-जनप्रतिनिधी ही नहीं सामाजिक संगठन भी जिम्मेदार हैं महापुरूषों के अनादर के लिए
-अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस
25 जुलाई को सांय गढ़वाल भवन पंचकुया रोड़ दिल्ली में देश की आजादी व टिहरी में राजशाही से मुक्ति के लिए अपना बलिदान देने वाले महान क्रांतिवीर श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस मनाया गया। उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य है कि यहां जो महान क्रांतिकारी हुए उनको यहां के नेताओं ने समाज कहीं जागृत न हो कर उनको लोकशाही को रौंदने से खदेड़ न दें इसी भय से व अपनी संकीर्ण अज्ञानता के कारण यहां के महापुरूषों के विराट व्यक्तित्व को गुमनामी में रखने का षडयंत्र रचते हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे समाज की अधिकांश सामाजिक संस्थाओं में ऐसे लोग काबिज रहते हैं जिनका न तो मानसिक स्तर ऐसा होता है व नहीं इनके जीवन की राह ही इन महापुरूषों की महता को समझने में सक्षम होता है। इसके कारण ये अधिकांश संस्थायें प्रायः अपने महापुरूषों को न तो याद करते हैं अगर कोई एकाद ने उस महापुरूष को याद भी कर लिया तो वे समाज में जनहित के कार्यो में लगे वर्तमान क्रांतिकारियों को सम्मान देने के बजाय महापुरूषों के आदर्शो को रौंदने वाले राजनेताओं, धनपशुओं आदि को मंचासीन करके महापुरूषों को ही एक प्रकार से अपमान करने का कार्य एक प्रकार से कर देते है। इसी कारण देवभूमि व मनीषियों की भूमि समझी जाने वाली उत्तराखण्ड में राज्य गठन के बाद ऐसी जनविरोधी व सत्तालोलुपु हुक्मरान सत्तासीन हुए जिनके कृत्यों व कुशासन से विश्व में अपनी ईमानदारी व कर्मठता का परचम फेहराने वाले उत्तराखण्ड आज इन 12 सालों में देश का सबसे भ्रष्टत्तम राज्यों में एक हो गया है।
25 जुलाई को गढ़वाल भवन दिल्ली में दिल्ली की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद ने श्रीदेव सुमन का बलिदान दिवस मनाया। संस्था के अध्यक्ष गंभीर सिंह नेगी व सभा के संचालक दाताराम जोशी के अनुसार उन्होंने इस कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री व चंद दिन पहले तक टिहरी उत्तरकाशी के सांसद रहे विजय बहुगुणा व केन्द्रीय राज्य मंत्री हरीश रावत सहित अनैक जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था। परन्तु इस आयोजन में उत्तराखण्ड क्रांतिदल के शीर्ष नेता काशीसिंह ऐरी, प्रताप नगर के विधायक विक्रम नेगी, समाजसेवी जोध सिंह बिष्ट, रेल के अधिकारी श्री लोहानी सहित अन्य समाजसेवियों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। संस्था के पदाधिकारी सभा में आश्वासन देते रहे कि हमारे नेता आने ही वाले है परन्तु अंतिम समय तक इनके स्वनाम धन्य मुख्यमंत्री ने इस सभा में आ कर श्रद्धेय सुमन को अपनी श्रद्धांजलि देने की जरूरत नहीं समझी। या तो नेता भी श्रीदेव सुमन की महता को अभी तक न समझे हों या वे आयोजकों की महता जानते हों। हालांकि मुझे विश्वास था कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अगर दिल्ली में हैं तो यहां पर अवश्य आयेंगे क्योंकि उन्होंने चंद महिनों के अंदर ही टिहरी उत्तरकाशी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा उप चुनाव में अपने कांग्रेसी प्रत्याशी को चुनावी समर में उतारना है। परन्तु वे भी नहीं आये। हाॅं सभा में अंतिम समय पर केन्द्रीय राज्य मंत्री हरीश रावत व अन्तरराष्ट्रीय निशानेबाज जसपाल राणा दिल्ली कांग्रेस के सचिव रहे हरिपाल रावत के साथ सभा में श्रीदेव सुमन को श्रद्धांजलि देने पंहुचे। परन्तु सभा में उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के अग्रणी आंदोलनकारी संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, महासचिव जगदीश भट्ट, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के उपाध्यक्ष प्रताप शाही, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच के अध्यक्ष बृजमोहन उपे्रती, उत्तराखण्ड जनमोर्चा के वरिष्ट पदाधिकारी डा एस एन बसलियाल, उत्तराखण्ड महासभा के रामेश्वर गोस्वामी, पत्रकार चारू तिवारी, म्यर उत्तराखण्ड के अध्यक्ष रहे मोहन बिष्ट, आर्य समाज से जुड़े व साहित्यकार रमेश हितैषी, ओम प्रकाश आर्य व गिरीश चन्द्रा भावुक, कई अग्रणी आंदोलनकारी व समाजसेवी चिंतक थे परन्तु सभा के आयोजकों को उनकी सुध लेने की फुर्सत तक नहीं। लगता है ये आयोजक श्रीदेव सुमन को स्थान विशेष तक उनको सीमित रखना चाहते। जबकि श्री देव सुमन क्षेत्र, जाति, धर्म से उपर उठ कर पूरे मानवीय समाज व देश की लोकशाही के लिए समर्पित रहे। यहां सवाल केवल टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद का नहीं अपितु अधिकांश उत्तराखण्डी संस्थाओं का है। श्रीदेव सुमन को समझने वाला और मानने वाला आदमी कभी लोकशाही को थोपशाही का तथा लोकशाही को अपने निहित स्वार्थो -सत्तालोलुपता के लिए रौंदने वालों को उनके बलिदान दिवस पर कभी अतिथि बनाने व सम्मानित करने की अक्षम्य भूल नहीं करता। परन्तु देखने में यह आ रहा है कि हमारे समाज के अधिकांश सामाजिक संगठनों में को श्रीदेव सुमन या चन्द्रसिंह गढ़वाली या बाबा मोहन उत्तराखण्डी जैसे अमर सूपतों के विराट व्यक्तित्व से नहीं अपितु लोकशाही व जनहितों को रौंदने वाले नेताओं के गले में माला डाल कर व उनके साथ तस्वीर खिंचा कर अपने तुच्छ अहं को तुष्ट करने के अलावा किसी से कुछ सरोकार नहीं है। सामाजिक संगठन तो एक तरफ हमारे बुद्धिजीवी समझे जाने वाले पत्रकार संगठन व प्रथम श्रेणी के अधिकारियों की तथाकथित बड़ी संस्थाओं की इस प्रकार की शर्मनाक ेप्रवृति देख कर समाज के इस घोर पतन का सहज ही अहसास हो जायेगा। जिस समाज में समाज व मूल्यों के लिए समर्पित लोगों के बजाय समाज के हितों को रौंदने वाले गुनाहगारों को सम्मानित करने की प्रवृति रहती वह समाज कभी न तो सम्मान अर्जित कर पाता है व नहीं आगे बढ़ पाता है। यही कारण है कि उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाबजूद 12 सालों में उत्तराखण्ड के अब तक के सत्तालोलुपु हुक्मरानों ने न तो प्रदेश के सम्मान को मुजफरनगर काण्ड में रौंदने वाले राव-मुलायम के प्यादों को दण्डित करा पाये व नहीं प्रदेश के हक हकूकों की ही रक्षा कर पाये। उल्टा प्रदेश के सम्मान को रौंदने के लिए जनता के दिलों में खलनायक बन गये मुलायम व उनके कहारों के साथ गलबहियां करके प्रदेश के जख्मों को कुरेद कर रौदने का अक्षम्य अपराध करने का दुशाहस जरूर करने की होड़ कर रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि हमारे लोगों में ऐसे गुनाहगारों की आरती उतारने की होड़ लगी है। इसी कारण आज उत्तराखण्ड शराब, बांध व बाघों से बर्बाद किया जा रहा है और हमारे सामाजिक संगठन इन्हीं गुनाहगारों को माल्यार्पण करके उनकी जनगणमन करने में लगे हैं। इस कार्यक्रम में गढ़वाल हितैषिणी सभा के उपाध्यक्ष रहे अषाड़ सिंह अधिकारी व समाजसेवी के के पुरोहित, टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद के वरिष्ट श्री राम रतूड़ी, प्रताप सिंह राणा, प्रताप सिंह असवाल, लाखीराम डबराल, महादेव प्रसाद बलूनी, पीड़ी तिवारी, देवेश्वर जोशी, जवाहर सिंह नेगी, रामचन्द्र भण्डारी, ज्ञानचंद रमोला, समाजसेवी धर्मपाल कुमंई, लखपत सिंह भण्डारी, पत्रकार सतेन्द्र रावत सहित अनैक महत्वपूर्ण समाजसेवी भी उपस्थित थे।
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