सरकार, बांध समर्थक व विरोधियों से दो टूक सवाल
उत्तराखण्ड में जलविद्युत परियोजना के विरोधियों व समर्थकों को एक बात समझ में आनी चाहिए कि वे किसी के निहित स्वार्थ पूर्ति के प्यादे न बन जायें। आज कुछ लोग है जो गंगा और उसकी सहायक नदियां जिनका उदगम स्थल उत्तराखण्ड में है या अन्यत्र है उनमें बडे बांध बनाये जाने का विरोध कर रहे है, वे गंगा की निर्मलता व अविरलता के लिए चिंतित हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग हैं जो उत्तराखण्ड में ऊर्जा व अन्य विकास के लिए इन नदियों पर बांध बनाये जाने का पुरजोर समर्थन कर रहे है। दोनों के अपने तर्क है। दोनों इन दिनों एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर इस मामले को गरमा रहे है। बांध के विरोध जहां गंगा को निर्मल व अविरल बहने का तर्क दे कर केवल प्रदेश में बांध बनाने का विरोध कर रहे हैं वे गंगादि नदी पर बने साधु महात्माओं, होटलों के बडी संख्या में गंगा को दुषित करने वाले सिविरों को बंद करने या उनको शुद्ध करने के संयंत्र लगाने के लिए कोई ठोस पहल तक नहीं कर रहे है। अगर गंगा को शुद्ध करने के लिए गंगा पर बडे बांध बनाना रोकना जरूरी है तो उतना ही जरूरी है इस मार्ग पर बने होटल व पंचतारा आश्रमों में उनके गटर नाली आदि शोधक संयंत्रों का हर हाल में लगाने का। बांध विरोधियों को भी एक पकक्षीय बात कहना तर्क संगत नहीं है।
आज संचार क्रांति के युग में ही नहीं अनादिकाल से सनातन संस्कृति में अन्य भूभाग की तरह ही उत्तराखण्ड केवल उत्तराखण्ड में रहने वाले लोगों का ही नहीं है। अपितु पूरी सृष्टि का भी है। यहां पर अनादिकाल से जब भी सृष्टि पर कोई विपति आयी उसका समाधान यहां के मनीषियों, चिंतको ंव योद्धाओं ने यहीं खोजा।
आज बात हो रही बांधों की, ऊर्जा की। वेसे भी चंद टकों के लालच में उत्तराखण्ड जैसे भूकम्प दृष्टि से अतिसंवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति से छेड़ छाड कर कृतिम विशाल बांध रूपि जलाशयों का निर्माण किसी आत्मघाति कदम से कम नहीं है। इस कारण जहां यहां के लाखों पेड पोधों व वनस्पतियों के साथ करोड़ो जीवों की निर्मम हत्या करने के साथ लाखों लोगों को विस्थापित करने को कोन सा पाषाण हृदय का इंसान अपने निहित स्वार्थ में अंधा हो कर जबरन यहा जनता को ऊर्जा की पट्टी बांध कर वर्तमान का ही नहीं भविष्य को भी तबाह करने का कृत्य कर रहे है।
जहां तक ऊर्जा की बात है। यह जरूरी नहीं बडे बांध बनाया जाय, जब छोटे छोटे होइड्रो बांधों से ऊर्जा का उत्पादन हो सकता है तो फिर क्यों यहां पर विशाल बांध बनाने की हटधर्मिता बनायी जा रही है। इन छोटे होइड्रो बांधों को केवल स्थानीय लोगों व उत्तराखण्ड ऊर्जा उपक्रम की सहभागिता से अगर बडे पेमाने पर बनाये जाय न तो यहां पर विस्थापन का खतरा होगा व नहीं जीवन जन्तु व प्रकृति को बडा नुकसान होगा। इसके साथ इस सीमान्त प्रदेश में माफियाओं के हस्तक्षेप से बचा जा सकता है।
प्रदेश में विजय बहुगुणा सरकार के यहां पर जल विद्युत परियोजनाओं को प्रारम्भ करने की हाय तौबा को देख कर इन दिनों बांध का समर्थन कर रहे हैं क्या वे विजय बहुगुणा सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर सकते हैं कि प्रदेश में न तो बडे बांध बनायें जाय व नहीं प्रदेश से बाहर के आदमी की भागेदारी ही इन बांधों में हो। ये बांध बने तो छोटे स्तर के उसमें केवल स्थानीय लोगों की भागेदारी हो वह भी ग्राम पंचायत के साथ प्रदेश ऊर्जा विभाग की सहभागिता । इससे ऊर्जा के साथ यहां पर रोजगार की समस्या का भी काफी हद तक समाधान होगा तथा प्रदेश में टिहरी बांध से उत्पन्न देश के विकास को चूना लगाने वाले तथाकथित ऊर्जा के सौंदागरों पर भी अंकुश लगेगा। परन्तु इस प्रकार की योजना से न तो दलालों व नौकरशाहो तथा नहीं हुक्मरानों का भला होगा, भला होगा तो केवल जनता व प्रदेश का। क्या बांध समर्थक अपना आंदोलन इस दिशा में ले जा सकते है। उन लोगों को भी बेनकाब किया जाना चाहिए जो कल तक टिहरी जैैसे विशालकाय बांधों का विरोध कर रहे थे और आज सियारों की तरह ऊर्जा का राग छेड कर उत्तराखण्ड के हिमायती बने है।
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