भारतीय संस्कृति के मूल तत्व को नजरांदाज करके नहीं बचेगी गंगा, उत्तराखण्ड व विष्व
बांध के लिए नहीं अपितु जनकल्याण के लिए बनाया गया है उत्तराखण्ड
षनिवार 21 जुलाई को दिल्ली के गांधी प्रतिश्ठान में ‘ जल विद्युत परियोजनायें व उत्तराखण्ड का भविश्य’ नामक विशय पर एक विचार संगोश्ठी का आयोजन , आधा दर्जन के करीब संस्थाओं ने मिल कर किया। इस विचार गोश्ठी में प्रमुखता से जहां एक विचार सामने आया कि किसी भी हालत में उत्तराखण्ड में बांध नहीं बनने चाहिए। इसके लिए मजबूती से संघर्श को और तेज करने की आवष्यकता पर बल दिया।
वहीं बांध का विरोध करने वाले वक्ताओं व आयोजकों को इस बात का भान रखना चाहिए कि यह केवल उत्तराखण्ड के भू भाग या प्राकृतिक संसाधनों का सवाल नहीं अपितु विष्व संस्कृति की पावन गंगोत्री उत्तराखण्ड के सनातन मूल्यों का सवाल है भी है। इसको नजरांदाज करके केवल संसाधनों, जल, जंगल आदि की दुहाई दे कर बांध का विरोध करना भी अधूरा सत्य सा होगा। उत्तराखण्ड भारतीय संस्कृति की उन परम सनातन मूल्यों की हृदय स्थली भी है, जो दया, धर्म, त्याग व न्याय आदि महत्वपूर्ण सनातन मूल्यों की संवाहिका भी है। इस लिए उसका जमीदोज करके प्रकृति व मानवीय संस्कृति का एक प्रकार से गला घोंटने के समान है। इसके साथ इसका भी भान रखना चाहिए कि जो भी संसाधन है वह मनुश्य, प्राणीमात्र के कल्याण के साथ साथ प्रकृति के हित में संलग्न होने चाहिए। केवल मनुश्य के हित के लिए करोड़ों जीवों, लाखों पैड़ पौधों की निर्मम हत्या करना भी एक प्रकार से विनाष ही है। इसकी इजाजत भारतीय संस्कृति नहीं देती है। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह सारी सृश्टि न केवल यहां के अरबों खरबों जीव जन्तुओं व चर अचर सबके लिए समान है। जीवो और जीने दो के सिद्धान्त को आत्मसात करने वाले भारत में इन दिनों लाखों जीवों का कत्लेआम करके भारत को संसार का सबसे बड़ा कत्लगाह बना दिया है, उसका एक छोटा सा रूप है कि यहां पर बांध बना कर पूरी घाटी में रहने वाले करोड़ों जीव जन्तुओं व असंख्य बनस्पति की निर्मम हत्या करना। वहीं जब स्थानीय लोग अपने विकास के लिए कहीं नहर, सड़क, अस्पताल आदि बनाना चाहते हैं तो उस समय सरकार के सर पर पर्यावरण का भूत सवार हो कर इस विकास के लिए तडफ रहे लोगों की राह को रोक दिया जाता है। परन्तु इसके साथ अगर इन नेताओं व नौकरषाहों के साथ-साथ चंद ठेकेदारों की तिजोरियां भरने के लिए बनने वाले बांध से लाखों पैड़ पौधे सहित पूरी की पूरी घाटी डुबो कर तबाह करने का समय आये तो सरकारी सारे कायदे काननू इतने लचर हो जाते हैं। सरकार का यह सोतेला व्यवहार ही जनता की आंखे खोलने के लिए काफी है।
समाज में जागरूक सामाजिक संगठनों व जागरूक लोगों को सरकार पर बांध से बनायी जा रही विद्युत ऊर्जा के बजाय पवन, भूतापीय, सोर ऊर्जा सहित अन्य बैकल्पिक माध्यम को तलाषने के लिए सरकार पर निरंतर दवाब बनाना चाहिए। इस के साथ यह भी याद रखना चाहिए कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन उत्तराखण्ड को बांध व बाघों के लिए तबाह करने के लिए नहीं किया गया, अपितु यहां के निवासियों के हितों की रक्षा करने व इनका विकास करने के लिए किया गया। हिमालयी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए किया गया। यहां के जल जमीन व जंगल जैसे संसाधनों की हो रही अंधी लूट से बचाने के लिए किया गया। यहां के लोगों की विलुप्त प्रायः हो रही संस्कृति का संरक्षण करने के लिए किया गया है। बांध मनुश्य के लिए बनते हैं न की मनुश्य बांधों के लिए बना है।
21 जुलाई की सांय कालीन सत्र में प्रारम्भ हुई इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अग्रणी साहित्यकार पंकज बिश्ट ने की। वहीं इसका संचालन माले से जुडे प्रकाष चैधरी ने की। सभा में उत्तराखण्ड जनांदोलनों के प्रणेता डा षमषेर सिंह बिश्ट, भाजपा नेता मोहनसिंह ग्रामवासी, भाकपा-माले के नेता गिरजा पाठक, बांध विरोधी आंदोलन के अग्रणी नेता त्रेपन सिंह चैहाना( यमुना घाटी उत्तरकाषी), आदि मंचासीन नेताओं के अलावा आयोजकों की तरफ से पत्रकार चारू तिवारी, एनडीटीवी के सुषील बहुगुणा, सुनील नेगी, हल्द्वानी से इस कार्यक्रम में भाग लेने आये हुए अधिवक्ता चन्द्रषेखर करगेती, प्रेम सुन्दरियाल, भूपेन सिंह, महेष चंद्रा व जगदीष चंद्रा आदि वक्ताओं ने बांध न बनाये जाने के समर्थन में अपने विचार संगोश्टी में रखे।
समारोह में उपस्थित महत्वपूर्ण लोगों में हिन्दी अकादमी (दिल्ली सरकार) के सचिव हरीष बिश्ट, भाजपा नेता पूरणचंद नैनवाल, प्रवासी प्रकोश्ट के संयोजक बचन राम टम्टा, विनोद तिवारी, उत्तराखण्ड जनता संघर्श मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत व महासचिव जगदीष भट्ट, उक्रांद के पूर्व केन्द्रीय प्रवक्ता एस के षर्मा, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के पत्रकार सुरेष नौटियाल, वरिश्ट पत्रकार व्योमेष जुगरान, अल्मोड़ा से आये समाजसेवी रघु तिवारी, पत्रकार गोविन्द बल्लभ जोषी, कवि पूरण काण्डपाल, रमेष हितैशी व पृथ्वीसिंह केदारखण्डी, भारत रावत, पवन मेठानी, प्रदीप वेदवाल, अर्जुन रावत, हुक्मसिंह कण्डारी, मोहन सिंह रावत, पत्रकार अनिल पंत, सूर्यप्रकाष सेमवाल सहित अनैक प्रमुख समाजसेवी उपस्थित थे।
कार्यक्रम को सफल बनाने में म्यर उत्तराखण्ड संस्था के अध्यक्ष सुदर्षन रावत, मोहन बिश्ट, हरीष रावत, सार्थक प्रयास के उमेष पंत, आदि समाजसेवियों ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
बांध के लिए नहीं अपितु जनकल्याण के लिए बनाया गया है उत्तराखण्ड
षनिवार 21 जुलाई को दिल्ली के गांधी प्रतिश्ठान में ‘ जल विद्युत परियोजनायें व उत्तराखण्ड का भविश्य’ नामक विशय पर एक विचार संगोश्ठी का आयोजन , आधा दर्जन के करीब संस्थाओं ने मिल कर किया। इस विचार गोश्ठी में प्रमुखता से जहां एक विचार सामने आया कि किसी भी हालत में उत्तराखण्ड में बांध नहीं बनने चाहिए। इसके लिए मजबूती से संघर्श को और तेज करने की आवष्यकता पर बल दिया।
वहीं बांध का विरोध करने वाले वक्ताओं व आयोजकों को इस बात का भान रखना चाहिए कि यह केवल उत्तराखण्ड के भू भाग या प्राकृतिक संसाधनों का सवाल नहीं अपितु विष्व संस्कृति की पावन गंगोत्री उत्तराखण्ड के सनातन मूल्यों का सवाल है भी है। इसको नजरांदाज करके केवल संसाधनों, जल, जंगल आदि की दुहाई दे कर बांध का विरोध करना भी अधूरा सत्य सा होगा। उत्तराखण्ड भारतीय संस्कृति की उन परम सनातन मूल्यों की हृदय स्थली भी है, जो दया, धर्म, त्याग व न्याय आदि महत्वपूर्ण सनातन मूल्यों की संवाहिका भी है। इस लिए उसका जमीदोज करके प्रकृति व मानवीय संस्कृति का एक प्रकार से गला घोंटने के समान है। इसके साथ इसका भी भान रखना चाहिए कि जो भी संसाधन है वह मनुश्य, प्राणीमात्र के कल्याण के साथ साथ प्रकृति के हित में संलग्न होने चाहिए। केवल मनुश्य के हित के लिए करोड़ों जीवों, लाखों पैड़ पौधों की निर्मम हत्या करना भी एक प्रकार से विनाष ही है। इसकी इजाजत भारतीय संस्कृति नहीं देती है। भारतीय संस्कृति के अनुसार यह सारी सृश्टि न केवल यहां के अरबों खरबों जीव जन्तुओं व चर अचर सबके लिए समान है। जीवो और जीने दो के सिद्धान्त को आत्मसात करने वाले भारत में इन दिनों लाखों जीवों का कत्लेआम करके भारत को संसार का सबसे बड़ा कत्लगाह बना दिया है, उसका एक छोटा सा रूप है कि यहां पर बांध बना कर पूरी घाटी में रहने वाले करोड़ों जीव जन्तुओं व असंख्य बनस्पति की निर्मम हत्या करना। वहीं जब स्थानीय लोग अपने विकास के लिए कहीं नहर, सड़क, अस्पताल आदि बनाना चाहते हैं तो उस समय सरकार के सर पर पर्यावरण का भूत सवार हो कर इस विकास के लिए तडफ रहे लोगों की राह को रोक दिया जाता है। परन्तु इसके साथ अगर इन नेताओं व नौकरषाहों के साथ-साथ चंद ठेकेदारों की तिजोरियां भरने के लिए बनने वाले बांध से लाखों पैड़ पौधे सहित पूरी की पूरी घाटी डुबो कर तबाह करने का समय आये तो सरकारी सारे कायदे काननू इतने लचर हो जाते हैं। सरकार का यह सोतेला व्यवहार ही जनता की आंखे खोलने के लिए काफी है।
समाज में जागरूक सामाजिक संगठनों व जागरूक लोगों को सरकार पर बांध से बनायी जा रही विद्युत ऊर्जा के बजाय पवन, भूतापीय, सोर ऊर्जा सहित अन्य बैकल्पिक माध्यम को तलाषने के लिए सरकार पर निरंतर दवाब बनाना चाहिए। इस के साथ यह भी याद रखना चाहिए कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन उत्तराखण्ड को बांध व बाघों के लिए तबाह करने के लिए नहीं किया गया, अपितु यहां के निवासियों के हितों की रक्षा करने व इनका विकास करने के लिए किया गया। हिमालयी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए किया गया। यहां के जल जमीन व जंगल जैसे संसाधनों की हो रही अंधी लूट से बचाने के लिए किया गया। यहां के लोगों की विलुप्त प्रायः हो रही संस्कृति का संरक्षण करने के लिए किया गया है। बांध मनुश्य के लिए बनते हैं न की मनुश्य बांधों के लिए बना है।
21 जुलाई की सांय कालीन सत्र में प्रारम्भ हुई इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अग्रणी साहित्यकार पंकज बिश्ट ने की। वहीं इसका संचालन माले से जुडे प्रकाष चैधरी ने की। सभा में उत्तराखण्ड जनांदोलनों के प्रणेता डा षमषेर सिंह बिश्ट, भाजपा नेता मोहनसिंह ग्रामवासी, भाकपा-माले के नेता गिरजा पाठक, बांध विरोधी आंदोलन के अग्रणी नेता त्रेपन सिंह चैहाना( यमुना घाटी उत्तरकाषी), आदि मंचासीन नेताओं के अलावा आयोजकों की तरफ से पत्रकार चारू तिवारी, एनडीटीवी के सुषील बहुगुणा, सुनील नेगी, हल्द्वानी से इस कार्यक्रम में भाग लेने आये हुए अधिवक्ता चन्द्रषेखर करगेती, प्रेम सुन्दरियाल, भूपेन सिंह, महेष चंद्रा व जगदीष चंद्रा आदि वक्ताओं ने बांध न बनाये जाने के समर्थन में अपने विचार संगोश्टी में रखे।
समारोह में उपस्थित महत्वपूर्ण लोगों में हिन्दी अकादमी (दिल्ली सरकार) के सचिव हरीष बिश्ट, भाजपा नेता पूरणचंद नैनवाल, प्रवासी प्रकोश्ट के संयोजक बचन राम टम्टा, विनोद तिवारी, उत्तराखण्ड जनता संघर्श मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत व महासचिव जगदीष भट्ट, उक्रांद के पूर्व केन्द्रीय प्रवक्ता एस के षर्मा, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के पत्रकार सुरेष नौटियाल, वरिश्ट पत्रकार व्योमेष जुगरान, अल्मोड़ा से आये समाजसेवी रघु तिवारी, पत्रकार गोविन्द बल्लभ जोषी, कवि पूरण काण्डपाल, रमेष हितैशी व पृथ्वीसिंह केदारखण्डी, भारत रावत, पवन मेठानी, प्रदीप वेदवाल, अर्जुन रावत, हुक्मसिंह कण्डारी, मोहन सिंह रावत, पत्रकार अनिल पंत, सूर्यप्रकाष सेमवाल सहित अनैक प्रमुख समाजसेवी उपस्थित थे।
कार्यक्रम को सफल बनाने में म्यर उत्तराखण्ड संस्था के अध्यक्ष सुदर्षन रावत, मोहन बिश्ट, हरीष रावत, सार्थक प्रयास के उमेष पंत, आदि समाजसेवियों ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
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