अंसारी को फिर से उपराष्ट्रपति बना कर अपनी स्थिति मजबूत करेगी कांग्रेस

नई दिल्ली(प्याउ)। दिग्गज कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति का मजबूत प्रत्याशी बनाने के बाद कांग्रेस नेतृत्व अब अपने परंपरागत राजनैतिक समीकरण को मजबूत करते हुए वर्तमान उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी को पुन्न उप राष्ट्रपति बनाने का मन बना चूकी है। हालाॅंकि कांग्रेस नेतृत्व ने अपनी पसंद को राष्ट्रपति के प्रत्याशी के चयन के मामले में ममता वनर्जी व मुलायम सिंह यादव जैसे अपने सहयोगी दलों के समक्ष रख दिया था। कांग्रेस नेतृत्व ने राष्ट्रपति के प्रत्याशी के रूप में केवल जो दो नाम रखे थे उनमें प्रणव मुखर्जी को तो राष्ट्रपति का प्रत्याशी ममता व मुलायम के प्रारम्भिक विरोध के बाबजूद बना दिया। हालांकि मुलायम अपने प्रणव मुखर्जी के विरोध वाले रूख से पलटी मारते हुए कांग्रेसी प्रत्याशी प्रणव मुखर्जी के पक्ष में खडे हो गये । वहीं भाजपा नेतृत्व वाले राजग में भारी विखराव के कारण अप्रत्याशित रूप से शिव सेना व जदयू ने प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति का बनाने के लिए अपने दलों का ं समर्थन देने का निर्णय ले लिया है। इससे भाजपा समर्थित राजग को गहरा झटका लगा। अब जहां माया, मुलायम, जदयू, शिवसेना सहित अनैक दलों के समर्थन मिलने से कांग्रेस नेतृत्व को प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने में कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पडेगा। हाॅं कांग्रेसी राजनैतिक समीकरण पर हल्का झटका राजग के राष्ट्रपति प्रत्याशी संगमा के चुनावी दंगल में उतरने से पूर्वोत्तर सहित आदिवासी क्षेत्रों में लगेगा।
जो लोग अभी उपराष्ट्रपति कोन बनेगा की कायश लगा रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि कांग्रेस की नजर केवल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई है। कांग्रेस नेतृत्व को इस बात का अहसास है कि उसका परंपरागत राजनैतिक समीकरण जिसमें ब्राहमण, मुस्लिम, दलित प्रमुख है उस पर सपा, बसपा व भाजपा ने काफी हद तक सेंध मार ली है। इसी समीकरण को फिर से मजबूत करने के लिए कांग्रेसी नेतृत्व फिर अंधेरे में तीर मार रही है। इसी समीकरण को मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने ब्राहमण को राष्ट्रपति व मुस्लिम को उपराष्ट्रपति पद पर आसीन करने का निर्णय लिया। भले ही आम आदमी को ये जाति या धर्म की राजनीति हवाई लगती है परन्तु देश के भाग्य विधाता बने लोग केवल अपनी इसी संकीर्ण मानसिकता से इस प्रकार का निर्णय लेती है। भाजपा में मोदी को हो रहा विरोध इसी जातिवादी राजनीति का एक घटिया नमुना है। कांग्रेस व भाजपा ही नहीं अधिकांश दल इसी समीकरण के हिसाब से राजनीति करते है। कांग्रेस के आत्मघाती सलाहकार उनको छटे या सातवें दशक की राजनीतिक दुनिया के हिसाब से 2012 में भी फेसले लेने की सलाह दे रहे है। इसी कारण कांग्रेस की स्थिति ‘चोबे गये छबे बनने और दुबे बन कर लोटे की तरह हो गयी है। कांग्रेसी नेतृत्व इस बात का अंजान बनने की कोशिश कर रही है कि देश की राजनीति व आब हवा छटे या 7वें दशक की तरह अब नहीं है। देश का आम जन मानस राजनैतिक रूप से काफी जागरूक हो गया है। उसको अब कोरे नारों या केवल जातीय या धार्मिक आधार पर नहीं बांटा जा सकता हैं। इसी कारण कांग्रेस अधिकांश राज्यों में जहां कभी दशकों तक कांग्रेस का एकछत्र राज रहा वहां पर जमीनी मजबूत नेताओं की उपेक्षा करके और हवाई नेताओं को थोप कर कांग्रेस के साथ देश की राजनीति को पतन के गर्त में धकेल दिया। आज कांग्रेस में एक एक कर जनाधार नेताओं की उपेक्षा का कारण है कांग्रेस जनता से पूरी तरह कट जाना। आज कांग्रेस नेतृत्व ने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिंदम्बरम, प्रणव मुखर्जी, मोंटेक, कपिल सिब्बल, आनन्द शर्मा जैसे दिल्ली दरवार के जनता से कोसों दूर कटे हुए नेताओं को देश की महत्वपूर्ण बागडोर सोंप रखी है। वहीं कांग्रेस संगठन में भी जनता व संगठन के कार्यकत्र्ताओ ंसे कोसों दूर रहने वाले अहमद पटेल, जनार्जन द्विवेदी व चैधरी बीरेन्द्र सिंह जैसे नेताओं को सर्वेसर्वा बना कर संगठन का भट्टा गोल कर दिया है। कांग्रेस नेतृत्व को चाहिए था कि वह देश व पार्टी के हित में जनता से जुडे साफ छवि के लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करके जनहित में काम करे। परन्तु मनमोहन सिंह जैसे जनता से कोसों दूर कटे हुए नेता जब देश के भाग्य विधाता बनेगे तो वह देश की आम जनता के हितों के बजाय अमेरिका के हितों की पूर्ति के लिए ही बेचन रहेंगे। मनमोहन सिंह के मोह में या अमेरिका के दवाब में उनको बयाने रख कर सोनिया गांधी ने उस आम आदमी जिसने कांग्रेस के इस नारे पर विश्वास किया था ( कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ,), उसको मनमोहन सिंह के कुशासन ने मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद से पूरी तरह बेहाल कर दिया है। आज कांग्रेस ऐसी स्थिति में हो गयी है जिसके सरकार व संगठन का नेतृत्व ऐसी चैकड़ी के पास है जो जनता से कोसों दूर है।

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