालय में जा सकेंद्य हमें आश्चर्य है कि विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र में कैसे यह औपनिवेशिक व्यवस्था इतने दिनों से कायम है! आदर्श अवस्था तो यह होगी कि भारत का कोई भी नागरिक, संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित किसी भी भाषा में सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की गुहार लगा सके, परन्तु अभी तो हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाएँ सर्वोच्च न्यायालय के लिए अछूत हैं।
                 2001 की जनगणना के अनुसार देश के 103 करोड़ (102, 87, 37 436) लोगों में से केवल दो लाख (2, 26, 449) लोगों के लिए अंग्रेजी प्रथम भाषा है य नौ  (8.6) करोड़ एवं चार (3.9) करोड़ लोगों के लिए यह क्रमशः द्वितीय और तृतीय भाषा हैद्य  हिन्दी को प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में इस्तेमाल करने वालों की संख्या क्रमशः बयालीस (42 .2) करोड़, दस (9.8 ) करोड़ एवं तीन (3.1) करोड़ हैद्य हम सर्वोच्च न्यायालय से अंग्रेजी हटाने की माँग नहीं कर रहे हैंय हम तो केवल यह प्रार्थना कर रहे हैं कि हम भारतीय नागरिकों को भारतीय भाषा में भी सर्वोच्च न्यायालय से न्याय प्राप्त करने की अनुमति मिलेद्य इसके अभाव में एक भारतीय नागरिक न तो अपनी भाषा में सर्वोच्च न्यायालय से अपनी बात कह सकता है और न ही कोई वकील अंग्रेजी में बोलने के कौशल के बिना यहाँ वकालत कर सकता हैद्य अगर हम उन सभी लोगों को जोड़ लें जो अंग्रेजी को प्रथम, द्वितीय और तृतीय भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हैं तो भी यह सब मिलाकर देश की आवादी का केवल बारह प्रतिशत होता हैद्य क्या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत के बाकी अठासी प्रतिशत लोगों के लिए नहीं है?
                 सभी जन-गणनाओं के आँकड़ों से यह बात अच्छी तरह स्पष्ट है कि इस देश में अंग्रेजी अत्यल्पसंख्यक लोगों की  भाषा हैद्य भारत देश में अंग्रेजी की एक अतिरिक्त चारित्रिक विशेषता यह है कि यह यहाँ के संभ्रांत लोगों की भाषा है और सामान्य लोग आम तौर पर भारतीय भाषा में ही बोलते और समझते हैंद्य ऐसी अवस्था में अगर सर्वोच्च न्यायालय की भाषा के रूप में केवल अंग्रेजी जारी रहती है, तो इसका निहितार्थ है भारत के नागरिकों के बीच  न्याय-प्राप्ति में अनुचित असमानताद्य भारत के बहुसंख्यक लोग न तो अंग्रेजी बोल सकते हैं, न पढ़ सकते हैं और न ही समझ सकते हैंद्य इसका अर्थ यह हुआ कि इस बात की पूरी संभावना है कि एक आम नागरिक यह समझ भी नहीं पाए कि सर्वोच्च न्यायालय में उसके मुकदमे के बारे में क्या प्रस्तुत किया गया हैद्य अभी कोई भी नागरिक सर्वोच्च न्यायालय में अपना मुकदमा लड़ने के लिए केवल उन्हीं  वकीलों को रखने के लिए बाध्य है जो अंग्रजी बोलने में प्रवीण हैंद्य इससे न केवल वकील चुनने में लोगों का विकल्प सीमित होता है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने के इच्छुक वकीलों के बीच भी विकास के अवसरों में असमानता आरोपित होती हैद्य सम्प्रति एक आम नागरिक को यह भी समझ में नहीं आएगा कि उसके मुकदमें के बारे में उसका वकील सर्वोच्च न्यायालय में क्या बोल रहा हैद्य अतः सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी को अनिवार्य भाषा के रूप में रखना श्स्वराजश् की अवधारणा के खिलाफ है, जबकि श्स्वराजश् हमारे स्वतंत्रता-आन्दोलन का पथ-प्रदर्शक सिद्धांत एवमऋ अति-वांछित उद्देश्य थाद्य भारतीय संविधान में राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व के तहत अनुच्छेद 39क में कहा गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और किसी मजबूरी के कारण कोई नागरिक न्याय पाने से वंचित न रह जाए।
                 इस गुलामी की व्यवस्था को शीघ्रातिशीघ्र खत्म करने की विनम्र प्रार्थना के साथ,
                                                                        आपका विश्वसनीय
                                                                        डा श्याम रुद्र पाठक(वैज्ञानिक)
                            12 मई, 2012                 संयोजक, न्याय एवं विकास अभियान   shyamrudrapathak@gmail.com 9818216384
देव सिंह रावत pyarauttrakhand@yahoo-co-in 9910145367
ओम प्रकाश oph1971@gmail-com 9871097893
विनोद पाण्डेय   bkpandey@yahoo-com 9312962529
जीतेन्द्र कुमार झा jitendrajha@lawyer-com 9811243945
शुभबीर सेजवाल  subhbirsejwal@gmail-com 9810901839
अधिवक्ता हरीश कुमार मेहरा        9810354910
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