उत्तराखण्ड व लोकशाही के लिए जरूरी है बहुगुणा का हारना


8 जुलाई को सितारगंज के मतदाता न केवल सितारगंज विधानसभा उपचुनाव में इस विधानसभा के भाग्य का फेसला करेगें अपितु वे इस दिन उत्तराखण्ड व प्रदेश की लोकशाही के भविष्य का भी फैसला करेंगे। 11 जुलाई को इस विधानसभा उप चुनाव की मतगणना के बाद साफ हो जायेगा कि प्रदेश में लोकशाही की दिशा व दशा क्या होगी।
उत्तराखण्ड प्रदेश व लोकशाही दोनों के हित में  उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का सितारगंज विधानसभा उपचुनाव में हारना जरूरी है। भले ही इस चुनावी दंगल में उतरने से पहले विजय बहुगुणा ने अपना उत्तराखण्डी होने का चैला उतार कर मेरे पूर्वज बंगाली हैं कह कर बंगाली बाहुल्य सितारगंज विधानसभा क्षेत्र के लोगों की भावनाओं का दोहन करना चाहा हो। यह तो आज के राजनेताओं का चुनाव जीतने का एक सामान्य औछा हथकण्डा के समान ही है। मेरा विरोध विजय बहुगुणा के खिलाफ इस चुनाव में इसलिए है कि जिन परिस्थितियों में उनको विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बडे दल के रूप में उभरे बहुसंख्यक कांग्रेसी विधायकों के विरोध के बाबजूद ‘सांसद नहीं बनेगा प्रदेश का मुख्यमंत्री’ के छलावे के बीच कांग्रेसी मठाधीशों ने मुख्यमंत्री के पद पर बलात थोपा वह लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं के खिलाफ है। वह उस उत्तराखण्ड के खिलाफ है जहां के लोगों ने अपने हक हकूकों व सामाजिक पहचान के लिए राव मुलायम जैसे दमनकारी शासकों के अमानवीय दमन सह कर भी देश के हुक्मरानों को अपने संघर्ष व बलिदान से उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए मजबूर किया। मैं व मेरे साथियों ने इस राज्य का गठन के लिए ऐतिहासिक संघर्ष किसी दिल्ली दरवार के सत्तालोलुपु नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं किया था। जो अपने संकीर्ण हितों के लिए प्रदेश के हितों व लोकशाही की मर्यादा को तार तार कर दे।
राज्य गठन से पहले जून 1993 से निरंतर प्रकाशित प्यारा उत्तराखण्ड का प्रकाशन भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा से इसी उदेश्य की पूर्ति के लिए मैने किया था कि प्राणीमात्र के कल्याण व विश्व में स्वस्थ लोकशाही की स्थापना के लिए। इसी की प्रयोगशाला के रूप में सबसे पहले उत्तराखण्ड राज्य का गठन करने का संकल्प इसी लिए किया गया कि यह विश्व की लोकशाही के लिए सर्वोत्तम उदाहरण बनेगा। परन्तु राज्य गठन के संघर्ष में जिस प्रकार से इसकी राह में तत्कालीन प्रधानमंत्री राव व उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अमानवीय अत्याचार किये उसका मैने व मेरे साथियों ने मुंह तोड़ विरोध किया। प्यारा उत्तराखण्ड का कालजयी प्रकाशन इस विरोध का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उसके बाद इस राह में जिस प्रकार से वाजपेयी ने राज्य गठन करने के बाबजूद प्रदेश के नाम व संसाधनों की बंदरबांट करने का कृत्य किया उनका भी पुरजोर विरोध प्यारा उत्तराखण्ड में ही नहीं सड़कों में आंदोलनकरके मैने व मेरे साथियों ने किया। यही नहीं राज्य गठन के बाद जिस प्रकार से वहां पर भाजपा कांग्रेस के दिल्ली दरवार के प्यादों तिवारी, खण्डूडी व निशंक ने प्रदेश के हितों को जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन, मुजफरनगरकाण्ड-94 के अभियुक्तों को शर्मनाक संरक्षण देने, राजधानी गैरसेंण स्थापित करने व प्रदेश के संसाधनों को भ्रष्टाचारियों व बाहरी लोगों के लिए समर्पित करने का कृत्य किया गया। उसका भी पुरजोर विरोध मेने बिना लाग लपेट कर किया। खासकर जिस प्रकार से प्रदेश में इन नेताओं ने जातिवादी व भ्रष्टाचारी कुशासन से देवभूमि को कलंकित करने का काम किया गया और उसको संरक्षण दे कर लोकशाही को जमीदोज करने का काम दिल्ली दरवार के इन दलों के आकाओं ने किया उसका भी पुरजोर विरोध किया गया। अन्याय का विरोध में एक सिपाई की तरह रहा। चाहे अन्याय अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में जार्ज बुश ने किया हो या भारत की प्रधानमंत्रियों ने । चाहे विजय बहुगुणा के पिताजी स्व. हेमवती नन्दन बहुगुणा के खिलाफ इंदिरा गांधी की सियासी जंग में भी मैने गढवाल लोकसभा उपचुनाव में हेमवती नन्दन के पक्ष में खुले रूप से उतर कर अपना धर्म निभाया । परन्तु आज स्थिति बहुत शर्मनाक है। जिस उत्तराखण्ड के लोगों ने अपने राजनैतिक जीवन के अस्तित्व पर आये सबसे बड़े संकट में अपनी जान दाव पर लगा कर इंदिरा गांधी की चुनौती का मुह तोड़ जवाब गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव में उन्हें  अपना सत्य व न्याय के लिए संघर्ष करने वाला योद्धा समझ कर विजयी बना कर दिया। उसी स्वनाम धन्य बहुगुणा जी के सुपुत्र विजय बहुगुणा ने उत्तराखण्डी पहचान को अपने संकीर्ण सत्तासुख के लिए दरकिनारे करके खुद को बंगाली मूल का बता कर उत्तराखण्डी जनमानस पर वज्रपात किया। इंसान कहीं का हो उसमें परमात्मा की इच्छा होती है। परन्तु अपने स्वार्थ के लिए जाति, धर्म व क्षेत्र की आड़ ले कर जनता की भावनाओं का दोहन करना किसी भी प्रकार से श्रेयकर नहीं है।
 यह मेरी दिली इच्छा है। मैं एक पत्रकार होने से पहले उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन का एक सिपाई व अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष करने की युगान्तर उद्घोष करने वाले भगवान श्री कृष्ण का चरणानुगामी हूॅ। मैं पत्रकारिता को भी कुरूक्षेत्र का वही मैदान समझता हॅू जहां से भगवान श्रीकृष्ण अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष करने का अमर संदेश पूरे विश्व को देते है।
मैं यह भी जान रहा हॅू कि सितारगंज में मुख्यमंत्री के लिए उत्तराखण्ड में सबसे अनकुल विधानसभा क्षेत्र है। यहां पर मुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनाव के दंगल से उतरने से पहले जिस प्रकार का चक्रव्यूह बुना हुआ है उससे यहां उनकी जीत पर किसी को कोई संदेह नहीं है। मै यह भी जानता हॅू। यहां पर विरोधी दलों की तरफ से कोई मजबूत चुनौती प्रदेश के मुख्यमंत्री को कहीं दूर-दूर तक नहीं मिल रही है। मुख्यमंत्री का इस विधानसभा सीट से विजय होने में मुझे कहीं भी संदेह नहीं हे। इसके बाबजूद मैं नहीं चाहता हॅू कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा यहां से विजय हो। विजय बहुगुणा एक सामान्य उत्तराखण्डी की तरह यहां से चुनाव लड़ते तो मुझे कोई इतराज नहीं रहता। वे यहां पर यहां के धरती पुत्र की तरह चुनाव लड़ते तो मुझे कोई उनसे शिकवा नहीं रहती। चुनाव तो आये दिन इस देश में कहीं न कहीं होता रहता। लोकशाही के प्राण ही चुनाव में बसते हे। इसलिए निष्पक्ष चुनाव होना लोकशाही के लिए जितना आवश्यक है उससे अधिक आवश्यक मानव समाज व देश के अस्तित्व के लिए जरूरी है।
मैं कभी इस बात को महत्व नहीं देता कि चुनाव लड़ने वाला किस जाति, धर्म या क्षेत्र का है। मेरे लिए केवल यह महत्वपूर्ण है कि जो भी प्रत्याशी चुनाव लड रहा है वह सत्य, न्याय व जनसेवा के विचार से चुनाव लड़ रहा है या केवल अपनी सत्तालोलुपता की पूर्ति के लिए।
निर्णायक संख्या में विस्थापित बंगाली व मुस्लिम मतदाताओं वाली इस सितारगंज विधानसभा सीट में  कुल 91480 मतदाताओं में से  48966 पुरुष व 42514 महिला है। वर्तमान विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा में भाजपा के किरन चन्द मंडल 29280 मत लेकर विजयी रहे थे, वहीं  दूसरे नम्बर पर बसपा के नारायण पाल को 16668 मत, कांग्रेस के सुरेश कुमार को 15560, निर्दलीय अनवार अहमद को 7085, समाजवादी पार्टी के विनय कृष्ण मंडल को 1456, निर्दलीय ईश्वरी प्रसाद को 1338, इंडियन जस्टिस पार्टी के हरचरण सिंह को 841, पीस पार्टी के सरताल अली को 667, उक्रांद(पी) के शाहीन खान को 393, लोक जनशक्ति पार्टी के बच्चन सिंह को 294 व शिव सेना के राम चन्द्र को 238 मत मिले थे। इस कारण यहां पर भाजपा का तो जनाधार माना जा सकता है परन्तु उक्रांद का नाम मात्र। भाजपा का समर्थन से विजयी किरण मण्डल की बंगाली विस्थापितों की अधिकांश वोट इस समय कांग्रेस को जाने की आश से यहां पर कांग्रेस का विजय होना तय माना जा रहा है।
आज जिस प्रकार से विजय बहुगुणा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने व जिस प्रकार से उन्होंने भूमिधरी के पट्टे का खुला प्रलोभन दे कर व यहां के विधायक को जिन परिस्थितियों में अपने पक्ष में इस्तीफा दिलवाया वे तमाम परिस्थतियों लोकशाही को दागदार ही करती है। भले ही चुनाव आयोग व न्यायालय इन बातों को गंभीरता से न लेकर विजय बहुगुणा के कृत्यों को नजरांदाज कर दे परन्तु मेरी अंतरआत्मा मुझे इस अन्याय के खिलाफ खुले रूप से संघर्ष करने का आवाहन कर रही है। भले प्रदेश के अधिकांश नेता व पत्रकार अपने स्वार्थो व संकीर्णता के कारण इस लोकशाही पर हो रहे भीषण प्रहार को भाट बन कर स्वागत करे परन्तु मेरा धर्म यही राह मुझे दिखा रहा है कि विजय बहुगुणा को सितारगंज से जीतना लोकशाही व उत्तराखण्ड के लिए सबसे घातक होगा। जब आदमी अपने निहित स्वार्थ में मर्यादाओं, नैतिकता व मानवीय मूल्यों के साथ प्रदेश के हितों को दाव पर लगाने की धृष्ठता करने लगे तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को आवाज उठाना प्रथम धर्म है।
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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