दलित आरक्षण सनातन धर्म व राष्ट्र के लिए बना बरदान


दलित आरक्षण सनातन धर्म व राष्ट्र के लिए बना बरदान


रात की तु बात न कर, रात तो गुजर गयी,
ऐ सुबह मुझे बता तेरी रोशनी किधर गयी।
हिन्दु समाज में छुआछूत कब शुरू हुई, क्यों हुई ’आज हमें इस बात पर अपना सर खपाने के बजाय आज हमें विश्व के सबसे प्राचीन व पूर्ण धर्म हिन्दु यानी सनातन धर्म पर लगे इस कलंक को दूर करने का गंभीरता से प्रयास करना चाहिए। हमें इस बात को भी समझना चाहिए कि अम्बेडकर जी ने गांधी जी से मिल कर देश में जो दलित आरक्षण की व्यवस्था हिन्दु धर्म के दलित वर्ग के उपेक्षित व शोषित लोगों के लिए वह हिन्दु धर्म व भारतीय राष्ट्र के लिए अभिशाप नहीं अपितु बरदान है। इसी के कारण आज देश में सदियों से अपमानित व शोषित दलित वर्ग अपने हिन्दु धर्म का अभिन्न अंग बना हुआ है। इसी दलित आरक्षण के कारण आज इस देश की संस्कृति व सभ्यता को ग्रहण लगा सकने वाला मुस्लिम व ईसाई धर्मान्तरण थोक के भाव से नहीं हो पा रहा है। भारत पर काबिज होने के दिवास्वप्न को साकार करने के लिए ईसायत का परचम फेहराने वाली ईसाई मिशनरियां व मुगल सम्राज्य का फिर से परचम फेहराने के एक सुत्री मिशन पर अरबों डालर पानी की तरह बहाने वाली संस्थायें आज इसी दलित आरक्षण को अपने मार्ग में सबसे बडा अवरोधक मान कर इसको बदलने के लिए भारत सरकार पर निरंतर दवाब बना रहे है। इस राष्ट्रातरण मिशन को साकार करने के लिए ये संस्थाये कभी दलित ईसाई व दलित मुस्लिम को भी दलितों की तरह आरक्षण देने की मांग कर रहे है। अज्ञानता से दलित आरक्षण की बात करने वाले सवर्ण हिन्दुओं को इस बात का भान ही नहीं। उन्हे बाबा साहिब भीमराव अम्बेडकर की दूरदर्शिता को नमन करना चाहिए कि जिन्होंने हिन्दु धर्म के सवर्णो के अमानवीय अत्याचारों को नजरांदाज करते हुए इसकी रक्षा में ऐसा अमोध बह्रास्त दलित आरक्षण का राष्ट्र रक्षा के कवच के रूप में राष्ट्र को प्रदान किया। कल्पना करें कि अगर यह दलित आरक्षण का कवच आज देश में नहीं होता तो देश में धर्मान्तरण के लिए करोड़ों रूपया बहाने वाले ये राष्ट्रद्रोही कबके दलित समाज के अधिकांश वर्ग को अपने में समायोजित करके हिन्दु समाज को अल्पसंख्यक नागालेण्ड, पूर्वोतर, कश्मीर, असम व बंगाल की तरह बना देश की एकता व अखण्डता को खतरा पैदा कर देते।
देश के असली सपूतों पर जो छुआछूत के नाम पर अत्याचार तथाकथित सवर्णो ने किया उसका प्रायश्चित स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में देश के शासन प्रशासन की बागडोर दलित समाज के हाथ में सौंपना ही बतायी थी। यह सही है कि गरीब की कोई जाति नहीं होती। परन्तु यह सही है कि जातिवादी इस व्यवस्था में दलित आदमी को  सबकुछ संसाधन होने के बाबजूद भी ऐसा अपमान व तिरस्कार सहना पड़ता है जो गरीब सवर्ण को कभी जीवन में सहना नहीं पड़ता।
हाॅं यह सही है कि इस देश में आरक्षण जाति के आधार पर भविष्य में न रहे इसके लिए दलित आरक्षण में केवल उन लोगों को ही इसका लाभ मिलना चाहिए जो दलित वर्ग में वास्तव में आम गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है। सवर्ण गरीबों को भी अवसर मिलना चाहिए देश में शिक्षा, चिकित्सा व न्याय सभी को बिना भेदभाव के निशुल्क व अनिवार्य मिलना चाहिए। परन्तु दलित आरक्षण को अभिशाप समझ कर इसका विरोध करने वाले लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं हैं कि दलित वर्ग को जो थोड़ा सी हिस्सेदारी आज लोकशाही में मिल रही है, परन्तु जो लोग हजारों साल से सम्पति व सम्मान दोनों से तिरस्कार पूर्ण वंचित रखे गये, उनको चंद साल का आरक्षण को हम क्यो सह नहीं पा रहे हे। क्या हममें से कोई एक ऐसा व्यक्ति है जो इस प्रकार के अपमान को सहने के बाबजूद चुपचाप हिन्दु धर्म का अंग बना रह सकता है। हिन्दु धर्म के सच्चे सिपाई अगर कोइ्र हैं तो वह दलित समाज के लोग हैं। अगर कोई दुश्मन है तो वे लोग जिन्होंने जातिवाद का जहर घोल कर इस संसार के सर्वश्रेष्ठ धर्म को कलंकित करने का निकृष्ठ कृत्य किया है।

Comments

  1. धर्म - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना करना ।
    व्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
    सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना,
    सामाजिक धर्म है । जब धर्म की हानि होती है, तब ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
    धर्म संकट - जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा
    जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और
    न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, प्रजाधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म ये धर्म के ही रूप है ।
    यह धर्म भी निजी (व्यक्तिगत) व सामाजिक होते है ।
    धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिमूर्ति) से लेकर इस क्षण तक ।
    राजतंत्र होने पर धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र होने पर धर्म का पालन
    लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाता है । by- kpopsbjri

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