जन शैलाव न उमडने की खाज मीडिया पर उतारने के बजाय आत्मनिरीक्षण करे टीम अण्णा 

देश की मीडिया व इलेक्ट्रोनिक चैनलों द्वारा जंतर मंतर में 25 जुलाई से चलाये जा रहे टीम अण्णा के आंदोलन में जनता की कम भागेदारी की खबरों को दिखाये जाने के बाद  कई लोग मीडिया पर अपनी खाज उतारने में लग गये है।  आंदोलन स्थल की हकीकत को नजरांदोज व पूर्व में जंतर मंतर में हुए अण्णा के इस प्रकार के आंदोलनों में उमड़ी भीड़ की तुलना ईमानदारी से करके आत्म निरीक्षण करके उसे सुधारने के बजाय मीडिया को े बिकाउ या नीच कहने वालों को पहले उन तमाम आंदोलनकारियों से पूछना चाहिए कि जितना प्रचार अण्णा के आंदोलन को मीडिया ने दिया क्या उसका एक हजारवां अश भी किसी अन्य महत्वपूर्ण आंदोलन को नहीं मिला। जंतर मंतर पर 6 साल उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए निरंतर 1994 से 2000 तक आंदोलनरत रहने के कारण मुझे ज्ञात है हमें ही नहीं यहां पर अधिकांश देश के कोने कोने से आंदोलनकरने वालों को मीडिया एक झलक दिखाने के लिए भी बहुत ही मुश्किल से तैयार होती है। हकीकत तो यह है कि अण्णा के आंदोलन को प्रारम्भ से कई महिनों तक सातों आसमान पर चढ़ा  कर  देश विदेश में विख्यात करके उसे व्यापक जनांदोलन में तब्दील करने में  मीडिया का महत्वपूर्ण हाथ रहा और इसका खुद गुणगान खुद टीम अण्णा के तमाम बडे सदस्य सार्वजनिक मंचों से अपने आंदोलन के दौरान इसके लिए मीडिया का धन्यवाद करते हुए उनका यशोगान करते रहे। परन्तु 25 जुलाई से निरंतर इस आंदोलन में भागीदार रहते हुए मैने देखा कि वह स्वयं स्फर्फत  लोगों का हजूम इस बार कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। यही नहीं इस बार टीम अण्णा के सबसे प्रखर जमीनी सदस्य अरविन्द गौड़ भी इन तीन दिनों में मंच के उपर एक पल के लिए नहीं गये। हाॅं वे अपने सेकडों नाट्य मण्डली के कलाकारों के साथ आंदोलन म एक आम आदमी की तरह दिखाई दे रहे थे। आज 27 जुलाई को आंदोलन के तीसरे दिन टीम अण्णा के आंदोलन स्थल पर बहुत कम लोगों के होने के कारण खुद टीम अण्णा के लोग ही मंच पर पौने ग्यारह तक उपस्थित नहीं हुए। आज अगर बाबा रामदेव अपने हजारों समर्थकों के साथ नहीं सम्मलित नहीं होते तो आंदोलन में चैनल कहां से लोगों के हजूम दिखाते। आज समारोह शुरू होने से पहले व रात सवा आठ बजे कार्यक्रम के समापन से पहले आयोजन में जुड़े कार्यकत्र्ताओं व मीडियाकर्मियों में नौंक झोंक होती रही। लगता है टीम अण्णा व कार्यकत्र्ताओं को भ्रष्टाचार से लड़ने के साथ गांधीवादी नेता अण्णा हजारे ने इन दोनों को लोकशाही का प्रथम पाठ ही सही ए़ग से नहीं सिखाया। टीम अण्णा व उनके कार्यकत्र्ताओं को यह समझ लेनी चाहिए की भीड़ जुटाना आयोजकों की विश्वसनीयता व उनकी क्षमता पर निर्भर करता है न की मीडिया का यह दायित्व है। अण्णा हजारे व उनकी टीम देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए देश की सरकार से अविलम्ब जनलोकपाल कानून बनाने की मांग से देश के हित में कार्य करने वाला कोई अदना भी व्यक्ति गलत नहीं बतायेगा, सभी समर्थन करेंगे। परन्तु टीम अण्णा को भी जनता का विगत आंदोलनों की तर्ज पर कम संख्या में इस बार के आंदोलन में उतरने पर मीडिया को कोसने के बजाय खुद अपना आत्म निरीक्षण करना चाहिए और देश की जनता को चाहिए कि वह टीम अण्णा के अवगुणों या उनसे मतभेदों को दरकिनारे करते हुए सरकार पर व्यापक दवाब डालने के बजाय खुद आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्यों उनके समर्पित सदस्य ही नहीं आम जनता भी उनसे दूर हो रही है। आज बाबा रामदेव के साथ आये उनके हजारों समर्थकों के आने से किसी तरह टीम अण्णा की इज्जत रखी परन्तु मीडिया चैनल ही नहीं आज आंदोलन में उपस्थित आम आदमी भी इस सच्चाई को को जानता व समझता है। परन्तु उसका विश्वास टीम अण्णा से कहीं अधिक अण्णा हजारे जैसे महान समाजसेवी व समाज के लिए सर्वस्व निछावर करने वाले युगान्तकारी महापुरूष पर है। इसके साथ सभी लोग प्रायः देश की वर्तमान स्थिति से व्यथित है और इसको हर हाल में दूर करने के लिए व सरकार के कुशासन से मुक्ति के लिए अण्णा पर आशा लगाये हुए हैं। अब देखना यह है कि यह आंदोलन क्या करवट लेता है।

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