भगवान श्रीकृष्ण से काला बाबा तक मेरे प्रेरणा पूंज


भगवान श्रीकृष्ण से काला बाबा तक मेरे प्रेरणा पूंज








किसको सुनायें हाले दिल 
किसको मेरा दर्द है...। 
बेदर्दी से कहना नहीं, 
अपनी लाज खोना नहीं।।
महान रहस्यमय शक्तियों के स्वामी काला बाबा अकसर उपरोक्त पंक्तियां बोलते हुए कहते थे कि आज इस देश में किसी को (देश के हुक्मरान, नौकरशाहों, समाजसेवियों व संवेधानिक पदों पर आसीन लोगों को) इस देश की चिंता नहीं है। विद्या धारी, पद धारी, मठधारी सबके सब देश को दोनों हाथों से लूटने में लगे है। देश की आजादी के अमर सिपाही, भारतीय समाज के अग्रणी चिंतक, मानवता के अमर प्रणेता काला बाबा आलौकित शक्तियों के पूंज थे। वे न केवल हर पल देश व समाज के लिए चिंतित रहते थे अपितु दोषियों को कई बार स्वयं अपनी रहस्यमय शक्ति से दण्डित करते व सत्तासीन-सत्ताच्युत भी करते थे। मेरे जीवन में भगवान श्रीकृष्ण के बाद अगर किसी का व्यापक प्रभाव दिखा तो स्वामी विवेकानन्द जी के दिव्य गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी व काला बाबा जी का। संसार के तमाम विचारकों, चिंतकों, मनीषियों व अवतारों में जो पूर्णता मुझे भगवान श्री कृष्ण में दिखी। वहीं मेरे जीवन के मूल प्रेरणा पूंज ही नहीं अपितु आधार भी हैं। वहीं संसार भर के महान संतों में जो दिव्यता का अहसास मुझे विवेकानन्द जी के दिव्य गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस में दिखी वह अन्यत्र कहीं नहीं। बहुत ही माॅं काली के दिव्य भक्त, निर्मोही, जड चेतन में माॅं भगवती के परम स्वरूप को देखने व मानने वाले स्वामी रामकृष्ण परमंहस की जीवनी से में प्रभावित हुआ। परन्तु जो दिव्य महान दिव्यात्मा के रूप में काला बाबा का अपनत्व व साक्षात आशीर्वाद सानिध्य मुझे लम्बे समय तक मिला, उसने मेरे जीवन में एक ऐसी दिशा दी जिसे पा कर देख कर मेरे साथी ही नहीं अपितु खुद मैं अचम्भित हॅू। हर अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष करने की अपार शक्ति और हर दुशासन को पराजित करने की अपार शक्ति का संचरण तथा इनको बेनकाब करने का माध्यम जो भगवान श्रीकृष्ण की अपार आर्शीवाद व काला बाबा के सानिध्य से अर्जित हुआ, उसके लिए मैं भगवान श्रीकृष्ण व महान संत काला बाबा को शतः शतः नमन् करता हॅू। ‘सर्वभूत हिते रता और वासुदेव सर्वम’ की जो दिव्य दृष्टि भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे जड़ चेतन में श्रीकृष्णमय करके दी, जो अपार कृपा का सागर मेरे जेसे सामान्य तुच्छ प्राणी पर बरसाया, उससे मैं आज भी रौमांचित हूॅ। भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष करने का पाठ दिया, मुझे भगवान की इस अपार कृपा पर हर्ष होता है कि देश, जाति, धर्म, लिंग, नस्ल, भाषा, जीव, आदि के अंध मोह से उपर उठ कर भगवान श्रीकृष्ण ने जो कुरूक्षेत्र के पुरोधा बनने का अवसर दिया, वह दुर्लभ है। ऐसा दिव्य खुशी व सम्राज्य दिया जिसके आगे संसार के तमाम सम्राज्य, पद व सुख पानी भरते नजर आते है। उन्हीं भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा से आज मुझे इस सृष्टि का कोई पद पाने योग्य ही नहीं लगता। ना कोई कामना रह गयी है बनने की व नहीं पाने की। केवल जब तक यह देह रहे तब तक जनहित व सत्य के लिए समर्पित कुरूक्षेत्र का सिपाई बना रहे। कुछ मित्र भूल या अपनी अज्ञानता के कारण मुझे किसी दल, जाति, क्षेत्र, देश या धर्म विशेष तक जोड़ कर देखते है। मेरे लिए इस सकल सृष्टि कृष्णमय है। सभी मेरे अपने हे। मैं तो केवल उसके साथ हूॅ जो जगत हित में कार्य करना चाहता। इसलिए मैं सत् के साथ हॅू हर उस अन्याय के खिलाफ हॅू जो असत् पर आधारित हो। मेरे लिए व्यक्ति, जाति, धर्म, भाषा, लिंग, नस्ल व देश की संकीर्णता कोई अर्थ नहीं रखती , मैं केवल सत्य व न्याय के साथ हॅू। जिसे भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि यतो धर्मो ततो जय। जहां सत्य, न्याय हैं वहीं धर्म हैं और जहां धर्म हैं वहीं श्रीकृष्ण है। जहां श्रीकृष्ण है वहीं जय है। इसलिए मेरे लिए संसार भर के कुशासक महत्वहीन हैं उनके कृत्य जो मानवता के लिए पतनकारी हैं उनका विरोध करना ही मेरा धर्म है तथा सही दिशा में कदम उठाने वालों का साथ देना ही मेरा धर्म है।  श्रीकृष्ण। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

Comments

Popular posts from this blog

-देवभूमि की पावनता की रक्षा की फिर भगवान बदरीनाथ ने- निशंक के बाद मनंमोहन को भी जाना होगा