आईपीएल व बाॅलीवुड के गुलामों ने निकाला राजनेताओं व न्यायपालिका की तरह भारतीय लोकशाही व स्वाभिमान का जनाजा
क्रिकेट के अन्य मैचों में विजय की तरह ही आइ्रपीएल-5 में विजय के बाद जिस प्रकार से शराब की बोतलो को लहरा कर और एक दूसरे के सिर पर उडेल कर अपनी खुशी इजहार कर रहे थे। यह कहीं दूर दूर तक भारतीय संस्कृति के अनरूप नहीं है। इस विजयी जश्न से कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि यह विजय किसी भारतीय टीम या भू भाग की है। भारतीय संस्कृति में गंगा जल या पुष्प या अक्षत उडेल कर खुशी को प्रदर्शित किया जाता है परन्तु शराब उडेल कर जश्न मनाना न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवीय संस्कृति का भी अपमान है। शराब को उडेलकर खुशी के क्षणों में एक दूसरे के उपर शराब को उडेल कर डालना पाश्चात जगत की गलत परंपरा है उसको अंधा अनुशरण करके उसे भारतीय परिवेश में भी आत्मसात करने वालों को न तो तनिक शर्म आयी व नहीं उनको इसका कहीं दूर तक भान तक होगा। भारतीय क्रिकेट बोर्ड या आईपीएल मेच में तो वेसे भी भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा और भारतीय संस्कारों को दफन करने का धृर्णित कृत्य इस देश की धरती में करने का दुशाहस किया जाता रहा है। भेड बकरियों की तरह खिलाडियों की बिक्री किसी गुलामों की खरीद परोख्त वाले जमाने की बदनुमा याद ही दिलाती है। इस मेचों में सट्टा, फिक्स व भेड़ बकरियों की तरह खिलाडियों की बिक्री के अलावा भारतीय भाषाओं को रौंद कर अंग्रेजी भाषा का डंका बजवाने के बाबजूद भारत की बेशर्म सरकार के ही नहीं यहां के तथाकथित बुद्धिजीवियों के कान पर भी जूॅं तक नहीं रेंग रही है।
आईपीएल-5 का ताज कोलकोता रायडर यानी बाॅलीवुड के चर्चित अभिनेता शाहरूख खान की टीम ने चैनई की धोनी के नेतृत्व वाली टीम को हरा कर जीता। शाहरूख खाॅं हो या हिन्दी सिनेमा का अन्य कोई अभिनेता या नेत्री इनको अकूत दोलत व शोहरत दोनों हिन्दी भाषा के कारण मिलती है परन्तु ये अधिकांश बडे समारोह या अन्य कार्यक्रमों में हिन्दी में बोलने के बजाय फिरंगी यानी गुलामी की भाषा अंग्रेजी में बोलने में अपनी शान समझते है। ठीक ऐसे ही भारतीय राजनेताओं की तरह ये भी अपने उस समाज व देश का अपमान करने का कृत्य करते हैं जिन्होंने इनको इतना सम्मान व दौलत दी। वेसे इस मेच में धोनी की टीम जीतती या मुकेश अम्बानी के स्वामित्व वाली मुम्बई की टीम या अन्य इसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता। जीते कोई भी परन्तु जीत का जश्न ये सब शराब को एक दूसरे के उपर बेशर्मी से उडेल कर मनाने का ही कृत्य करते। इनको न तो भारतीय न्याय व्यवस्था की तरह भारतीय संस्कृति व लोकशाही का भान है व नही अपने स्वाभिमान का। सबसे हैरानी की बात है कि आजादी के 65 साल बाद भी देश की न्याय व्यवस्था भी देश की जनभाषा में न्याय करने व गणवेश भारतीय परिवेश के अनरूप अपनाने के बजाय वही फिरंगी भाषा व गणवेश में ही ढो कर देश के स्वाभिमान व लोकशाही का जनाजा निकाल रहे है। यही देश की त्रासदी है कि देश के हुक्मरान, नौकरशाह, न्याय, खेल सभी जगह ऐसे लोगों का शिकंजा कसा हुआ है जो गुलामी का बदनुमा कलंक स्वतंत्र भारत के माथे में लगाने की धृष्ठता व देशद्रोह करने का दुशाहस कर रहे हैं। ये तो गुलामों की तरह भाडे के टटूओं की तरह अपने आका के जय हे जय है गाने में ही अपना भाग्य समझते है। इससे अपमान इस देश की लोकशाही का दूसरा क्या होगा कि यहां पर भ्रष्टाचार को मिटाने व भारतीय संस्कृति का ध्वज वाहक होने का दंभ भरने वाले भी इंडिया का राग कह कर भारत को विस्मृत कर रहे हैं।
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