समाज व प्रदेश के हितों को रौंदने वाले तमाम उत्तराखण्डी  नेताओं से कहीं बेहतर हैं किरण मंडल

भले ही आज भाजपा सहित उत्तराखण्ड की मीडिया व आम जनता सितारगंज के भाजपा विधायक किरण मंडल द्वारा विधायक पद से इस्तीफा दे कर कांग्रेस में सम्मलित होने की निंदा व अनैतिक बता रहे हों, परन्तु किरण मंडल ने वो काम किया जो नित्यानन्द स्वामी, भगतसिंह कोश्यारी, नारायणदत्त तिवारी, भुवनचंद खण्डूडी , रमेश पोखरियाल निशंक व विजय बहुगुणा जैसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन नेता तथा मुरली मनोहर, हरीश रावत, सतपाल महाराज, के सी पंत जैसे राष्ट्रीय पटल पर अपना परमच फेहराने वाले उत्तराखण्डी नेता नहीं कर पाये।
भाजपा की विधायकी टिकट पर विजयी रहे किरण मंडल ने भले ही अपनी सीट को प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री बिजय बहुगुणा के लिए अपनी विधायकी से त्यागपत्र दे दिया है। इस प्रकरण के लिए लोग भले ही इसके लिए भारी दौलत व प्रलोभनों में फंसने के लिए उनकी आलौचना करे। परन्तु सितार गंज के वे लोग जो उसके समाज से हैं, आज पूरी तरह से किरण मंडल के साथ मजबूती ही तरह खडे है। खडे क्यों न हो किरण मंडल ने अपने बंगाली समाज की दशकों पुरानी भूमिधारी अधिकार दिलाने के लिए यह कुर्वानी दी। वहीं उन्होंने 70 विधायकों की भीड़ में अपने समाज के हित में व अपने हित में एक विवेकशील कदम उठा कर अपना कद अपने समाज व सितारगंज की जनता के समाने बडा कर गया। वहीं उत्तराखण्ड के तमाम नेताओं को उत्तराखण्ड की जनता द्वारा  विधायक, मंत्री, सांसद व केन्द्रीय मंत्री बनाने के लिए अपना निरंतर विजयी समर्थन देने के बाबजूद उत्तराखण्ड के नेताओं ने उत्तराखण्डी हितों के लिए कभी ईमानदारी से एक राजनैतिक चतुराई भरा कदम तक नहीं उठाया। उत्तराखण्ड का नाम ही नहीं भूगोल भी बदला गया, यहां के संसाधनों की बंदरबांट किया गया, उत्तराखण्ड में जनसंख्या पर आधारित परिसीमन बलात थोपा गया। पर क्या मजाल की इन नेताओं ने उफ तक की। उत्तराखण्ड के सम्मान को रौंदने वाले मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को संरक्षण देने व राव-मुलायम के कहारों को बेशर्मी से गले लगाने का निकृष्ठ कृत्य इन बौने कद के संकीर्ण नेताओं ने किया।
भले ही लोकशाही में किरण मंडल को जायज नहीं ठहराया जा सकता परन्तु अपने समाज के हितों के लिए उन्होंने जो अपनी विधायकी निर्णायक क्षणों में कुर्वान करके उसका पूरी कीमत वसुली, काश ऐसा विवेक उत्तराखण्ड नेताओं में होता तो आज गैरसैंण राजधानी बनी होती। प्रदेश में जातिवाद, क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार का सम्राज्य नहीं होता। आज मंडल के कृत्य ने उत्तराखण्ड नेताओं के चेहरे पूरी तरह से बेनकाब कर दिये कि किरण का विरोध करने वाले कभी अपने प्रदेश व समाज के हितों के लिए कभी उन्होंने किरण मंडल जेसे चतुराई भरा कार्य किया। नहीं राज्य गठन के 12 साल बाद भी केवल उत्तराखण्ड को अंध दोहन करने के अलावा इन तथाकथित राजनेताओं ने उत्तराखण्ड के लिए क्या किया? बिजय बहुगुणा सहित तमाम नेताओं ने अपने संकीर्ण स्वार्थो के लिए उत्तराखण्ड व उस उत्तराखण्डी समाज को क्या दिया जिसने दशकों लम्बा संघर्ष व बलिदान दे कर पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनाने के लिए दिल्ली के हुक्मरानों को विवश कर दिया। बलिदानों से गठित राज्य को 12 सालों में क्या मिला तिवारी, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा जैसे नेता , जिनके कुशासन से सदियों से ईमानदारी के नाम से ख्याति प्राप्त उत्तराखण्ड आज देश का सबसे भ्रष्ट्रतम राज्य बन गया है। भाजपा व कांग्रेस के इन प्यादों में बंगाली समाज के रहनुमा बन कर उभरे किरण मंडल जितना भी राजनैतिक कौशल व अपने समाज के हितों के लिए कदम उठाने का साहस तक नहीं रहा।

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