वाणी से नहीं कर्मो से पहचानों प्राणी को

मनुष्य को जीवन में मात्र प्रथम व्यवहार से मधुर व्यवहार करने वालों व कर्कश व्यवहार करने वालों के प्रति अच्छे व बुरे होने की धारना नहीं बनानी चाहिए अपितु उनके कर्मो को ध्यान में रखते हुए उनके प्रति धारणा बनानी चाहिए। सदैव ऐसी स्थिति भी नहीं रहती है। कई बार सामने अच्छे बोलने वाले मन के काले होते हैं और दो टूक व कडुवे बोलने वाले भी मन से साफ होते है। इसलिए केवल बोली पर नहीं अपितु उनके भाव व आचरण से ही किसी व्यक्ति की पहचान करनी चाहिएं। मीठा बोलने वाली कोयल को तत्वज्ञानी लोग अच्छी तरह से उसके कर्मो से भी जानते है। वहीं कर्कश बोलने वाला कौवा भी अपने अण्डो को नष्ट करके धूर्तता से अपने अण्डे कौअे के घोसले में रख देने वाली कोयल से भी सहज होता है। वह कोयल के अण्डों को भी अपने अण्डे समझ कर पालती है। -देवसिंह रावत

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