उत्तराखण्ड के दूसरे नित्यान्नद बन सकते हैं तरूण विजय
उत्तराखण्ड के दूसरे नित्यान्नद बन सकते हैं तरूण विजय/
उत्तराखण्ड की राजनीति में मजबूत पकड़ बनाने के लिए की जनदेव दर्शन यात्रा /
भाजपा के आडवाणी नहीं अटल बनना चाहेंगे तरूण /
नई दिल्ली(प्याउ)। ‘भाजपा के सर्वशक्तिमान नेता लालकृष्ण आडवाणी के आंखों के तारे भाजपा के राज्य सभा सांसद तरूण विजय देवभूमि उत्तराखण्ड में भाजपा के सत्तासीन होने पर दूसरे नित्यानन्द स्वामी बन सकते है। यानी निकट भविष्य में जब भी भाजपा उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ हों तो तरूण विजय, गैर उत्तराखण्डी मूल के होने के बाबजूद अपने केन्द्रीय आकाओं के दम पर प्रदेश की लोकशाही को धत्ता बताते हुए नित्यानन्द स्वामी की तरह तरूण विजय भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं।’ यह विचार यकायक उस समय मेरे मानस पर फिर प्रबल रूप से क्रोंधने लगा जब मुझे भगतसिंह कोश्यारी के सांसद निवास पर भाजपा के राज्यसभा सांसद ने मेरे सामने उत्तराखण्ड में अगल साल होने वाली विश्वविख्यात नन्दा देवी राजजात की तैयारियों व सुविधा के सम्बंध में एक रिपोर्ट बनाने के लिए जनदेव दर्शन यात्रा का शुभारंभ हल्द्वानी से बेदनी तक करने के अपने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगतसिंह कोश्यारी को निमंत्रण दे कर लोटते हुए भाजपा नेता पूरण चंद नैनवाल को इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सहयोग देने का अनुरोध किया। तरूण विजय द्वारा लाये गये मिष्ठान का खाते समय ही मेरे मुह से लम्बे समय से क्रोंध रहा यह विचार अचानक ही मुंह से निकल गया।
9 अप्रैल 2012 को सांय पांच बजे तरूण विजय के इस कार्यक्रम की व्यापकता को देख कर मैं हैरान रह गया। मुझे लगा कि चाहे तरूण विजय में कितनी भी कमियां हो परन्तु उनको मुद्दों को अपने हितों में भूनाना आता है। उनके आगे उत्तराखण्ड के तमाम नेता बौने साबित होते है। ऐसा नहीं कि उत्तराखण्ड में नेताओं की कोई कमी भाजपा में हो, परन्तु प्रदेश के विशेषता को पूरे राष्ट्र के सामने रख कर उनको गौरवान्वित करने की कला उत्तराखण्ड के किसी नेता में नहीं है। कम से कम मंडूबे पर अपना कार्यक्रम करने के बाद जिस प्रखरता से तरूण विजय ने नन्दादेवी राजजात पर अपनी तरह का कार्यक्रम बना कर नेतृत्व किया और इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर उत्तराखण्ड भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेताओं को अपने साथ खडा किया उससे उनके नेतृत्व का चमत्कारिक गुण ही सामने आता है जो तमाम उत्तराखण्डी नेताओं को उनके आगे बौना साबित करता हे। न केवल भाजपा के नेताओं को अपितु कांग्रेस सहित तमाम प्रदेश के नेताओं को तरूण विजय की इस पहल से सबक लेनी कि कैसे चीजों को देश व जनता के समक्ष रखने के लिए महिमा मण्डित करने का गुण होना चाहिए। हालांकि तरूण विजय का भाजपा व संघ नेतृत्व से कोई आज का रिश्ता नहीं है। वे भाजपा की मातृ संगठन के मुख पत्र, पांचजन्य के सम्पादक रहने के साथ साथ भाजपा के शिखर पुरूष अटल व आडवाणी के भी करीबी रहे। हालांकि यहां तरूण विजय के कार्यों से भले ही संघ खुश न रहा हो, उनको जिन परिस्थितियों में पांचजन्य से विदाई दी गयी, जिस प्रकार से उन्होने अपनी संस्थाओं के कार्य किये उस पर अनैक लोग अंगुलिया उठाये परन्तु उनपर अटल के बाद आडवाणी जी को आशीर्वाद रहा तो उनको न केवल संघ के वरिष्ठ भाजपाई स्वयं सेवक रहे शेषाद्रीचारी जेसे दिग्गज नेताओं को भी नजरांदाज करके मध्य प्रदेश का निवासी होने के बाबजूद उत्तराखण्ड से राज्यसभा सांसद बनाया गया। यही नहीं उनको भाजपा का राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनाया गया। हालांकि उन पर भाजपा शासनकाल में प्रथम उत्तराखण्डी मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी के कार्यकाल में ही तरूण विजय की संस्था के लिए करोड़ों की जमीनी कोडियों के भाव प्रदान की गयी। इसमें देहरादून का घंटाघर से लगभग 13-14 किलोमीटर पर झाझरा में करोड़ों की सरकारी भूमि कौड़ियों के दाम में ले ली। सुत्रों के अनुसार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बना। उसी समय तरुण विजय ने अपने पिता के नाम से एक संस्था बनाई ‘स्वतंत्रता सेनानी लोकबंध्ुा राम मूर्ति पावसे सेवा न्यास।’ संस्था में घर के ही लोग हैं। संस्था ने अपने अधीन ‘इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी इंस्टीट्यूट फॅार दी ट्राइब्स ऑफ इंडिया,’ के नाम से 16 फरवरी 2001 को सरकारी जमीन पट्टे पर दिए जाने का आवेदन किया। उन दिनो ंपांचजन्य के सम्पादक के पद पर कार्यरत तरूण विजय को प्रदेश सरकार ने 23 अप्रैल 2001 को संस्था से अनुबंध करके 12 एकड़ यानी लगभग 60 बीघा जमीन प्रदान कर दी। यह केवल अकेला मामला नहीं तरूण विजय ने संघ व भाजपा के अपने ऊंचे सम्पर्को का हमेशा जी भर के अपनी संस्थाओं के लिए दोहन किया। वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में उनके सिंधु दर्शन से लेकर अब नन्दादेवी राजजात की लोकप्रियता को भुनाने के लिए 9 अप्रैल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी के आवास से उनकी सरपरस्ती में उत्तराखण्ड के भाजपा के तमाम नेताओं को जोत जो जनदेव यात्रा का शंखनाद किया, वह अपने आप में उनक विलक्षण प्रतिभा को ही उजागर करता है। परन्तु अफसोस होता है तरूण विजय की यह प्रतिभा उत्तराखण्ड के हितों के लिए भी होते तो प्रदेश की जनता को उनको उत्तराखण्ड से राज्यसभा सांसद बनाये जाने का अफसोस नहीं होता। गौरतलब हे कि तरूण विजय को राज्य सभा सदस्य हुए लम्बा समय बित गया परन्तु उनके मुंह से कभी प्रदेश की जनांकांक्षाओं का सम्मान करने वाले गैरसेंण राजधानी बनाने या मुजफरनगरकाण्ड के अभियुक्तों को सजा दिलाने, प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार व कुशासन से त्रस्त जनता को राहत दिलाने वाला बयान तक नहीं आया। हालांकि वे जिस तेजी से काम कर रहे हैं उनकी नजर कहीं भी आडवाणी की ही भांति प्रधानमंत्री के पद पर भी हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तरूण विजय को आडवाणी का ही नहीं अपितु आडवाणी के परिवार में सबसे राजनैतिक रूप से ताकतवर सदस्य यानी उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी का भी आशीर्वाद हासिल है। हालांकि उंची पंहुच के साथ साथ तरूण विजय का हमेशा ही विवादों के साथ भी चैली दामन की तरह का रिश्ता रहा। मध्य प्रदेश मूल के होने के साथ साथ उनका नाम जिस प्रकार से भोपाल की सूचना के अधिकार के लिए काम करने वाली समाजसेविका जिसका रहस्यमय ढ़ग से हत्या हुई थी, उसके साथ तरूण विजय की मित्रता की खबरों से एक बार लगा की तरूण विजय के राजनैतिक जीवन पर ग्रहण लग गया। पर जिस बेदाग ढ़ग से वे इस झंझावत से भी बाहर निकले यह उनके कौशल का ही एक छोटा सा नमुना हे। देश में भाजपा व संघ के तमाम शीर्ष नेताओ ंके सानिध्य में काम करने से इसकी छाप उनके व्यक्तित्व पर साफ दिखाई देती है। अब नन्दा राजजात की लोकप्रियता को भुनाते हुए तरूण विजय ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के हाथों से उनके ही आवास पर 9 अप्रेल सोमवार को दिल्ली में इस जनदेव दर्शन यात्रा का उद्घाटन कराया। इस अवसर पर तरुण विजय ने कहा कि नन्दादेवी राजजात यात्रा को सफल बनाने व इसकी तेयारी के लिए प्रारम्भ की जाने वाली इस जनदेव यात्रा में विभिन्न क्षेत्रों से उत्तराखंड के नागरिकों को भी आमंत्रित किया जाएगा। इसके लिए विशेष वेबसाइट का निर्माण किया गया है। इस के तहत अगले वर्ष होने वाली नंदादेवी राजजात यात्रा की तैयारियों और सुविधा के संबंध में एक रिपोर्ट भी तैयार की जाएगी जो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिह व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को सौंपी जाएगी। इस अवसर पर सांसद भगत सिंह कोश्यारी, भाजपा के उत्तराखंड प्रभारी थावरचंद गहलौत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, हरबंस कपूर, प्रकाश पंत, अजय भट्ट, दीपक मेहरा ,भाजपा नेता पूरण चंद नैनवाल, पंचायत राज प्रकोष्ठ के केन्द्रीय कार्यालय प्रभारी विजय सत्ती व उत्तराखण्ड प्रकोष्ठ के संयोजक श्याम लाल मंझेडा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। हालांकि इस कार्यक्रम में भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी को भी आना था परन्तु वे नहीं आये।
अब देखना यह है कि एक सफल राजनेता की तरह तरूण विजय जिस तेजी व मजबूती से अपनी पकड़ राजनीति, सामाजिक, सांस्कृतिक व बौद्धिक जगत के साथ साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में चहुमुखी कर रहे हैं उससे तरूण विजय को उत्तराखण्ड का दूसरा नित्यानन्द स्वामी बनने की आशंका सच में साकार होते प्रतीत होती है। मुझे उनकी गतिविधियों पर एक नजर दोडाने व उनके चेहरे पर उनके भावों को पड़ने के बाद यह कहने में भी कोई संकोच नहीं होता कि तरूण विजय की नजर भाजपा में आडवाणी नहीं अपितु अटल बनने की है। यानी देश का प्रधानमंत्री बनने की भी हो तो इसमें मुझे कोई संशय नहीं होगा। परन्तु उनको एक ही ध्यान रखना चाहिए कि वे निष्कपट ढ़ंग से यदि यह सब करते तो भगवान बदरीनाथ उन पर अवश्य कृपा करता। परन्तु देवभूमि के साथ खिलवाड़ करने की धृष्ठता करने वालों को महाकाल कभी माफ नहीं करता।
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