उत्तराखण्ड जैसे गरीब प्रदेष के मुख्यमंत्री बहुगुणा ने दिया पंचतारा अषोका होटल में पत्रकारों को भव्य भोज
रविवार 22 जुलाई को दोपहर एक बजे जैसे ही मैं अपने पत्रकार मित्रों के साथ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पत्रकारों के सम्मान में दिये गये दोपहर के भोज में सम्मलित होने के लिए प्रधानमंत्री आवास के समीप बने देष के सबसे चर्चित पंचतारा ‘अषोका होटल’ में पंहुचा तो मेरे कानों में एक राश्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में कार्यरत मेरे वरिश्ठ पत्रकार साथी ने बिना भूमिका बंधाते हुए अपने महाराश्ट्र मूल के साथी पत्रकार का परिचय कराते हुए बताया कि महाराश्ट्र जैसे देष के सबसे समद्ध प्रदेष के मुख्यमंत्री भी पत्रकारों को ऐसे भव्य पंचतारा होटल में पत्रकारों को भोज नहीं देते हैं तो अपने उत्तराखण्ड जैसे संसाधनों की कमी से विकास की पहली सीढ़ी चढ़ रहे नौनिहाल प्रदेष के मुख्यमंत्री या नेताओं को यह कहां षोभा देता है कि वह ऐसे पंचतारा होटलों में ऐसे आयोजन करे।
मेरे आंदोलनकारी पत्रकार मित्र केे षब्दों ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया । वेसे जब से दो दिन पहले यह आमंत्रण मुझे इस मिला था तो मैं बहुत दुविधा में था कि मै इस आयोजन में सम्मलित हॅू या नहीं। मै इस विचार का पक्षधर हूूॅ कि संवैधानिक पदों पर आसीन जनप्रतिनिधियों को हमेषा देष के विकास के संसाधनों को अपनी छवि बनाने में खर्च नहीं करना चाहिए और उनको सादा जीवन के गांधी जी के आदर्ष को आत्मसात करना चाहिए। परन्तु मैने निर्णय लिया कि मुझे इस आयोजन में जा कर इस आयोजन को अपने आंखों से देखना ही नहीं इसमे ंसम्मलित सभी आयोजकों व सम्मलित होने वालों के भी विचारों को भी टटोलना चाहिए।
मुझे लग रहा था कि या तो यह आयोजन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपनी सितारगंज विजय से खुष हो कर दे रहे हैं या तीन दिन पहले यानी 19 जुलाई को उनके प्रबल विरोधी माने जा रहे केन्द्रीय राज्य मंत्री हरीष रावत द्वारा अपने आवास में ही उत्तराखण्डी पत्रकारकारों, समाजसेवियों व रंगकर्मियों को दी गयी चर्चित ‘आम पार्टी’ का करारा जवाब दे रहे है। हालांकि मेरे इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रखर संवाददाता मित्र ने बताया कि मुख्यमंत्री ने यह आयोजन राश्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों के अनुरोध पर किया था।
इस आयोजन में जहां मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा स्वयं मेजवान थे तो उनके साथ सांसद सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री के साथ इस भोज में सम्मलित होने वाले प्रदेष के 5 कांग्रेसी सांसदों व दो राज्य सभा सांसदों में केवल एक मात्र राजनेता थे। यह जुगलबंदी भी प्रदेष में कांग्रेसी क्षत्रपों के आपसी द्वंद से इन दिनों सतपाल महाराज व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के गठजोड़ की कहानी को खुद ही बयान कर रही है।
इस दोपहरी भोज में जहां देष व उत्तराखण्ड के करीब 5 दर्जन के करीब पत्रकार थे। इनमें आधे इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकार थे। इनमें उत्तराखण्ड में सबसे ज्यादा चलने वाला इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ईटीवी के पवन लालचंद, सहारा समय के मनजीत नेगी, जीटीवी, साधना टीबी, सहित तमाम अग्रणी इलेक्टोनिक मीडिया के नामी पत्रकार उपस्थित थे। देष के अग्रणी पत्रकारों में विजेन्द्र रावत, उत्तराखण्ड पत्रकार परिशद के अध्यक्ष देवेन्द्र उपाध्याय, महासचिव अवतार नेगी, हिन्दुस्तान के मदन जैडा व व्योमेष जुगरान, पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी के मीडिया सलाहकार रहे वरिश्ट पत्रकार उमाकांत लखेडा, समाचार पत्रों से राश्ट्रीय सहारा के रोषन गोड़, अमर उजाला के हरीष लखेड़ा, सहित दर्जनों नामी पत्रकार सम्मलित हुए। इसके अलावा प्रदेष के दिल्ली में वरिश्ठ प्रषासनिक अधिकारी मट्टू, एस डी षर्मा, वरिश्ठ व्यवस्थाधिकारी रंजन मिश्रा, सूचनाधिकारी कार्यालय के अधिकारी व सुरक्षा दस्ते के उच्चाधिकारी भी उपस्थित थे।
इस आयोजन में मुख्यमंत्री से पहले जहां सांसद सतपाल महाराज पत्रकारों से मिलने व भोज ग्रहण करने के बाद चले गये, उसके बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सभी पत्रकारों से विदा ले कर चले गये। उनके चेहरे में जहां सितारगंज की विजय से भरी आत्म विष्वास साफ झलक रहा था परन्तु कहीं भी दूर दूर उनके चेहरे या हाव भाव से यह नजर नहीं आ रहा था कि उनके मन में इस गरीब प्रदेष उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री होते हुए भी देष के सबसे ख्यातिप्राप्त पंचतारा होटल अषोका होटल में भोज देने की सिकन तक दिख रही थी। मुझे लग रहा था कि मुख्यमंत्री को यह आयोजन अगर करना ही था तो वे अषोका होटल के निकट ही बने उत्तराखण्ड निवास में किया जा सकता था। इससे जहां प्रदेष का लाखों रूपया बचता। उत्तराखण्ड निवास के केंटीन से सटे इस सभागार में पहले भी कई बार मुख्यमंत्रियों द्वारा पत्रकार वार्ता के बाद भोजन व अल्पाहार का कार्यक्रम बहुत ही सहजता से किया जा सकता था।
इसके साथ मैं उस समय दंग रह गया कि मेरे एक पत्रकार मित्र ने कहा कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ‘ प्रेस क्लब’ दिल्ली को 10 लाख रूपये देने की दरियादिली भी दिखा सकते है। उन्होंने खुद ही प्रष्न किया कि इस गरीब प्रदेष के संसाधनों से ऐसी दरियादिली पंचतारा संस्कृति के लिए तो बेहतर हो सकती है परन्तु उत्तराखण्ड जेसे गरीब प्रदेष जहां के लोग षिक्षा, चिकित्सा व पेयजल आदि सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं वहां का मुख्यमंत्री जिसके कंधों पर यह सब सुविधाओं को प्रदान करने का दायित्व है वह ही खुद पंचतारा भोज व दरियादिली में संसाधनों को बहाने लगे तो प्रदेष कहा जायेगा। प्रदेष के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति अगर इस प्रकार की परंपरा का षुरूआत करेंगे तो वहां के अन्य नेता व नौकरषाह इसी बात का अनुसरण करके प्रदेष को कहां ले जायेंगे यह तिवारी षासन के काले अध्याय के पन्नों को पलट कर देखने से साफ ही उजागर हो जायेगा। हो सकता है मुख्यमंत्री जिनको खुद से ज्यादा विष्वास तिवारी जी के करीबी उन कारिंदो पर है जिनके कारण विकास पुरूश के रूप में ख्यातिप्राप्त तिवारी को आज तिवारी को न केवल हेदराबाद के राजभवन से त्यागपत्र देने के लिए मजबूर होना पड़ा अपितु कांग्रेसी नेतृत्व को भी अपने इस वरिश्ठ नेता को किनारे लगाने के लिए मजबूर होना पडा। पर जो भी हो लोकतंत्र में विकास के लिए तरस रहे देष-प्रदेष के हुक्मरानों द्वारा पंचतारा मोह न तो समाज के हित में है व नहीं प्रदेष के विकास के हित में। खर्चा सरकार का हो या मुख्यमंत्री का खुद का मुख्यमंत्री को लोकषाही में ऐसे पंचतारा आयोजन से प्रायः दूर ही रहना चाहिए।
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