लक्षागृह में कभी भी तब्दील हो सकता है संसद भवन 
-संसद भवन में आत्मघाती लापरवाही से कभी भी हो सकता है बडा हादशा

-घोर लापरवाही से बिछाये गये तारों के मक्कड़ जाल में हो सकता है खतरनाक सार्ट सर्किट


एक तरफ भारत सरकार संसद पर हमले के बाद संसद की सुरक्षा पर देश के विकास के लिए लगाये जा सकने वाले अरबों रूपये के संसाधनों को संसद सुरक्षा के नाम पर हर साल खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ संसद भवन में तमाम सुरक्षा मापदण्डों को दरकिनारे करते हुए बिजली सहित अनैक प्रकार की तारों को इतनी खतरनाक ढ़ग से मकड़ जाल से लक्षागृह सा बना कर भयंकर दुर्घटना को खुद ही आमंत्रण दे रही है।
मुम्बई में महाराष्ट्र सरकार के सचिवालय व राष्ट्रपति भवन से सटे अति सुरक्षित भारत सरकार के कार्यालय में गत माह लगी आग के बाद भी देश के हुक्मरान संसद भवन में घोर लापरवाही से बिछायी गयी बिजली आदि की तारों के जाल के प्रति सुरक्षा व्यवस्था से जो शर्मनाक खिलवाड़ जानबुझ कर रहे है, उससे यहां पर कभी भी बडा हादशा घटित हो सकता है।
संसद सहित नई दिल्ली क्षेत्र में केबल बिछाने के कार्यो के विशेषज्ञ व समाजसेवी  ने प्यारा उत्तराखण्ड के सम्पादक देवसिंह रावत से इस रहस्योदघाटन करते हुए आश्चर्य प्रकट किया कि ऐसी अति संवेदनशील व देश के सर्वोच्च संस्थान में इतनी घोर लापरवाही से बिजली सहित अन्य तारें बिछायी गयी है उसमें कभी भी सार्ट सर्किट होने से भयंकर हादशा घटित हो सकता है।  उन्होंने खुद संसद भवन में केबल बिछाते समय वहां पर पहले से वहां की सुरक्षा मानदण्डों से खतरनाक खिलवाड़ करके तारों को बिछाया गया है।  उन्होंने ने यह टिप्पणी उस समय की जब मैने 14 जुलाई को अखबार में प्रकाशित यह खबर पड़ी कि संसद में राज्यसभा के लिए नया भवन बनाया जा सकता है तो मेरे साथ खडे समाजसेवी  ने कहा हाॅं रावत जी संसद भवन बहुत ही असुरक्षित है।  मैने    पूछा कि क्या इन केबलों को ठीक करके इसको सुरक्षित बनाया जा सकता है। तो उन्होंने बिना लाग लपेट के कहा कि हाॅं किया जा सकता है। इसके साथ उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली फायर ब्रिगेड सहित सुरक्षा तंत्र देश की सर्वोच्च संस्था संसद में तारों के अनिमियत व असुरक्षित जाल के कारण कई सालों से इसको फायर प्रुफ का सर्टिफिकेट नहीं दे रहा है। परन्तु न तो सरकार व नहीं कोई संस्था ही इस भयंकर खिलवाड़ के प्रति सरकार व संसदीय सचिवालय को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने का बोध ही करा पा रहे हैं। जिस प्रकार से देश की आर्थिक हालत व संसदीय व्यवस्था का आम जनता से कोसों दूर होने का शिकंजा कसता जा रहा है उससे लगता है संसद भवन में एक नये भवन बनाने की कोई जरूरत नहीं है। यह हादशा कई आतंकी हमलों से खतरनाक साबित हो सकता है। जिस व्यवस्था को देश की सर्वोच्च सदन की सुरक्षा की चिंता नहीं वह देश की सीमा या आम जनता की सुरक्षा की क्या चिंता करती होगी। इसका सहज ही अनुमान इस प्रकरण से लगाया जा सकता है।

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