आजादी की महान वीरांगना केप्टन लक्ष्मी सहगल के षर्मनाक अपमान के लिए जिम्मेदार हैं सभी राजनैतिक दल

राश्ट्रपति के पद पर नेता जी की इस केप्टन को आसीन नहीं कर पाया कृतज्ञ राश्ट्र

एक तरफ देष के राजनेता प्रणव मुखर्जी को राश्ट्रपति पद के चुनाव में विजयी होने के लिए बधाई दे रहे थे वहीं दूसरी तरफ उसी समय आजादी के महान वीरांगना व आजाद हिन्द फोज की केप्टेन लक्ष्मी सहगल कानपुर के चिकित्सा लय में दम तोड़ रही थी। देष की आजादी की इस महान वीरांगना केप्टन लक्ष्मी सहगल के निधन के बाद उनको श्रद्धांजलि देने के नाम पर आज देष के तमाम राजनेता भले ही घडियाली आंसू बहा रहे हैं परन्तु जब भारतीय आजादी की इस महानायिका ने अपने लिए देष के सर्वोच्च पद पर निर्वाचित इच्छा जाहिर की तो इस देष के तमाम राजनैतिक दलों ने अपनी बौनी सोच व अदूरदर्षिता दिखाते हुए उनको न केवल चुनावी समर में पराजित कराया अपितु उसके बाद भी दूसरी या तीसरे बार उनको इस पद पर आसीन करने की तरफ सोचने का अपना प्रथम नैतिक कत्र्तव्य का पालन तक नहीं किया।  जिन महान क्रांतिकारियों ने देष को आजाद करने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया, उनके आदर्षो व सपनों के साथ उनके बलिदान व संघर्श के बदोलत आजाद हुए देष के हुक्मरानों ने कितना निर्मम व षर्मनाक व्यवहार किया, इसको देख कर आज उन हुतात्माओं की आत्मा भी इन हुक्मरानों को धिक्कार रही होगी।देष न तो देष की आजादी के लिए युगान्तकारी नेतृत्व देने वाले महात्मा गांधी के सपनों के भारत की कल्पना को आजाद भारत में उतार पाये व नहीं देष की आजादी के लिए आजाद हिन्द फोज की स्थापना करके अंग्रेजी हुकूमत र्की इंट से ईंट बजाने वाले नेताजी सुभाश चन्द्र बोस को ही उचित सम्मान दे पाया। गांधीवाद के नाम पर देष में कांग्रेस के कुषासन से आज देष का कितना बुरा हाल है यह आज किसी को बताने की जरूरत नहीं है। परन्तु देष को फिरंगी हुक्मरानों से आजादी के लिए भारत माता के महान सपूत नेताजी सुभाश चन्द्र बोस के नेतृत्व में सषस्त्र क्रांति करके फिरंगी सम्राज्ञी का तख्तोताज हिलाने वाले  आजाद हिन्द फोज की केप्टन लक्ष्मी सहगल को भी उचित सम्मान तक देष के वर्तमान तमाम राजनैतिक दल नहीं दे सके।
जिसकी वह हकदार थी। वे देष की राश्ट्रपति के चुनाव में मिली करारी हार की चोट को अपने सीने में चुपचाप संजाये हुए 23 जुलाई को आजादी के महान सपूत चन्द्रषेखर आजाद व बाल गंगाधर तिलक के पावन जन्म दिवस पर अंतिम सांस ले कर नष्वर देह को सदा के लिए छोड़ गयी। गौरतलब है कि वाम दलों के अनुरोध सन् 2002 में वाम दलों का प्रत्याषी बन कर राश्ट्रपति का चुनाव लडी थी। इस चुनाव में जहां कांग्रेस व भाजपा द्वारा समर्थिक महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम राश्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हुए थे। परन्तु उसके बाद 2007 में व अब 2012 में भीदेष के राजनीतिज्ञों को इस भयंकर भूल का अहसास तक नहीं हो पाया कि देष की इस महान स्वतंत्रता सैनानी के प्रति कृतज्ञ राश्ट्र का कुछ फर्ज भी है। देष के राजनेताओं को 2007 या अब 2012 में नेताजी को अपनी श्रद्धाजलि के प्रतिरूप उनकी आजाद हिन्द फोज में रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड़ की केप्टन रही  लक्ष्मी सहगल को हर हाल में देष का राश्ट्रपति बनाना चाहिए था। परन्तु अपने नैतिक कत्र्तव्यों व अपने महान नायकों को कैसे सम्मान दिया जाता है इसका अहसास सायद देष के वर्तमान राजनेताओं को आजादी के 65 साल बाद भी नहीं हुआ।  अगर उनको श्रीमती प्रतिभा पाटिल या प्रणव की जगह पर राश्ट्रपति बना दिया गया होता तो राश्ट्र को आज इस भयंकर अपराध से मुक्ति मिल जाती। कानपुर को अपना क्लीनिक बना कार्यक्षेत्र बनाने वाली पेषे से डाक्टर कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने 1971 में माकपा की सदस्यता ग्रहण की और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि उनको  वर्ष 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया था। कैप्टन सहगल की बेटी  माकपा नेता सुभाषिनी अली हैं। जीवन भर गरीबों और मजदूरों के लिए संघर्ष करने वाली इस देष की आजादी की महान वीरांगना केप्टन लक्ष्मी सहगल की मौत के समय उनके ही आदर्षों के लिए अपना जीवन अर्पित करके देष में अपना नाम स्थापित कर चूकी उनकी पुत्री सुभाषिनी अली भी जीवन की अंतिम बेला पर अपने माॅं के ही संग थी।
कानपुर को अपनी कर्मस्थली बनाने वाली आजादी की इस विरांगना की जन्म भूमि मद्रास रही। 24 अक्टूबर 1914 में मद्रास जन्मी केप्टन लक्ष्मी के पिता एस स्वामीनाथन मद्रास उच्च न्यायालय के जाने माने वकील थे,। परन्तु  गरीबों की सेवा के लिए लक्ष्मी स्वामीनाथन ने डॉक्टरी का पेशा चुना और 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की। वे षुरू से ही देष के स्वाभिमान व आजादी के लिए समर्पित होना चाहती थी। 1940 में लक्ष्मी सिंगापुर गईं और वहां पर भी उन्होंने भारतीय गरीब मजदूरों के इलाज के लिए क्लिनिक खोला। उन दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस जब दो जुलाई 1943 को सिंगापुर आए और आजाद हिंद फौज के महिला रेजीमेंट की स्थापना की बात की तो लक्ष्मी स्वामीनाथन ने खुद को आगे किया और लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की कैप्टन बनीं। परन्तु दुर्भाग्य रहा कि आजादी के लिए संघर्श करने वाले आजाद हिन्द फोज को दूसरे विष्व युद्ध में अपने सहयोगी जापान व जर्मनी की करारी पराजय के बाद 1942 में अंग्रेजी सेना ने जापानी फौज के सामने समर्पण कर दिया। आजादी के बाद भी उन्होंने निरंतर गरीबों व असहाय लोगों के हितों के लिए काम किया और इसी लिए 1971 में उन्होंने माकपा की सदस्यता ग्रहण की । वे राज्य सभा की सांसद भी रही।
आजादी के लिए उनका महान योगदान को देखते हुए ही वामपंथी दलों ने उनको 2002 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में वामपंथी दलों का प्रत्याषी बनाया। हालांकि इस चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम विजयी हो कर भारत के 11 वें राश्ट्रपति बने। यह हार वामपंथियों की नहीं अपितु कृतज्ञ राश्ट्र की थी जिसने अपने उस महान आजादी की वीरांगना को इतना सा सम्मान मांगने पर भी नहीं दिया जिसने अपना सारा जीवन देष की आजादी के लिए कुर्वान कर दिया था। हालांकि केप्टन लक्ष्मी सहगल पहली ऐसी वीरांगना नहीं थी जिनका अपमान देष के हुक्मरानों ने किया, इससे पहले देष की महान स्वतंत्रता सैनानी दुर्गा भाभी की भी देष के तमाम राजनेताओं ने षर्मनाक उपेक्षा की।  आने वाली पीड़ी देष के इन सत्तांध हुक्मरानों व तमाम राजनैतिक दलों को देष के महानायकों के साथ किये गये इस षर्मनाक व्यवहार के लिए कभी माफ नहीं करेगी। षेश श्रीकृश्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृश्णाय् नमो।

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