उत्तराखण्डी स्वाभिमान, विकास व लोकशाही का प्रतीक है गैरसेंण
राजधानी गैरसेंण बनाने के मार्ग में अवरोधक न बने भ्रष्ट नेता व नौकरशाह
प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने घोषणा की है कि 2 अक्टूबर उत्तराखण्ड के शहीदी दिवस के अवसर पर प्रदेश सरकार के मंत्रीमण्डल की बैठक गैरसैंण में आयोजित की जायेगी। गैरसैंण में वर्तमान सरकार विधानसभा का एक विशेष सत्र भी आयोजित करने का मन बना रही है। प्रदेश की स्थाई राजधानी कभी गैरसैंण बन पायेगी ? यही यज्ञ प्रश्न उत्तराखण्ड की आम जनता के मानसपटल पर रह रह कर गूंज रहा है। राजधानी गैरसंेण बनेगी या देहरादून ही रहेगी? इस बारे में प्रदेश की राजसत्ता में काबिज रहे हुक्मरान हमेशा मूक रहे। जिससे प्रदेश में उहापोह की स्थिति बनी रही। इससे प्रदेश की दिशा व दशा दोनों प्रभावित रहे। हालांकि राज्य आंदोलनकारी व शहीद ही नहीं आम जनता भी स्थाई राजधानी गैरसेंण बनाने पर राज्य गठन से पहले ही एकमत हैे। परन्तु जनहितों को दाव पर लगा कर अपनी नादिरशाही चलाने वाले सत्तालोलुपु हुक्मरान व भ्रष्ट नौकरशाही ने लोकशाही में जिस शर्मनाक ढ़ग से दीक्षित आयोग के षडयंत्र रच कर जनभावनाओं को जिस निर्ममता से रौंदा वह लोकतंत्र के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। आखिर एक ही बात रह रह कर लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों के मन में क्रोंध रहा है कि आखिर यह राज्य जनता के हित व विकास के लिए बना कि इन सत्तालोलुपु नेताओं व नौकरशाहों की ऐसगाह बनाने के लिए। जनहितों को रौंदने वालों को एक पल के लिए भी लोकतंत्र में जगह नहीं होनी चाहिए। गैरसेंण आज हुक्मरानों व नौकरशाहों द्वारा ठगे गये उत्तराखण्डी जनमानस के लिए केवल एक स्थान नहीं रह गया है अपितु गैरसेंण उत्तराखण्ड की जनता के लिए स्वाभिमान, विकास व लोकशाही के जीवंत प्रतीक बन गया है। अगर प्रदेश में कोई ऐसा हुक्मरान या सरकार आती जिसको लोकशाही व जनभावनाओं का जरा सा भी भान होता तो वह सरकार प्रदेश की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसेंण राजधानी बनाने के बजाय देहरादून थोपने का षडयंत्र रचने वाले ‘दीक्षित आयोग’ को बनाने वाले व विस्तार पर विस्तार देने वालों को लोकशाही का अपराधी मान कर उनको दण्डित करने का काम करते हुए अविलम्ब गैरसेंण राजधानी बनाने का ऐलान करता।
उत्तराखण्ड राज्य गठन व इसकी राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग को ले कर मेरे जैसे हजारों उत्तराखण्डियों ने अपना सर्वस्व इस आंदोलन में समर्पित कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण की आपार कृपा, उत्तराखण्डियों के ऐतिहासिक संघर्ष, बलिदान तथा भाजपा नेतृत्व वाली राजग के प्रधानमंत्री अटल- आडवाणी की सरकार व सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के रचनात्मक सहयोग से उत्तराखण्ड राज्य तो बन गया परन्तु प्रदेश की राजधानी गैरसेण बनने के लिए आज राज्य गठन के मेरे जैसे असंख्य आंदोलनकारी राज्य गठन के 12 साल बाद भी निरंतर संघर्ष कर रहे है। प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसेंण बन जाती अगर उत्तराखण्ड में स्वामी, तिवारी, खण्डूडी, निशंक जैसे जनविरोधी नेतृत्व प्रदेश की सत्ता में आसीन रहे। प्रदेश की सत्तासीन सरकारें इस मामले में कितने संवेदनहीन रहे इसका जीता जागता उदाहरण बाबा मोहन उत्तराखण्डी जेसे महान उत्तराखण्डी सपूत को राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर चलाया गया एक महिने तक का आमरण अनशन भी तत्कालीन उत्तराखण्ड राज्य गठन के विरोधी रहे मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की दम तोड़ चूकी आत्मा को नहीं जागृत कर पायी। तिवारी की इस अमानवीय हटधर्मिता के कारण बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने गैरसैंण की मांग के लिए अपनी शहादत दे दी। बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने अपनी इस शहादत के लिए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी को ही जिम्मेदार ठहराया। इस शहादत के बाबजूद न तो तिवारी की दमतोड़ चूकी आत्मा ही जागृत हो पायी व नहीं उत्तराखण्ड दिवस पर उत्तराखण्डी शहीदों के नाम पर घडियाली आंसू बहाने वाले उसके बाद सत्तासीन हुए खण्डूडी व निशंक को शहीदों की इस भावना का आदर करने की जरा सी भी नैतिकता रही। आज उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी संगठन व म्यर उत्तराखण्ड जैसे सामाजिक संगठन ही जब भी उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग प्रदेश के हुक्मरानों से करते हैं तो ये हुक्मरान अपने दायित्व का निर्वाह करने की जगह आंदोलनकारियों का उपहास उडाने व उनको फटकार लगाने का निदनीय दुशाहस तक कर देते है। ऐसी स्थिति में तथाकथित सामाजिक संगठन जो आयोजक बने होते है, भडुओं की तरह नेताओं को गौरवान्वित करते है। प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बने यह लोकशाही के सम्मान का प्रतीक बन गया है। जिस प्रकार जनभावनाओं को थोप कर जनविरोधी भ्रष्ट नेता व नौकरशाही अपने निहित स्वार्थो के लिए बलात राजधानी देहरादून मे ंही थोपने का प्रयास कर रहे है, उससे प्रदेश में निश्चित रूप से लोकशाही बेहद कमजोर हो गयी है। प्रदेश में दूरस्थ व पर्वतीय क्षेत्रों में जहां के लोग उप्र में भी रह कर विकास की गंगा के दर्शन के लिए तरसते रहे, ऐसे क्षेत्रों में प्रदेश के हुक्मरानों व नौकरशाहों ने देहरादून में बैठ कर इन क्षेत्रों में विकास के द्वार खोलने का कोई ईमानदार भरी पहल तक नहीं की। इससे प्रदेश के लोग राज्य गठन के बाबजूद भी खुद को ठगा महसूस कर रहे है। लोगों में ये धारणा घर बना गयी कि देहरादून में काबिज नेता व नोकरशाह उनके विकास की गंगा को खुद हडप रहे है। इसीलिए वे गैरसेंण राजधानी बनाने की पुरजोर मांग कर रहे है। सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि प्रदेश के भाग्य विधाता बने राजनेता व जनता की सेव के लिए दो टके के लिए नौकरी करने वाले नोकरशाह जनभावनाओं का आदर करने के बजाय प्रदेश के मान सम्मान, विकास व लोकशाही के प्रतीक राजधानी गैरसैंण के संकल्प को साकार करने के बजाय उसके मार्ग पर अवरोधक खडे करने में उत्तराखण्डद्रोहियों की तरह लगे रहते है। केवल इस समय प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग सांसद प्रदीप टम्टा ही कर रहे है। वहीं प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए सांसद सतपाल महाराज अपनी पहल बनाये हुए है, उन्हीं की पहल पर इस बार प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने जनता का दिल जीतने के लिए गैरसेंण में विधानसभा का एक सत्र करने का ऐलान किया। इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए परन्तु प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण के अलावा कहीं और थोपना लोकशाही का ही नहीं उत्तराखण्डी शहीदों की शहादत को रोंदने वाला कृत्य होगा। आशा है उत्तराखण्ड के इन पदलोलुपु नेताओं को कुछ शर्म आयेगी। अपनी कुर्सी के लिए पूरे देश में हाय तोबा मचाने वाले ये राजनेता कभी उत्तराखण्ड के हक हकूकों के लिए एक पल भी ईमानदारी से काम करते तो आज उत्तराखण्ड देश का सबसे भ्रष्टतम राज्य नहीं बनता। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
राजधानी गैरसेंण बनाने के मार्ग में अवरोधक न बने भ्रष्ट नेता व नौकरशाह
प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने घोषणा की है कि 2 अक्टूबर उत्तराखण्ड के शहीदी दिवस के अवसर पर प्रदेश सरकार के मंत्रीमण्डल की बैठक गैरसैंण में आयोजित की जायेगी। गैरसैंण में वर्तमान सरकार विधानसभा का एक विशेष सत्र भी आयोजित करने का मन बना रही है। प्रदेश की स्थाई राजधानी कभी गैरसैंण बन पायेगी ? यही यज्ञ प्रश्न उत्तराखण्ड की आम जनता के मानसपटल पर रह रह कर गूंज रहा है। राजधानी गैरसंेण बनेगी या देहरादून ही रहेगी? इस बारे में प्रदेश की राजसत्ता में काबिज रहे हुक्मरान हमेशा मूक रहे। जिससे प्रदेश में उहापोह की स्थिति बनी रही। इससे प्रदेश की दिशा व दशा दोनों प्रभावित रहे। हालांकि राज्य आंदोलनकारी व शहीद ही नहीं आम जनता भी स्थाई राजधानी गैरसेंण बनाने पर राज्य गठन से पहले ही एकमत हैे। परन्तु जनहितों को दाव पर लगा कर अपनी नादिरशाही चलाने वाले सत्तालोलुपु हुक्मरान व भ्रष्ट नौकरशाही ने लोकशाही में जिस शर्मनाक ढ़ग से दीक्षित आयोग के षडयंत्र रच कर जनभावनाओं को जिस निर्ममता से रौंदा वह लोकतंत्र के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। आखिर एक ही बात रह रह कर लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों के मन में क्रोंध रहा है कि आखिर यह राज्य जनता के हित व विकास के लिए बना कि इन सत्तालोलुपु नेताओं व नौकरशाहों की ऐसगाह बनाने के लिए। जनहितों को रौंदने वालों को एक पल के लिए भी लोकतंत्र में जगह नहीं होनी चाहिए। गैरसेंण आज हुक्मरानों व नौकरशाहों द्वारा ठगे गये उत्तराखण्डी जनमानस के लिए केवल एक स्थान नहीं रह गया है अपितु गैरसेंण उत्तराखण्ड की जनता के लिए स्वाभिमान, विकास व लोकशाही के जीवंत प्रतीक बन गया है। अगर प्रदेश में कोई ऐसा हुक्मरान या सरकार आती जिसको लोकशाही व जनभावनाओं का जरा सा भी भान होता तो वह सरकार प्रदेश की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसेंण राजधानी बनाने के बजाय देहरादून थोपने का षडयंत्र रचने वाले ‘दीक्षित आयोग’ को बनाने वाले व विस्तार पर विस्तार देने वालों को लोकशाही का अपराधी मान कर उनको दण्डित करने का काम करते हुए अविलम्ब गैरसेंण राजधानी बनाने का ऐलान करता।
उत्तराखण्ड राज्य गठन व इसकी राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग को ले कर मेरे जैसे हजारों उत्तराखण्डियों ने अपना सर्वस्व इस आंदोलन में समर्पित कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण की आपार कृपा, उत्तराखण्डियों के ऐतिहासिक संघर्ष, बलिदान तथा भाजपा नेतृत्व वाली राजग के प्रधानमंत्री अटल- आडवाणी की सरकार व सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के रचनात्मक सहयोग से उत्तराखण्ड राज्य तो बन गया परन्तु प्रदेश की राजधानी गैरसेण बनने के लिए आज राज्य गठन के मेरे जैसे असंख्य आंदोलनकारी राज्य गठन के 12 साल बाद भी निरंतर संघर्ष कर रहे है। प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसेंण बन जाती अगर उत्तराखण्ड में स्वामी, तिवारी, खण्डूडी, निशंक जैसे जनविरोधी नेतृत्व प्रदेश की सत्ता में आसीन रहे। प्रदेश की सत्तासीन सरकारें इस मामले में कितने संवेदनहीन रहे इसका जीता जागता उदाहरण बाबा मोहन उत्तराखण्डी जेसे महान उत्तराखण्डी सपूत को राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर चलाया गया एक महिने तक का आमरण अनशन भी तत्कालीन उत्तराखण्ड राज्य गठन के विरोधी रहे मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की दम तोड़ चूकी आत्मा को नहीं जागृत कर पायी। तिवारी की इस अमानवीय हटधर्मिता के कारण बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने गैरसैंण की मांग के लिए अपनी शहादत दे दी। बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने अपनी इस शहादत के लिए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी को ही जिम्मेदार ठहराया। इस शहादत के बाबजूद न तो तिवारी की दमतोड़ चूकी आत्मा ही जागृत हो पायी व नहीं उत्तराखण्ड दिवस पर उत्तराखण्डी शहीदों के नाम पर घडियाली आंसू बहाने वाले उसके बाद सत्तासीन हुए खण्डूडी व निशंक को शहीदों की इस भावना का आदर करने की जरा सी भी नैतिकता रही। आज उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी संगठन व म्यर उत्तराखण्ड जैसे सामाजिक संगठन ही जब भी उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग प्रदेश के हुक्मरानों से करते हैं तो ये हुक्मरान अपने दायित्व का निर्वाह करने की जगह आंदोलनकारियों का उपहास उडाने व उनको फटकार लगाने का निदनीय दुशाहस तक कर देते है। ऐसी स्थिति में तथाकथित सामाजिक संगठन जो आयोजक बने होते है, भडुओं की तरह नेताओं को गौरवान्वित करते है। प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बने यह लोकशाही के सम्मान का प्रतीक बन गया है। जिस प्रकार जनभावनाओं को थोप कर जनविरोधी भ्रष्ट नेता व नौकरशाही अपने निहित स्वार्थो के लिए बलात राजधानी देहरादून मे ंही थोपने का प्रयास कर रहे है, उससे प्रदेश में निश्चित रूप से लोकशाही बेहद कमजोर हो गयी है। प्रदेश में दूरस्थ व पर्वतीय क्षेत्रों में जहां के लोग उप्र में भी रह कर विकास की गंगा के दर्शन के लिए तरसते रहे, ऐसे क्षेत्रों में प्रदेश के हुक्मरानों व नौकरशाहों ने देहरादून में बैठ कर इन क्षेत्रों में विकास के द्वार खोलने का कोई ईमानदार भरी पहल तक नहीं की। इससे प्रदेश के लोग राज्य गठन के बाबजूद भी खुद को ठगा महसूस कर रहे है। लोगों में ये धारणा घर बना गयी कि देहरादून में काबिज नेता व नोकरशाह उनके विकास की गंगा को खुद हडप रहे है। इसीलिए वे गैरसेंण राजधानी बनाने की पुरजोर मांग कर रहे है। सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि प्रदेश के भाग्य विधाता बने राजनेता व जनता की सेव के लिए दो टके के लिए नौकरी करने वाले नोकरशाह जनभावनाओं का आदर करने के बजाय प्रदेश के मान सम्मान, विकास व लोकशाही के प्रतीक राजधानी गैरसैंण के संकल्प को साकार करने के बजाय उसके मार्ग पर अवरोधक खडे करने में उत्तराखण्डद्रोहियों की तरह लगे रहते है। केवल इस समय प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसेंण बनाने की मांग सांसद प्रदीप टम्टा ही कर रहे है। वहीं प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए सांसद सतपाल महाराज अपनी पहल बनाये हुए है, उन्हीं की पहल पर इस बार प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने जनता का दिल जीतने के लिए गैरसेंण में विधानसभा का एक सत्र करने का ऐलान किया। इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए परन्तु प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण के अलावा कहीं और थोपना लोकशाही का ही नहीं उत्तराखण्डी शहीदों की शहादत को रोंदने वाला कृत्य होगा। आशा है उत्तराखण्ड के इन पदलोलुपु नेताओं को कुछ शर्म आयेगी। अपनी कुर्सी के लिए पूरे देश में हाय तोबा मचाने वाले ये राजनेता कभी उत्तराखण्ड के हक हकूकों के लिए एक पल भी ईमानदारी से काम करते तो आज उत्तराखण्ड देश का सबसे भ्रष्टतम राज्य नहीं बनता। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
Comments
Post a Comment