वंश व जात को नहीं कर्म को महान मानती है भारतीय संस्कृति

कुछ लोग अपने जीवन का बहुमल्य समय इन दिनों भी वंशावली के आधार पर मिसी को डा या छोटा साबित करने में लगाने की भूल कर रहे है। नेहरू के वंशज कौन थे, हिन्दू थे या मुस्लिम इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, केवल यह इतिहासकारों के लिए ज्ञानार्जन व टांग खिचने वालों का एक बहाना हो सकता हे। वेसे भी धार्मिक दृष्टि से माने तो इस्लाम व ईसायत आदि धर्मो का भारतीय संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि यहां पर अधिकांश लोग भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक हिन्दू धर्म के मानने वाले थे। बाद में चाहे कोई भय, प्रलोभन या अज्ञानता के कारण अपना धर्म परिवर्तन करके हिन्दू से मुस्लिम या ईसाई भले ही बन गये हों परन्तु मूल में सब एक ही है। वैसे भी पूरी मानवीय सृष्टि ही नहीं भारतीय इतिहास भी वर्णसंकरों से भरा हुआ है।महाभारत में ही वेद व्यास, वशिष्ट, विदुर, कर्ण आदि की श्रेष्ठता को क्या हम उनके जनकों के कारण कम कर आंक सकते है।   भारतीय मनीषी कभी आदमी के कुल, धर्म, रंग, लिंग या क्षेत्रादि के कारण नहीं अपितु व्यक्ति के अपने कर्मो के कारण ही वरियता देता है। क्या लेखक या हम कोई भी अपने पूर्वजों के कर्मो के अपने आप को जिम्मेदार मान सकते है। नहीं। टांग खिचने के लिए वंशावली का सहारा लेना उचित नहीं है। अपने जीवन का अमूल्य समय इसमें नष्ट करना कहीं भी उचित नहीं है। वैसे भी सारे हिन्दू नेक या सारे मुस्लिम-ईसाई गलत नहीं होते। यहां हिन्दुओं में भी जयचंद, मानसिंह, व आज के हुक्मरान जैसे लोग भी होते है। वहीं मुस्लिमों में डा अब्दुल कलाम व वीर हमीद जैसे राष्ट्र भक्त भी हो सकते है। हमें जाति, धर्म, क्षेत्र, रंग व नस्ल आदि के आधार पर किसी को अच्छा या बुरा नहीं मानना चाहिए अपितु हमें प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे व बुरे कर्म के आधार पर ही उसका मूल्यांकन करना चाहिए और अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा। नेहरू या गांधी को गाली देने से ही देश का आज भला नहीं होने वाला, हमें मनमोहन सरकार के खिलाफ व वर्तमान के सभी दलों के कुकर्मी नेताओं को बेनकाब करके उनको देश की राजनीति से दूर हटाने का साहस भी होना चाहिए। तभी देश का भला होगा।

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