- टीम अण्णा अहं का टकराव करने बजाय भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल बनाये सरकार

-ठोस लोकपाल शीघ्र पारित करनेे के लिए संसद का आपातसत्र बुलाये 

-टीम अण्णा के सबसे प्रमुख सदस्य अरविन्द गौड़ मंच पर दो दिन से क्यों नहीं?  जनता अण्णा से कर रही है सवाल


देश में सत्तारूढ़ सप्रंग सरकार की मुखिया सोनिया गांधी सहित तमाम राजनैतिक दलों को देश के प्रति अपने दायित्व को बोध करते हुए भ्रष्टाचार से तबाह हो रहे भारत को बचाने के लिए टीम अण्णा से संकीर्ण अहं का टकराव करने के बजाय अविलम्ब ठोस लोकपाल कानून बनाने का काम करे। अभी तक सरकार सहित भारत के तमाम राजनैतिक दल इस कार्य को देश का कार्य न समझ कर इसे केवल अण्णा या टीम अण्णा का कार्य समझ कर इसको ठण्डे बस्ते में डालने की धृष्ठता करने में लगे हुए है। टीम अण्णा के तमाम वरिष्ठ सदस्य अण्णा हजारे, केजरीवाल, मनीष सिसौदिया व गोपाल राय इन दिनों अनशन में बैठे हुए है। हजारों देशवासी इस मांग के समर्थन में सडकों में उतर रहे हैं परन्तु क्या मजाल सरकार ही नहीं विपक्ष के कानों में जूं तक रेंगे। सरकार सहित तमाम पार्टियों को चाहिए कि तत्काल अपने झूठे अहं के टकराव को छोड़ कर देश के हितार्थ इस कानून को बना कर देश की रक्षा करें। सांसदों सहित हुक्मरानों को यह बात समझना चाहिए कि जब देश बचेगा तभी वे राजनीति भी कर पायेंगे। अगर कल देश में कोई राजनीति तभी कर पाओगे जब यह देश का अस्तित्व भ्रष्टाचार से बचेगा। भ्रष्टाचार के कारण आज पूरे देश की अस्मिता खतरे में पड़ गयी है। टीम अण्णा के प्रखर सदस्यों को अगर अनशन में कुछ होता है तो इससे पूरे देश में आक्रोश फेलेगा, जो देश के लिए हानिकारक ही है।
टीम अण्णा भले ही टीम अण्णा में लाख कमियां हो या टीम अण्णा के अनशन में लोग राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर में पहले की तरह उमडे या न उमड़े, परन्तु आज देश का हर देश भक्त चाहता है कि देश की सरकार व तमाम राजनैतिक दल देश की पूरी व्यवस्था पर दीमक की तरह तबाह कर रहे भ्रष्टाचार पर अविलम्ब अंकुश लगाने के लिए कठोर लोकपाल कानून बनाये। इस कानून को बनाने में कांग्रेस नेतृत्व व सप्रंग सरकार के लोग या अन्य विपक्षी दल मात्र अण्णा हजारे या टीम अण्णा की ही मांग मात्र समझ कर नजरांदाज करने की अक्षम्य भूल करके राष्ट्रीय हितों को जमीदोज करने की धृष्ठता न करें। क्योंकि भ्रष्टाचार ने आज देश की पूरी व्यवस्था को पूरी तरह पंगू बना दिया है देश के आम आदमी से न्याय, चिकित्सा, शिक्षा व सुरक्षा दूर हो गयी है। देश के हुक्मरानों की राष्ट्रीय हितों के प्रति उदासीनतापूर्ण रवैये व घोर सत्तालोलुपता से देश का शासन प्रशासन का तंत्र इतना जरजर हो गया है कि इसके कारण देश में इन हुक्मरानों केें कुशासन से मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद ने लोगों का जीना ही दूश्वार कर दिया है। इस लिए देश की रक्षा के लिए सरकार ही नहीं अपितु सभी दलों को तत्काल युद्धस्तर पर इस गंभीर ही नहीं विस्फोटक समस्या के निदान के लिए संसद का आपात व विशेष सत्र बुला कर इसे पारित करें। इसमें जरूरी नहीं की टीम अण्णा के अनरूप ही लोकपाल बने परन्तु सरकार इसमें यह अवश्य ध्यान रहे कि देश में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण आज दम तोड़ रही लचर न्याय व्यवस्था व एनजीओ है। इन दोनों को हर हाल में इसके अन्तगर्त रखना चाहिए। प्रधानमंत्री हो या कोई मंत्री या जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार का आरोप जिस पर भी लगे उसे कानून की तरफ से किसी प्रकार का संवैधानिक विशेषाधिकार संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। अगर न्याय पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार दूर हो जाता है तो देश का आधे से अधिक भ्रष्टाचार स्वतः ही समाप्त हो जायेगा।
सरकार को टीम अण्णा या अनशन में कम या ज्यादा लोगों को आने का ढाल बना कर देश की व्यवस्था को तबाही के कगार पर धकेल रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के अपने प्रथम दायित्व से न तो देश की सरकार को व नहीं किसी राजनैतिक दल को मुंह मोड़ना चाहिए। यह देश केवल टीम अण्णा की मांग भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जन लोकपाल बनाने की है। इस मांग से देश का आम देश भक्त जो भले टीम अण्णा या इस जनलोकपाल के स्वरूप से अक्षरशः सहमत न भी हो परन्तु सभी चाहते हैं कि देश के हित में अविलम्ब कठोर लोकपाल बनाना चाहिए।
मैं जंतर मंतर पर 25 जुलाई से चल रहे टीम अण्णा के अनशन को समर्थन देने के लिए अपने साथियों के साथ सदैव जुटा रहा।  मुझे वहां पर न केवल इससे पहले अण्णा द्वारा जंतर मंतर व रामलीला मैदान में चलाये गये तीनों आंदोलनों में सहभागी रहने के कारण इस बार लोगों के उत्साह में कभी कमी और कभी तेजी साफ दिख रही है। रामदेव से आने से पहले भीड़ काफी कम थी। उसके बाद शनिवार व रविवार को जैसे समाचार पत्रों व समाचार चैनलों में कम भीड़ के समाचार प्रकाशित हुए। उससे लोगों में आक्रोश फेल गया। अण्णा हजारे द्वारा रविवार 29 जुलाई को प्रातः से अनशन में बैठने की खबरों ने एक बार लोगों को इस अनशन के समर्थन में जंतर मंतर पर उमड़ने के लिए विवश कर दिया। लोगों में इस बात का भी आक्रोश रहा कि सरकार व देश में भ्रष्टाचार को अंकुश लगाने की अण्णा की मांग का विरोध करने वाले लोग इस आंदोलन में कम लोगों के आने से प्रसन्न हैं, और वे इसे अण्णा के आंदोलन की हार मान रहे है। इसी को देख कर फिर से देश की जनता सड़कों पर उमड़ गयी और रविवार 29 जुलाई को उसने पूरा जंतर मंतर खचाखच भर कर सरकार को एक प्रकार की चेतावनी दे दी कि देश रक्षा में संघर्ष कर रहे अण्णा को कमजोर न समझे सरकार। इसके साथ 28 जुलाई को शनिवार को कुछ आंदोलनकारियों ने सैकड़ों की संख्या में छापामार दस्ते के रूप में प्रधानमंत्री आवास 7 रेसकोर्स पंहुच कर वहां पर मनमोहन सिंह की धृतराष्ट्रवृति के लिए धिक्कारते हुए अविलम्ब देश में लोकपाल ला कर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग की। इस प्रदर्शन पर दिल्ली पुलिस ने प्रधानमंत्री आवास परकोयले के टूकडे फेकने व प्रधानमंत्री आवास की दिवारों पर आपत्तिजनक नारे लिखने का भी आपरोप लगाया। गौरतलब है कि टीम अण्णा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कई लाख करोड़ रूपये के कोयले घोटाले का आरोप भी लगा रही है। शायद इसी कारण प्रदर्शनकारियों ने कोयले घोटाले में प्रधानमंत्री की भूमिका पर प्रश्न उठाने के प्रतीकात्तमक कोयले के टूकड़े उनके निवास में फेंके हों। वहीं इस आंदोलन के मंच का संचालन करने वाले कुमार विश्वास के अनुसार उन को दिल्ली पुलिस ने इन आंदोलनकारियों को भडकाने व आंदोलन में देश में महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर असंसदीय टिप्पणियां करने के साथ साथ इस आंदोलन में टीम अण्णा को अनशन आंदोलन की शर्तो को तोड़ने का भी आरोप लगाया।
 जंहां सरकार की अलोकतांत्रिक रूख से देशवासी दुखी थे वहीं  टीम अण्णा में आपसी मनमुटाव से देशवासियों को काफी हैरानी हो रही थी। लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि टीम अण्णा के प्रमुख सदस्य क्यों टीम को इस निर्णायक क्षणों में भी एकजूट नहीं रख रहे है। सबसे हैरानी लोगों को इस बात से हो रही है कि टीम अण्णा के सबसे जमीनी सदस्य अरविन्द गौड, जो अपनी नाट्य मंडली के सैंकडों सदस्यों के सहयोग से पूरे देश में इस आंदोलन को सफल बनाने में अग्रणी रहे, उनको क्यों इस बार टीम अण्णा ने मंचों से दूर रखा। उनकी प्रतिबद्धता इस बात से उजागर होती कि वे भले ही मंच से दूर है परन्तु वे निरंतर आंदोलन स्थल में जनता के बीच में आम आदमियों की तरह आंदोलन से जुडे रहे। यहीं नहीं रविवार को जब अण्णा आमरण अनशन में जंतर मंतर में बैठ रहे थे उस समय वे बिहार में आम जनता को इस आंदोलन में जोड़ने के लिए आंदोलित कर रहे थे। वे दो दिन के बिहार दौरे पर है। परन्तु बाकी दिन वे निरंतर अपनी मंडली के साथ इस आंदोलन में जुटे रहते है। उनका इस बार के आंदोलन में मंच से दूर रह कर जनता के बीच ही बेठे रहना, इस बात का साफ इशारा करता है कि टीम अण्णा में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। मै कल भी उनसे मिला और आज भी जब उनसे इस मामले में मैने दो टूक सवाल किया तो वे बोले मैं आम लोगों के बीच ही अच्छा लगता हॅू। परन्तु मैने कहा आप इससे पहले तीन आंदोलनों में जंतर मंतर व रामलीला मैदान में मंच में जिस प्रकार से सक्रिय नजर आते थे वह इस बार क्यों नहीं? वे हंसते हुए बोले भई मैं जनता के बीच रहने का आदी हूॅ परन्तु उनके मंच पर न जाने से एक बात साफ हो गयी कि वे टीम अण्णा के कर्णधारों से उस प्रकार से अपने आप को सहज नहीं पाते हैं जिस प्रकार पहले थे। न जाने टीम के प्रमुख अण्णा हजारे को यह बात क्यों नहीं खल रही है कि अरविन्द गौड़ जैसे जमीनी व मुद्दे से प्रतिबंद्ध प्रमुख सदस्य क्यों मंच पर नहीं आ रहे हैं? टीम अण्णा के प्रमुख होने के कारण अण्णा हजारे का यह प्रथम दायित्व बनता है कि वे टीम के महत्वपूर्ण सदस्यों को मंच पर एकजूट दिखायें। यहां अरविन्द गौड़ के अलावा न्यायमूर्ति हेगडे का न दिखाई देना लोगों के जेहन में कई भ्रम पैदा करता है। इन्हीं भ्रमों के कारण ही निंरंतर जनता का मोह भंग हो रहा है, इसी कारण इस मांग से सहमत होने व भ्रष्टाचार से निजात पाने की प्रचण्ड इच्छा होने के बाबजूद आम जनमानस टीम अण्णा के अनशन आंदोलन में पहले तीन समय के आंदोलनों की तरह आंदोलन में भाग लेने के लिए नहीं उमड़ रहा है। वहीं सरकार की मंशा भी टीम अण्णा को इस बार थकाने की रणनीति की है। सरकार को मालुम है कि टीम अण्णा के तीन सदस्यों में से दो सदस्य अरविन्द केजरीवाल व मनीष सिसोदिया अपने स्वास्थ्य कारणों से लम्बे समय तक अनशन नहीं कर सकते हैं। केवल गोपाल राय ही दस दिन की सीमा को पार कर सकते है। हाॅं अगर अनशन करने में महारथ हासिल अण्णा हजारे अगर अपनी घोषणा के तहत अनशन पर बेठ जाते है। तो सरकार को जरूर असहज स्थिति का सामना करना पडेगा। सरकार को यह जरूर समझ लेना चाहिए कि यह केवल टीम अण्णा या चंद लोगों का मामला नहीं अपितु यह देश के वर्तमान व भविष्य की रक्षा के लिए जरूरी है कि भ्रष्टाचार पर तत्काल अंकुश लगाने के लिए कठोर लोकपाल कानून बनाया जाय। आज अनशन आंदोलन के समर्थन में जहां मेरे साथ मोहन बिष्ट, जगदीश भट्ट, मोहनसिंह रावत, जगमोहन रावत, परमवीर रावत, महेन्द्र रावत, जगदीश भाकुनी, वरिष्ठ पत्रकार महिपाल सिंह व पाण्डे आदि थे वहीं इस आंदोलन में अग्रणी उद्यमी गजेन्द्र रावत को मैं अन्ना हॅॅू की टी शर्ट व टोपी पहने देख कर सुखद आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि रावत जी सवाल टीम अण्णा की अच्छाई व बुराई का नहीं, सवाल देश को तबाह करने पर तुले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सही व्यवस्था का बनाने का। उन्होंने कहा मैं दुनिया के 45 से अधिक देशों में भ्रमण कर चूका हूॅ परन्तु दुनिया के गरीब से गरीब नामीबिया जैसे मुल्क से हमारे यहां व्यवस्था कही बदतर है। हमारी व्यवस्था यहां एक आम नागरिक के हितों के प्रति कहीं दूर दूर तक जागरूक नहीं है। 29 जुलाई को मेरे साथ प्यारा उत्तराखण्ड के प्रबंध सम्पादक महेश चन्द्रा व समाजसेवी अनिल पंत सम्मलित रहे। इसके साथ इस आंदोलन में अपनी निरंतर भागीदारी निभाते हुए अग्रणी पत्रकार विजेन्द्रसिंह रावत, कंझावला के चैधरी व मजदूर नेता हरी ओम तिवारी भी निरंतर बने रहे। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।

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