संवैधानिक पदों पर दागदार छवि के लोगों को आसीन न करें बहुगुणा
संवैधानिक पदों पर दागदार छवि के लोगों को आसीन न करें बहुगुणा
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद यह प्रदेश का दुर्भाग्य रहा कि यहां पर प्रदेश के प्रतिभावान व प्रदेश के लिए समर्पित साफ छवि के व्यक्तियों के बजाय, अपने संकीर्ण निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए अपने प्यादों को प्रदेश के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर आसीन किया जाता रहा। इससे प्रदेश के हितों पर जहां कुठाराघात हुआ वहीं प्रदेश की दिशा बद से बदतर हो गयी। प्रदेश में भ्रष्टाचार की गर्त में धकेलने का सबसे बड़ा यही कारण रहा है। इसी पतन से सबक ले कर विजय बहुगुणा सरकार को अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की भयंकर भूल से सबक ले कर प्रदेश के हित की रक्षा में प्रदेश के संवैधानिक पदों पर योग्य व साफ छवि के उत्तराखण्ड के लिए समर्पित ईमानदार व्यक्तियों को आसीन करना चाहिए। कम से कम ऐसे व्यक्तियों को प्रदेश के महाधिवक्ता पद पर आसीन न किया जाय जिनका न्यायिक आचार ही सीबीआई व आईबी की नजरों में सम्मानजनक न हो।
सुत्रों के अनुसार हाल में जिस प्रकार से बहुगुणा सरकार में प्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण समझे जाने वाले महाधिवक्ता पद के लिए जिस प्रकार से ऐसे व्यक्ति का नाम प्रमुखता से लिया गया जो उत्तराखण्ड के स्वाभिमान को मुजफरनगर काण्ड-94 में रौंदने वाले गुनाहगार अनन्त कुमार को कानूनी गलत संरक्षण देने के कारण सीबीआई ने दागदार की सूचि में रखा। यही नहीं इनका रिकार्ड इतना दागदार रहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के शासनकाल में नैनीताल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए प्रदेश सरकार द्वारा उक्त व्यक्ति की पैरवी को खारिज कर दी गयी थी। सुत्रों के अनुसार ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नहीं होनी चाहिए यही गोपनीय रिपोर्ट सीबीआई व आईबी ने दी थी। इसके बाबजूद ऐसे व्यक्ति को अगर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण न्यायिक पद पर आसीन किया जाता है तो प्रदेश की न्याय व्यवस्था पर ही प्रश्न चिन्ह लगने के साथ साथ प्रदेश के हितों के साथ शर्मनाक खिलवाड होगा।
ऐसा नहीं कि प्रदेश सरकार के पास इस पद के लिए अन्य योग्य प्रतिभावान व्यक्ति नहीं है। सबसे योग्य दावेदारों में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत जो राज्य गठन जनांदोलन के अग्रणी संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के संयोजक रहने के साथ साथ उत्तराखण्ड में निशंक सरकार के स्टर्जिया सहित कई घोटालों में बेनकाब करने का ऐतिहासिक कार्य कर चूके है। प्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ट अधिवक्ता अवतार सिंह रावत की गिनती देश के सबसे ईमानदार व तेजतरार प्रतिभावान अधिवक्ताओं में होती है। वे तिवारी सरकार में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर भी आसीन रह चूके है। स्टर्जिया प्रकरण में उनकी प्रतिभा का लोहा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी व वर्तमान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ही नहीं कांग्रेसी महासचिव दिगविजय सिंह व चैधरी बीरेन्द्रसिंह भी स्वयं मान चूके है। इसके बाबजूद उनकी ईमानदार छवि के कारण उनकी प्रतिभा से अभी तक प्रदेश सरकार लाभ लेने से कतरा रही है। सबसे हैरानी की बात यह है कि प्रदेश के ऐसे प्रखर अधिवक्ता के होने के बाबजूद प्रदेश गठन के 12 सालों तक देश के ऐसे लोगों को प्रदेश के हितों का रक्षक यानी महाधिवक्ता व उनकी टीम में रखे गये जो उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय में प्रदेश के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रहे।
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