बहुत याद आये मुझे बिछुडे हुए साथी

बहुत याद आये मुझे बिछुडे हुए साथी
कदम न मिले न मिले दिल किसी से
बहुत याद आये मुझे रूठे हुए साथी।।
हमारी नसीबी हो या कहो बदनसीबी
हमसे बिछुड गये इस सफर के साथी
कुछ हमसे खता हुई कुछ हुई हो उनसे
दोस्ती का दामन भी छिटक गया हमसे
जीवन है जग में बेगाने सफर का मेला
इस जग मेले में मिलते बिछुडते हैं साथी
सुनायें किसे अब हाल दिल का अपना
ना वो साथी रहे न जग ही रहा अपना।।
वो हंसी के फुव्वारे वो नयनों के सावन
वो मिल कर जीवन को हसंते हुए जीना।।
दुनिया की जन्नत भी बन जाती जन्नुम
जब बिछुड जाये जग से सच्चे संगी साथी।।
-देवसिंह रावत(28 मई 2012 दोपहर 12 बजे)

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